पी राजगोपाल ने अपने साम्राज्य को सिर्फ दक्षिण भारत तक ही सीमित नहीं रखा। बल्कि विदेशों तक फैलाया। चेन्नई से मैनहटन तक ऐसा कोई नहीं जिसने सरवाना भवन ( Saravana Bhavan ) का डोसा ना चखा हो। उन्होंने हाल ही में एक मर्डर केस में 7 जुलाई को आत्मसमर्पण किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
ज्योतिष की सलाह लेकर खोला रेस्त्रां
सरवाना भवन और पी राजगोपाल के डोसा किंग बनने की शुरुआत यूं ही नहीं हुई। बात 1979 की है, जब उनकी चेन्नई स्थित केके नगर में ग्रोसरी की दुकान थी। जानकारी के अनुसार एक सेल्समैन केके नगर में खाना खाने के लिए रेस्त्रां या ढाबा तलाश रहा था, लेकिन उसे नहीं मिला।
उस वक्त जवान पी राजगोपाल के दिमाग में रेस्त्रां खोलने का प्लान आया। पी राजगोपाल ने ज्योतिष से सलाह ली। राजगोपाल के मित्र गनपति अय्यर का एक छोटा सा रेस्त्रां कमाची भवन था, लेेकिन वो अच्छे से चल नहीं रहा था। तब राजगोपाल गनपति के साथ जुड़े और उसका नाम सरवाना भवन रखकर 14 दिसंबर 1981 को काम शुरू कर दिया।
एक रुपए रखी शुरुआती कीमत
जो भी कोई बिजनेस करता है कि सस्ते सामान और कम रुपए का स्टाफ रखता है, ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा फायदा हो सके। वहीं पी राजगोपाल ने इसके बिल्कुल विपरीत किया। उन्होंने खाने में नारियल का तेल और अच्छी क्वालिटी की सब्जियों का इस्तेमाल किया।
साथ्र ही उन्होंने अपने स्टाफ को अच्छी सैलरी भी दी। एक समय में उन्होंने अपने रेस्त्रां के हर आइटम का दाम एक रुपया रखा। जिसकी वजह से उन्हें काफी नुकसान पहुंचा, लेकिन लोगों के मुंह को सस्ता और अच्छा खाने का चस्का लगा तो उन्होंने पीछे मुढ़कर नहीं देखा।
चेन्नई से मैनहटन तक फैलाया साम्राज्य
पी राजगोपाल के रेस्त्रा की पॉपुलैरिटी लगातार बढ़ती गई। उन्होंने उसके बाद इसे चेन का रूप देकर देश में 30 रेस्त्रां खोले। जिनमें से 20 चेन्नई और एक दिल्ली में शामिल हैं। खास बात तो ये है कि उनकी पॉपुलैरिटी विदेशों में ज्यादा रही।
इसलिए उन्होंने विदेशों में 47 के रेस्त्रां खोले। जिसमें न्यूयॉर्क के बेहतरीन शहर मैनहटन भी शामिल हैं। आज भी सरवाना भवन में खाना खाने के लिए लोग घंटों इंतजार करते हैं। मौजूदा समय में सरवाना भवन के मालिक करीब 3100 करोड़ रुपए के मालिक बन चुके थे।
एक शादी की जिद ने पहुंचाया जेल
इतने शानदार सफर के बाद पी राजगोपाल को जेल के मुहाने तक कैसे पहुंचाया इसकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। वास्तव में दो पत्नियों के होने के बाद भी 90 के दशक में उन्हें एक और शादी करने की सनक सवार हुई।
राजगोपाल के ज्योतिष ने उन्हें चेन्नई ब्रांच के असिसटेंट मैनजर की बेटी जीवाजोथी से शादी करने की सलाह दी। लेकिन जीवाजोथी ने शादी करने से इनकार कर दिया। जीवा ने अपने भाई के टीचर प्रिंस शांताकुमार से 1999 में शादी कर ली।
जानकारी के अनुसार राजगोपाल ने दोनों को शादी तोडऩे की धमकी दी। दोनों ने इस बात से इनकार कर दिया। जिसके बाद राजगोपाल की ओर से धमकियां देने का सिलसिला जारी रहा। 2001 में कपल ने राजगोपाल के खिलाफ लगातार धमकी देने को लेकर पुलिस में कंप्लेन दर्ज करा दी। जिसके बाद शांताकुमार के अगवा होने की खबर आई। आरोप राजगोपाल पर लगा।
3 अक्टूबर 2001 को शांताकुमार की लाश टाइगर चोला फॉरेस्ट में मिली। 23 नवंबर 2001 को राजगोपाल ने सरेंडर किया और 15 जुलाई 2003 को राजगोपाल को बेल मिल गई।
फिर मिली उम्रकैद की सजा
राजगोपाल के लिए मामला तब और बिगड़ गया, जब मामले को रफादफा करने के लिए जीवा को 6 लाख रुपए की रिश्वत देने की कोशिश की गई। उसके परिवार को परेशान किया। मामला लोकल कोर्ट में था। 2004 में राजगोपाल को 10 साल की जेल हुई।
उसके बाद 2009 में राजगोपाल को मद्रास हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी। राजगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की सजा को कायम रखा।
23 मार्च को अपना फैसला सुना दिया। लेकिन राजगोपाल की तबियत को देखते हुए उन्हें 7 जुलाई को सरेंडर करने को कहा गया। लेकिन किसे पता था कि दस दिन के बाद राजगोपाल दुनिया को ही छोड़कर चले जाएंगे।
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