क्या है इस सेक्शन के तहत प्रावधान
इस अधिनियम या किसी अन्य कानून के प्रावधानों के तहत किसी भी कार्रवाई के पक्षपात के बिना, ट्रिब्यूनल या तो केंद्र सरकार द्वारा या किसी संबंधित व्यक्ति द्वारा किए गए एक आवेदन पर या उसके सुओ मोटो लेते हुए कंपनी के खिलाफ केस दायर करता है। अगर वह संतुष्ट है कि किसी कंपनी के ऑडिटर ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, किसी धोखाधड़ी में काम किया हो या किसी धोखाधड़ी में उसका अपमान किया हो या उसके साथ धोखाधड़ी की हो या कंपनी या उसके निदेशकों या अधिकारियों के संबंध में, तो कंपनी को ऑडिटर बदलने का निर्देश दिया जा सकता है।
क्या कहा कंपनी ने
जब एक न्यूज एजेंसी ने डेलॉयट कंपनी के प्रवक्ता से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, कंपनी की आईएफआईएन की के बारे में जांच प्रक्रिया में हम पूरी तरह से मदद कर रहे हैं। ऑडिटिंग प्रावधानों के अनुसार हमने अपनी क्षमता के मुताबिक ऑडिट किया है। डेलॉयट ने अपनी तरफ से कहा कि समूह डिफॉल्ट मई 2018 में शुरू हुआ था। आईएलएंडएफएस की तीन प्रमुख कंपनी- आईएलएंडएफएस, आईटीएनएल और आईएफआईएन ने डेलॉयट में अपने सूत्रों की मदद से आईएलएंडएफएस और आईटीएनएल एसआरबीसी एंड को (ईएंवाइ) ऑडिट को देखा। इस दौरान, आईएफआईएन की ऑडिटिंग बीएसआर (केपीएमजी ) ने वित्त वर्ष 2018-19 में किया था।
दूसरी बार किसी कंपनी पर उठाया जा सकता है ऐसा कदम
खास बात है कि यदि ऐसा होता है तो यह अपने आप में देश का ऐसा दूसरा मामला होगा। इसके पहले सत्यम स्कैम में प्राइस वॉटरहाउस पर भी सरकार ने यह कार्रवाई की थी। जनवरी 2018 में, सत्यम स्कैम के 9 साल बाद भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ( SEBI ) ने सभी को चौंकाते हुए प्राइस वॉटरहाउस को लिस्टेड कंपनियों में ऑडिट सर्विस के लिए बैन कर दिया था। इस कंपनी की दो सह-कंपनियों को भी दो सालों के लिए बैन कर दिया गया था। विनियामक ने इस कंपनी व उसके दो चार्टर्ड अकाउंटेंट (एस गोपालकृष्णन और श्रीनिवास ताल्लुरी)से 130.9 मिलियन रुपए भी उगलवाये थे। इस आदेश के तारीख के 45 दिनों के अंदर इन तीनों कंपनियों को 7 जनवरी 2009 से 12 फीसदी ब्याज भी देना पड़ा था। सेबी ने दूसरी कंपनियों को यह भी निर्देश दिया था कि कोई भी इस कंपनी व उससे संबंधित ऑडिट अन्य कंपनियों से कोई ताल्लुक न रखें।
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