ऐसे देखा अमीर बनने का सपना
धीरूभाई अंबानी जब 17 साल के थे उस समय वो पैसे कमाने के लिए अपने भाई रमणिकलाल के पास यमन चले गए थे। जहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर 200 रुपए प्रति माह सैलरी की नौकरी मिल गई। कंपनी का नाम था ए. बेस्सी एंड कंपनी। कंपनी ने धीरूभाई के काम को देखते हुए उन्हें फिलिंग स्टेशन में मैनेजर बना दिया गया।कुछ साल यहां नौकरी करने के बाद धीरूभाई साल 1954 में देश वापस चले आए। यमन में रहते हुए ही धीरूभाई ने बड़ा आदमी बनने का सपना देखा था। इसलिए घर लौटने के बाद 500 रुपए लेकर मुंबई के लिए रवाना हो गए।
जब आया ये आइडिया
भारत वापस आने के बाद धीरूभाई अंबानी बाजार के बारे में बखूबी जानने लगे और उन्हें समझ में आ गया था कि भारत में पोलिस्टर की मांग सबसे ज्यादा है और विदेशों में भारतीय मसालों की। जिसके बाद बिजनेस का आइडिया उन्हें यहीं से आया।उन्होंने दिमाग लगाया और एक कंपनी रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन की शुरुआत की, जिसने भारत के मसाले विदेशों में और विदेश का पोलिस्टर भारत में बेचने की शुरुआत कर दी। अपने ऑफिस के लिए धीरूभाई ने 350 वर्ग फुट का कमरा, एक मेज, तीन कुर्सी, दो सहयोगी और एक टेलिफोन के साथ की थी। वह दुनिया के सबसे सफलतम लोगों में से एक धीरूभाई अंबानी की दिनचर्या तय भी होती थी। वह कभी भी 10 घंटे से ज्यादा काम नहीं करते थे। 2000 के दौरान ही अंबानी देश के सबसे रईस व्यक्ति बनकर उभरें। मीडिया रिपोर्टे के अनुसार जब उनकी मौत हुई तब तक रिलायंस 62 हजार करोड़ की कंपनी बन चुकी थी।उनका निधन 6 जुलाई, 2002 को हुआ था।