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वहीं मौजूदा समय में टाटा संस के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति को पूरी तरह से इललीगल बताया है। इससे पहले, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) की मुंबई पीठ ने मिस्त्री को हटाने को चुनौती देने वाली दो निवेश फर्म साइरस इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्प द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया था। बाद में, मिस्त्री ने भी एनसीएलटी के आदेश पर एनसीएलएटी से व्यक्तिगत रूप से संपर्क किया था।
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मिस्त्री, टाटा संस के छठे अध्यक्ष थे, जिन्हें अक्टूबर 2016 में पद से हटा दिया गया था। रतन टाटा के रिटायरमेंट के बाद मिस्त्री को 2012 में अध्यक्ष का पद मिला था। मिस्त्री ग्रुप ने एनसीएलटी की मुंबई पीठ के 9 जुलाई के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में उनके निष्कासन के खिलाफ याचिका खारिज कर दी थी, साथ ही रतन टाटा और कंपनी के बोर्ड की ओर से बड़े पैमाने पर कदाचार के आरोप भी थे।
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न्यायाधिकरण की विशेष पीठ ने माना था कि टाटा संस का निदेशक मंडल कंपनी के कार्यकारी अध्यक्ष को हटाने के लिए “सक्षम” था। एनसीएलटी पीठ ने यह भी कहा था कि मिस्त्री को अध्यक्ष के रूप में इसलिए बाहर किया गया क्योंकि टाटा संस का बोर्ड और शेयरधारकों का साइरस मिस्त्री ने विश्वास खो दिया था। उनके हटने के दो महीने बाद, मिस्त्री के परिवार द्वारा संचालित फर्मों ने एनसीएलटी में टाटा संस, रतन टाटा और कुछ अन्य बोर्ड सदस्यों के खिलाफ संपर्क किया। मिस्त्री ने अपनी दलीलों में मुख्य रूप से कहा था कि उनका निष्कासन कंपनी अधिनियम के अनुसार नहीं था।