1.वृक्षासन सीधे पैरों के बल खड़े हो जाएं। अब दाएँ पैर को मोड़ते हुए पंजे को बाईँ जांघ पर जितना ऊपर हो सके टिकाएं। शरीर को संतुलित करते हुए बाजुओँ को ऊपर उठाकर हथेलियों को नमस्कार की मुद्रा में जोड़ लें। लगभग एक मिनट तक इसी मुद्रा में रहें। इसके बाद दूसरे पैर से इसी मुद्रा को दोहराएं। वृक्षासन में शरीर की स्थिरता के लिए, आंखों को किसी एक वस्तु पर केन्द्रित कर सकते हैं। इस आसन से जांघो, टखनों पिंडलियों और रीढ़ को मजबूती मिलती है।
2.हस्तपादासन सामान्य मुद्रा में पैरों के बल खड़े हों। दोनों हाथों को कमर रखें। सांस को भीतर खींचते हुए आगे की तरफ झुकें। हाथों को पैर के पंजे के बगल में जमीन पर रखने का प्रयास करें। लगभग तीस सेकेंड इसी अवस्था में रहें। सांस छोड़ते हुए सामान्य अवस्था में लौटें। यह आसन पीठ, गर्दन, कूल्हों को मजबूती प्रदान करता है। इसके अलावा यह तनाव और चिंता में राहत प्रदान करता है।
3.त्रिकोणासन पैरों को 3-4 चार फीट की दूरी पर फैला लें। दाहिना पैर 90 डिग्री पर बाहर की और तथा बायां पैर 15 डिग्री पर रखें। शरीर को दाहिनी तरफ मोड़ें। बांए हाथ को ऊपर उठाएं, दाहिनें हाथ से जमीन को छुएं। 30 सेकेंड तक इसी अवस्था में रहें। फिर दूसरे तरफ से दोहराएं।
4. सेतुबंध आसन पीठ के बल लेट जाएं। हाथों को शरीर से सटा लें। अब पैरों को मोड़कर पंजो पर दबाव डालते हुए कूल्हों को ऊपर उठाएं। शरीर को एक सीध में कर लें। अब दोनों हाथों को जोड़ लें। 5 से 10 सेकेंड रूकें। 3 बार दोहराएं।
5. वीरभद्रासन 3 से 4 फीट की दूरी पर पैर फैलाकर खड़े हो जाएं। बाएं पैर को 45 डिग्री अंदर मोड़ें। दाहिने पैर को 90 डिग्री बाहर रखें। हाथों को फैलाएं। दाएं घुटने को मोड़ें। दाहिने हाथ को देखें 30 सेकेंड इसी अवस्था में रहें। अब बाएं ओर से दोहराएं।