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जंगल पार्टी के डकैतों का था जिले में आतंक देवरिया (Deoria) से अलग होकर कुशीनगर (Kushinagar) जनपद के अस्तित्व में आने के बाद सरकारी महकमों में जश्न का माहौल था। साल 1994 में जिले की पुलिस पहली जन्माष्टमी (Janmashtami) पडरौना कोतवाली (Padrauna Police Station) में बड़े ही धूम-धाम से मनाने में लगी थी। इस कार्यक्रम में जिले के बड़े अधिकारियों के साथ ही सभी थानों के थानेदार और पुलिसकर्मी भी मौजूद थे। पुलिस को कुबेरस्थान थाने के पचरुखिया घाट (Pachrukhiya Kand) के पास उस समय यूपी-बिहार (UP-Bihar) में आतंक का पर्याय बन चुके जंगल पार्टी (Jungle Party Dakait) के आधा दर्जन डकैतों के ठहरने और किसी बड़े वारदात को अंजाम देने की सूचना मिली। मुखबिर ने दिया था पुलिस को धोखा सूचना के आधार पर कुबेरस्थान थाने के तत्कालीन प्रभारी राजेंद्र यादव और उस समय के एनकाउंटर स्पेस्शिलिस्ट तरयासुजान थाने के तत्कालीन प्रभारी अनिल पाण्डेय मौके के लिए रवाना हो गए। 1994 में नदी को पार करने के लिए उस समय पुल नहीं था, नांव ही एक मात्र साधन था। पचरुखिया गांव के एक नाविक की मदद से पुलिस ने बांसी नदी को पार कर डकैतों के छिपने की जगह पर पहुंची, लेकिन डकैत वहां से फरार होकर नदी के किनारे छिप गए थे। बताया जाता है कि मुखबिर पुलिस को धोखा देकर डकैतों से मिल गया था।
डकैतों के जाल में फंस गई थी पुलिस जंगल में डकैतों के नहीं मिलने पर पुलिस नांव से नदी को पार कर वापस लौट रही थी। नांव जैसे ही नदी के बीच धारा में पहुंची, तभी डकैतों ने पुलिस टीम पर अंधाधुन फायरिंग झोंक दिया। पुलिस ने भी जवाबी फायरिंग की, लेकिन इस बीच नाविक को गोली लगने से नांव बेकाबू होकर नदी में पलट गई। नाव पर सवार 10 पुलिसकर्मी और एक नाविक नदी में डूबने लगे। डूब रहे लोगों में से तीन पुलिसकर्मी तो तैर कर नदी से बाहर आ गए, लेकिन दो इंस्पेक्टर समेत सात पुलिसकर्मी शहीद हो गए। इसके अलावा घटना में नाविक की भी मौत हो गई।
जन्माष्टमी हर साल उस जख्म को कर देती है हरा इस घटना के बाद से कुशीनगर पुलिस के लिए जन्माष्टमी (Janmashtami) अभिशाप हो गई है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हर साल उस जख्म को हरा कर देती है। इस दर्दनाक घटना की यादें आज भी पुलिसकर्मियों के जहन में है। जिसके कारण किसी थाने और पुलिस लाइन में जन्माष्टमी (Janmashtami) नहीं मनाई जाती है।