कॉर्पोरेट वर्ल्ड

इस आइडिया से धीरूभाई अंबानी बने गए बिजनेस की दुनिया के बेताज बादशाह

भारत में कॉरपोरेट जगत की तस्वीर बदलने वाले धीरूभाई अंबानी का आज जन्मदिन है। धीरूभाई अंबानी वो शख्स हैं जिन्होंने जमीन से उठकर आसमान को छूआ है।

Dec 28, 2018 / 02:33 pm

manish ranjan

इस आइडिया से धीरूभाई अंबानी बने गए बिजनेस की दुनिया के बेताज बादशाह

नई दिल्ली। भारत में कॉरपोरेट जगत की तस्वीर बदलने वाले धीरूभाई अंबानी का आज जन्मदिन है। धीरूभाई अंबानी वो शख्स हैं जिन्होंने जमीन से उठकर आसमान को छूआ है। धीरूभाई अंबानी की सफलता की कहानी कुछ ऐसी है कि उनकी शुरुआती सैलरी 200 रुपए थी। लेकिन अपनी मेहनत के दम पर देखते ही देखते वह करोड़ों के मालिक बन गए। बिजनेस की दुनिया के बेताज बादशाह के पद चिन्हों पर चलकर ही आज मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी सफल बड़े बिजनेसमैन की कतार में खड़े हो गए हैं।

ऐसे देखा अमीर बनने का सपना

धीरूभाई अंबानी जब 17 साल के थे उस समय वो पैसे कमाने के लिए अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए थे। जहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर 200 रुपए प्रति माह सैलरी की नौकरी मिल गई। कंपनी का नाम था ए. बेस्सी एंड कंपनी। कंपनी ने धीरूभाई के काम को देखते हुए उन्हें फिलिंग स्टेशन में मैनेजर बना दिया गया।कुछ साल यहां नौकरी करने के बाद धीरूभाई साल 1954 में देश वापस चले आए। यमन में रहते हुए ही धीरूभाई ने बड़ा आदमी बनने का सपना देखा था। इसलिए घर लौटने के बाद 500 रुपए लेकर मुंबई के लिए रवाना हो गए।

जब आया ये आइडिया

भारत वापस आने के बाद धीरूभाई अंबानी बाजार के बारे में बखूबी जानने लगे और उन्हें समझ में आ गया था कि भारत में पोलिस्टर की मांग सबसे ज्यादा है और विदेशों में भारतीय मसालों की। जिसके बाद बिजनेस का आइडिया उन्हें यहीं से आया।उन्होंने दिमाग लगाया और एक कंपनी रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन की शुरुआत की, जिसने भारत के मसाले विदेशों में और विदेश का पोलिस्टर भारत में बेचने की शुरुआत कर दी। अपने ऑफिस के लिए धीरूभाई ने 350 वर्ग फुट का कमरा, एक मेज, तीन कुर्सी, दो सहयोगी और एक टेलिफोन के साथ की थी। वह दुनिया के सबसे सफलतम लोगों में से एक धीरूभाई अंबानी की दिनचर्या तय भी होती थी। वह कभी भी 10 घंटे से ज्यादा काम नहीं करते थे। 2000 के दौरान ही अंबानी देश के सबसे रईस व्‍यक्ति बनकर उभरें। मीडिया रिपोर्टे के अनुसार जब उनकी मौत हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी।उनका निधन 6 जुलाई, 2002 को हुआ था।

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