11 गांवों की करते हैं परिक्रमा बुंदेलखंड की धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ बुंदेलखंडी विश्व प्रसिद्ध मौनी नृत्य आज भी बुंदेलखंड के लोग बड़ी धूमधाम, हर्षोल्लास और श्रद्धा भक्ति भाव के साथ मनाते हैं। इस पर्व के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के लोग मौन व्रत धारण कर 11 गांव व तीर्थ स्थानों की यात्रा के लिए घर से निकलते हैं। हाथों में डांडिया सेरा नृत्य के डंडे लेकर मोर पंख लगाकर मौन व्रत धारण कर सुबह अपने घर से टोली बनाकर निकलते है व पूरे दिन उपवास रहकर मौन के साथ- साथ 11 गांवों की परिक्रमा कर कई तीर्थ स्थानों पर जाकर शेरा राई नृत्य करते हैं।
12 वर्षों तक रखना होता है मौन व्रत दिवारी गीत दिवाली के दूसरे दिन उस समय गाये जाते हैं जब मोनिया मौन व्रत रख कर गांव- गांव में घूमते हैं। दीपावली के पूजन के बाद मध्य रात्रि में मोनिया-व्रत शुरू हो जाता है। गांव के अहीर – गडरिया और पशु पालक तालाब नदी में नहा कर, सज-धज कर मौन व्रत लेते हैं। इसी कारण इन्हें मोनिया भी कहा जाता है। यह परम्परा द्वापर युग से चली आ रही है। इसमें विपत्तियों को दूर करने के लिए ग्वाले मौन रहने का कठिन व्रत रखते हैं। यह मौन व्रत 12 वर्ष तक रखना पड़ता है। इस दौरान मांस मदिरा का सेवन वर्जित रहता है। तेरहवें वर्ष में मथुरा व वृंदावन जाकर यमुना नदी के तट पर पूजन कर व्रत तोड़ना पड़ता है। शुरुआत में पांच मोर पंख लेने पड़ते हैं प्रतिवर्ष पांच-पांच पंख जुड़ते रहते हैं। इस प्रकार उनके मुट्ठे में बारह वर्ष में साठ मोर पंखों का जोड़ इकट्ठा हो जाता है। परम्परा के अनुसार पूजन कर पूरे नगर में ढोल, नगड़िया की थाप पर दीवारी गाते, नृत्ये करते हुए हुए अपने गंतव्य को जाते हैं। इसमें एक गायक ही लोक परम्पराओं के गीत और भजन गाता है और उसी पर दल के सदस्य नृत्य करते हैं।
गुजरात और महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर होता है यह नृत्य बुंदेलखंड का यह परंपरागत मौनी नृत्य आज विश्व पटल पर भी उभर कर सामने आया है। डांडिया नृत्य इसी का दूसरा रूप माना जाता है जो नवदुर्गा महोत्सव के दौरान खास तौर पर महाराष्ट्र और गुजरात में बड़ी मात्रा में देखने को मिलता है। यहां के लोगों का मानना है कि डांडिया नृत्य मौनी परमा पर किये जाने बाले नृत्य का दूसरा रुप है। हालांकि बुंदेलखंड में मोनिया नृत्य विलुप्त होता जा रहा है और दूसरे प्रदेशों में डांडिया नृत्य बहुत मशहूर होता जा रहा है। कोरोना काल में यह अगाध श्रद्धा विश्वास के साथ मनाया जा रहा है।