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पेट्रोलियम कारोबार में किस गड़बड़ी की वजह से लगा रिलायंस और मुकेश अंबानी पर जुर्माना

पेट्रो कारोबार में गड़बड़ी के कारण रिलायंस पर 25 करोड़ और मुकेश अंबानी पर 15 करोड़ का जुर्माना
नवंबर 2007 में आरपीएल के शेयरों की कैश व फ्यूचर सेगमेंट में खरीद और बिक्री से जुड़े मामले में कार्रवाई

Jan 03, 2021 / 09:16 am

Saurabh Sharma

SEBI fined Reliance, Mukesh Ambani for ‘business disturbances’

नई दिल्ली। सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया ने रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसके अध्यक्ष मुकेश अंबानी पर कारोबार में कथित गड़बड़ी करने के लिए क्रमश: 25 करोड़ और 15 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। सेबी ने यह जुर्माना नवंबर 2007 में रिलायंस पेट्रोलियम के शेयरों की कैश व फ्यूचर सेगमेंट में खरीद और बिक्री से जुड़े मामले में हुई अनियमितता के लिए लगाया है। 2007 में रिलायंस पेट्रोलियम के शेयरों की खरीद-फरोख्त में कथित हेराफेरी के लिए जुर्माने को लेकर आदेश जारी किया गया है। यह भी देखा गया कि मुकेश अंबानी आरआईएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक होने के नाते, अपने दिन-प्रतिदिन के मामलों के लिए जिम्मेदार हैं और इस तरह, आरआईएल द्वारा किए गए जोड़ तोड़ व्यापार के लिए भी वह उत्तरदाई हैं।

सोची समझी योजना के तहत की गई गड़बड़ी
सेबी ने अपने आदेश में कहा है कि यह पाया गया है कि आरआईएल ने अपने एजेंट के साथ मिलकर सोच-समझकर योजना बनाई थी। इसका मकसद कैश और फ्यूचर सेगमेंट में आरपीएल के शेयरों की बिक्री से मुनाफा कमाना था। इसके लिए सेटलमेंट वाले दिन आखिरी 10 मिनट के कारोबार में बड़ी संख्या में कैश सेगमेंट में आरपीएल के शेयर बेचे गए। इससे आरपीएल के शेयर का सेटलमेंट प्राइस गिर गया। हेराफेरी की यह योजना सिक्योरिटीज मार्केट के हित के खिलाफ थी। इतना ही नहीं, पूंजी बाजार नियामक ने सेबी ने नवी मुंबई सेज प्राइवेट लिमिटेड से 20 करोड़ रुपए और मुंबई सेज लिमिटेड को 10 करोड़ रुपये का जुर्माना देने को भी कहा है।

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सेबी ने की जांच
सेबी ने मामले की तह तक जाने के लिए 2007 में एक नवंबर से 29 नवंबर के दौरान आरपीएल के शेयरों में हुई खरीद-फरीख्त की जांच की। यह पाया गया कि आरआईएल के बोर्ड ने 29 मार्च 2007 को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इसके तहत वित्तवर्ष 2008 के लिए ऑपरेटिंग प्लान और अगले दो साल के लिए करीब 87,000 करोड़ रुपए के फंड की जरूरत को मंजूरी दी गई थी। इसके बाद आरआईएल ने नवंबर 2007 में आरपीएल में अपनी करीब पांच फीसदी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था। फिर, आरपीएल ने उसकी तरफ से आरपीएल के फ्यूचर्स में सौदे करने के लिए 12 एजेंट नियुक्त किए थे।

इस तरह से की गई हेराफेरी
सेबी ने यह भी बताया है कि किस तरह इस हेराफेरी को अंजाम दिया गया। दरअसल, इन 12 एजेंट ने आरआईएल की तरफ से फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस मार्केट में आरपीएल के शेयरों में (शॉर्ट पॉजिशन) मंदी के सौदे किए। फिर, आरआईएल ने कैश सेगमेंट में आरपीएल के अपने शेयर बेच दिए। 15 नवंबर के बाद से एफएंडओ सेगमेंट में आरआईएल के शॉर्ट पॉजिशन में लगातार बढ़ोतरी होती रही। यह बढ़ोतरी कैश सेगमेंट में आरपीएल के शेयरों की प्रस्तावित बिकवाली से ज्यादा थी। 29 नवंबर, 2007 को आरआईएल ने कैश मार्केट में आरपीएल के 2.25 करोड़ शेयर बेच दिए। यह बिकवाली सत्र के आखिरी 10 मिनट में की गई। इसके चलते आरपीएल के शेयरों में तेजी से गिरावट आई।

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ऐसे कमाया था मुनाफा
इससे आरपीएल के शेयर का सेटलमेंट प्राइस घट गया। एफएंडओ सेगमेंट में कुल 7.97 करोड़ रुपए का आउटस्टैंडिंग पॉजिशन का सेटलमेंट कैश में किया गया। इससे शॉर्ट पॉजिशन पर मुनाफा हुआ। यह मुनाफा पहले से तय शर्त के मुताबिक एजेंट ने आरआईएल को हस्तांतरित कर दिया गया। सेबी ने उल्लेख किया कि 24 मार्च, 2017 को दिए गए एक आदेश ने आरआईएल को भुगतान की तारीख तक 29 नवंबर, 2007 से 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सहित 447.27 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था।

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