प्रोटीन पाउडर बना रहे
यह स्टार्टअप कंपनी अपने पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रोटीन का एक नया प्राकृतिक स्रोत विकसित करने का प्रयास कर रही है। दूसरे प्रोटीन की ही तरह इस प्रोटीन का भी स्वादिष्ट स्वाद नहीं है और इसे लगभग किसी भी स्नैक या भोजन में उपयोग किया जा सकता है। लेकिन सोलर फूड्स का कहना है कि इसमें एक-छोटा कार्बन फुटप्रिंट होगा। इसे कंपनी ने सॉलेन नाम दिया है जो एक प्रोटीन युक्त पाउडर है। इसे एक सूक्ष्म जीव द्वारा बनाया जाता है। निर्माताओं का कहना है कि यह मांस की तुलना में 100 गुना अधिक जलवायु के अनुकूल है। कंपनी के वैज्ञानिक एक किण्वन (फर्मेंटेशन या खमीर) टैंक में तरल में एक माइक्रोब विकसित करके सॉलेन बनाया जाता है। यह शीतल पेय बनाने में उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया के समान है। लेकिन इसे शक्कर से बनाने की बजाय सोलर फूड्स का खास माइक्रोब केवल हाइड्रोजन बुलबुले, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्व और विटामिन को खाता है।
यह स्टार्टअप कंपनी अपने पायलट प्रोजेक्ट के तहत प्रोटीन का एक नया प्राकृतिक स्रोत विकसित करने का प्रयास कर रही है। दूसरे प्रोटीन की ही तरह इस प्रोटीन का भी स्वादिष्ट स्वाद नहीं है और इसे लगभग किसी भी स्नैक या भोजन में उपयोग किया जा सकता है। लेकिन सोलर फूड्स का कहना है कि इसमें एक-छोटा कार्बन फुटप्रिंट होगा। इसे कंपनी ने सॉलेन नाम दिया है जो एक प्रोटीन युक्त पाउडर है। इसे एक सूक्ष्म जीव द्वारा बनाया जाता है। निर्माताओं का कहना है कि यह मांस की तुलना में 100 गुना अधिक जलवायु के अनुकूल है। कंपनी के वैज्ञानिक एक किण्वन (फर्मेंटेशन या खमीर) टैंक में तरल में एक माइक्रोब विकसित करके सॉलेन बनाया जाता है। यह शीतल पेय बनाने में उपयोग की जाने वाली प्रक्रिया के समान है। लेकिन इसे शक्कर से बनाने की बजाय सोलर फूड्स का खास माइक्रोब केवल हाइड्रोजन बुलबुले, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्व और विटामिन को खाता है।
इतना ही नहीं कंपनी पानी से इलेक्ट्रिसिटी बनाकर हाइड्रोजन बनाते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकाल देते हैं। इसलिए कंपनी इसे ‘पतली हवा से बनाया भोजन’ कहती है। यह सब अक्षय ऊर्जा से संचालित होता है कार्बन फुटप्रिंट को कम करता है। इसमें ६५ फीसदी प्रोटीन फैट और कार्बोहाइड्रेट्स हैं। इसे ब्रेड, पास्ता प्लांट बेस्ड मीट और डेयरी उत्पादों के साथ खाया जा सकता है। कंपनी का दावा है कि यह मीट से १०० गुना ज्यादा पर्यावरण फे्रंडली है। जबकि पौधों से मिलने वाले प्रोटीन से १० गुना ज्यादा बेहतर है। इसे बनाने में पानी भी कम खर्च होता है। कंपनी २०२१ तक इसे मार्केट में उतारने पर विचार कर रही है।