नई दिल्ली। प्रतिभूति बाजार विनियामक सेबी ने इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कारपोरेशन लि. (आइपीसीएल) के शेयरों को भेदिया सूचनाओं के आधार पर खरीद-फरोख्त के मामले में रिलायंस पेट्रोइन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड(आरपीआइएल) को बरी कर दिया है।
नहीं मिले सबूत 9 साल चले इस मामले में सेबी ने अब कहा है कि सबूतों के अभाव के कारण यह साबित नहीं किया जा सका कि मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस उद्योग समूह की कंपनी ने आंतरिक सूचनाओं के आधार पर आइपीसीएल शेयरों का सौदा किया। सेबी ने इससे पहले मई 2013 में इसी मामले में आरपीआइएल पर 11 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया था। इसके खिलाफ अपील पर प्रतिभूति अपीलीय प्राधिकरण (सैट) ने गत दिसंबर में फैसला पलट दिया था। सैट ने भारतीय प्रतिभूति व विनिमय बोर्ड (सेबी) को इस मामले पर पुनर्विचार कर तीन महीने में नया फैसला करने को कहा था।
जून 2002 में भारत सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम के तहत आइपीसीएल में अपनी 26 फीसद हिस्सेदारी रिलायंस समूह की कंपनी रिलायंस पेट्रोइन्वेस्टमेंट्स को बेच दी थी। बाद में इस कंपनी ने सेबी के अधिग्रहण संबंधी नियमों के तहत खुली पेशकश में 20 फीसद शेयर और खरीद लिए थे। आइपीसीएल को 2007 में रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. में विलीन कर दिया गया। विलय से पहले इस मामले से संबंधित अवधि में रिलायंस के प्रमुख मुकेश अंबानी आइपीसीएल के चेयरमैन और आरआइएल के चेयरमैन व प्रबंध निदेशक पद पर थे। इस तरह दोनों कंपनियां एक ही प्रबंधन के अधीन थीं और आइपीसीएल के दो तिहाई मताधिकार रिलायंस पेट्रोइन्वेस्टमेंट्स के पास थे।
अपने ताजा आदेश में सेबी ने कहा है कि जांच में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं मिला कि सौदा मूल्य के हिसाब से संवेदनशील सूचनाओं पर आधारित था। सेबी ने 50 पन्नों के अपने आदेश में कहा- यह सही है कि इस सौदे में सभी पक्ष एक-दूसरे से संबद्ध थे पर विवेचना अधिकारी को ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं जिससे यह साबित हो कि आरपीआइएल और उसकी मूल कंपनी आरआइएल को आइपीसीएल की बाजार कीमत की दृष्टि से अप्रकाशित और संवेदनशील सूचना उपलब्ध थी और उन्हें उसके आधार पर संबंधित शेयर में कोई भेदिया कारोबार किया। इस तरह यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि इस सौदे में भेदिया करोबार निवारक नियमों का कोई उल्लंघन हुआ है।