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कम होने का नाम नहीं ले रही अनिल अंबानी की मुश्किलें, बिकने की कगार पर RHFL और RCFL

अनिल अंबानी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं
रिलायंस होम फाइनैंस लिमिटेड ( RHFL ) और रिलायंस कमर्शल फाइनैंस लिमिटेड (RCFL) बिक सकती हैं
क्रेडिट रेंटिंग गिरने की वजह से बाजार में भी कंपनी की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं

Apr 30, 2019 / 12:13 pm

Shivani Sharma

कम होने का नाम नहीं ले रही अनिल अंबानी की मुश्किलें, बिकने की कगार पर RHFL और RCFL

नई दिल्ली। अनिल अंबानी की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। रिलायंस होम फाइनैंस लिमिटेड ( RHFL ) और रिलायंस कमर्शल फाइनैंस लिमिटेड ( rcfl ) की क्रेडिट रेंटिंग गिरने की वजह से बाजार में भी कंपनी की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। इस समय ये दोनों कंपनियां अपनी नई इक्विटी को बाजार में बेचकर फंड जुटीने की कोशिश में लगी हुई हैं।


CEO ने दी जानकारी

आपको बता दें कि इनकी होल्डिंग कंपनी रिलायंस कैपिटल सही प्राइस पर नए निवेशकों को मालिकाना हक देने के लिए तैयार है। अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप की कंपनी रिलायंस कैपिटल के सीईओ अमित बाफना ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि हम देश और विदेशों के निवशकों से बातचीत कर रहे हैं जल्द ही हमारी सारी परेशानी ठीक हो जाएगी और हमें एक-दो महीने में इक्विटी कैपिटल भी मिलने की उम्मीद है। इसके साथ जैसे ही हमारी कैपिटल ग्रोथ बढ़ोतरी होगी वैसे ही हमारी स्थिति भी सुधरेगी। इसके साथ देश में चल रहीं क्रेडिट रेटिंग फर्मों का भी हम पर भरोसा बढ़ेगा।


घट सकती है हिस्सेदारी

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आरएचएफएल ( RHFL ) और आरसीएफएल ( RCFL ) फिलहाल इस समय 3000 करोड़ रुपए जुटाने की कोशिश में लगा हुआ है। इसके साथ ही आपको बचा दें कि वैल्यूएशन के आधार पर यह रकम कम भी हो सकती है। आपको बता दें कि रिलायंस कैपिटल के पास RCFL में 100 फीसदी और RHFL में 50 फीसदी हिस्सेदारी है। इसके साथ ही कंपनी ने जानकारी देते हुए बताया कि अगर हम नए इन्वेस्टर्स को शेयर्स बेचने से यह हिस्सेदारी घटकर आधी या फिर इससे भी कम हो सकती है।


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17 हजार करोड़ की है लोन बुक

कंपनी के सीईओ बाफना ने जानकारी देते हुए बताया कि RHFL की लोन बुक 17 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा है और RCFL की लोनबुक की बात करें तो वह भी लगभग 16 हजार करोड़ रुपए की ही है। RHFL और RCFL की रेटिंग डाउनग्रेड होने से डेट मार्केट में बॉरोइंग कॉस्ट बढ़ सकती है क्योंकि म्यूचुअल फंड जैसे प्रमुख इन्वेस्टर्स नए इन्वेस्टमेंट को रोक सकते हैं।


IL&FS के बाद से बाजार में है डर का माहौल

आपको बता दें कि पिछले वर्ष सितंबर में IL&FS के डिफॉल्ट के बाद से ही बाजार में कई कंपनियों में डर बना हुआ है और बाजार के हालात भी अच्छे नहीं हैं। इस डिफॉल्ट के बाद से ही नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों ( NBFC ) की लिक्विडिटी में भी कमी आई है।

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