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कोटा के वन्यजीव प्रेमियों ने भेजा था प्रस्ताव कोटा के वन्यजीव प्रेमियों के सुझाव को आखिरकार राजस्थान सरकार ने मंजूरी दे ही दी। कोटा के वन्य जीव प्रेमी और ग्रीन कोर के कॉर्डिनेटर डॉ. सुधीर गुप्ता और हॉडोती नेचुरलिस्ट सोसाइटी के सचिव रविंद्र सिंह तोमर ने सरकार को सुझाव दिया था कि राजस्थान में बाघ संरक्षण के प्रयास 150 साल पुराने कॉरिडोर को फिर से जीवंत करने के बाद ही पूरी तरह से सफल हो सकेंगे। इसके लिए उन्होंने करौली और धौलपुर से लेकर कोटा और झिरी तक टाइगर कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव सरकार को सौंपा था। इस प्रस्ताव के सभी पहलुओं का आंकलन करने के बाद आखिरकार राजस्थान सरकार ने रियासतकालीन कॉरीडोर को फिर से विकसित करने की योजना को मंजूरी दे दी है।
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दो हिस्सों में बंटेगा काम बाघ के संरक्षण के लिए 150 साल पुराना टाइगर कॉरीडोर फिर से जिंदा करने के लिए राजस्थान सरकार ने उच्च स्तरीय प्रयास शुरू कर दिए हैं। धौलपुर से कोटा तक के कॉरिडोर को फिर से विकसित करने के लिए पूरी योजना को दो हिस्सों में बांटा गया है। पहले हिस्से में धौलपुर से लेकर रणथंभौर तक का इलाका शामिल किया गया है। इसके लिए रणथंभौर बाघ परियोजना के सीसीएफ (मुख्य वन संरक्षक) के अधीन 5 जिलों की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी दी गई है। वे इनकी मॉनिटरिंग करेंगे।
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नए हिस्से भी किए शामिल रणथंभौर टाइगर रिजर्व के सीसीएफ को निगरानी के लिए भरतपुर की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, धौलपुर की केसरबाग, वन विहार, रामविहार को भी रणथंभौर से जोड़ दिया गया है। जबकि सवाईमाधोपुर, करौली व बूंदी वन क्षेत्र पहले से ही रणथम्भौर के सीसीएफ के क्षेत्राधिकार में था। वहीं झिरी तक के बाकी इलाके को कोटा में मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के सीसीएफ के अधीन किया गया है। इस टाइगर कॉरीडोर के बनने के बाद सबसे ज्यादा फायदा कोटा को होगा। क्योंकि रणथंभौर टाइगर रिजर्व में जगह की कमी और भरतपुर, धौलपुर और करोली जिलों में छोटे वनक्षेत्र के साथ-साथ मानव दखल के चलते अक्सरकर टाइगर कोटा की ओर ही आ जाते हैं, लेकिन कभी ट्रेन तो कभी वाहनों की चपेट में आकर उन्हें घायल होना पड़ता है। कॉरिडोर बनने के बाद रणथम्भौर से लेकर मुकुंदरा, रामधारी और झिरी के जंगलों तक बाघों की बेरोकटोक आवाजाही हो सकेगी।
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ये हैं मुख्य उद्देश्य… डॉ. सुधीर गुप्ता के मुताबिक कोटा से धौलपुर तक के इलाके को पुराने जमाने में बाघों का कॉरिडोर माना जाता था। इसमें बाघ आते-जाते थे, लेकिन वनों की कटाई एवं मानवीय दखल होने के कारण बाघों का संरक्षित कॉरिडोर उजड़ता चला गया, लेकिन बीते कुछ सालों में रणथम्भौर में बाघों की संख्या बढऩे से इनका मूवमेंट पुराने कॉरिडोर पर होने लगा है। वहीं वन विभाग की सख्ती से इस कॉरिडोर में मानवीय दखल भी कम हुआ है, लेकिन अब इसे पुन: घना व संरक्षित करने उद्देश्य से ही इसकी कवायद की जा रही है।
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नदियों किनारे है बाघों का पर्यावास हाड़ौती नेच्युरलिस्ट सोसाइटी के सचिव रविंद्र सिंह तोमर का मानना है कि नदियों के किनारों एवं उससे सटे नालों के आसपास संरक्षित वन क्षेत्र में ही बाघों का पर्यावास है। कोटा से धौलपुर तक चम्बल नदी का प्रवाह है। इन नदियों के किनारों का वन क्षेत्र बाघ व वन्यजीवों के लिए मुफीद रहता है। बाघ भी इस रास्ते पर आते-जाते हैं। वनाधिकारी बताते हैं कि रणथम्भौर के टाइगर धौलपुर के झिरी एरिया में आते-जाते हैं। कई बार उनके फोटो एवं फुट प्रिंट भी लिए हैं। यह एरिया वह है, जहां चम्बल से नाले निकलते हैं। बाघ यहीं विचरण करते हैं। शिकार भी आसानी से मिल जाता है। यह भी पढ़ें
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चम्बल अभयारण्य की भी करेंगे मॉनिटरिंग रणथम्भौर बाघ परियोजना के सीसीएफ वाईके साहू ने बताया कि राज्य सरकार की ओर से कोटा से धौलपुर तक टाइगर कॉरिडोर विकसित करने की कवायद की जा रही है। रणथम्भौर बाघ परियोजना के सीसीएफ ही अब राष्ट्रीय चम्बल घडिय़ाल अभयाण्य क्षेत्र की भी मॉनिटरिंग करेंगे। राज्य सरकार ने इस सेंचुरी की जिम्मेदारी उनको सौंपी है। उनके द्वारा इस एरिया में टाइगर बेल्ट विकसित करने के प्रयास किए जाएंगे।