रणथम्भौर एक्सप्रेस के जनरल कोच के हाल विकट नजर आए। इनमें भारी भीड़ थी, सामान रखने की जगह तक नहीं। बच्चे रो रहे थे, महिलाओं के भी बैठने की जगह नहीं थी। इसी ट्रेन के विकलांग कोच में सामान्य लोग ठसे हुए थे। महिला कोच में पुरुष यात्री सफर कर रहे थे।
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इन लोगों को स्टेशन पर भी आरपीएफ या रेल प्रशासन का सहयोग नहीं मिलता। महिलाओं और विकलांगों की पीड़ा थी कि शिकायत पर भी कोई ध्यान नहीं देता। जो एक बार कोच में चढ़ जाता है, वह उतरता ही नहीं। और, नतीजा यह कि, जिन विकलांगों व महिलाओं के लिए ये कोच आरक्षित हैं उन्हें मजबूरन परेशानी में ही सफर करना पड़ता है।
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सवाईमाधोपुर निवासी लाली रणथम्भौर एक्सप्रेस में अपने बीमार और विकलांग भाई रमेश को बामुश्किल कोटा तक ला पाई। उसने बताया कि उसे विकलांग कोच में जगह ही नहीं मिली, किसी ने उसे घुसने तक नहीं दिया। आम यात्री ठसाठस बैठे थे।
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सवाईमाधोपुर में खड़े आरपीएफ के जवान ने भी मदद नहीं की। मजबूरी में बीमार भाई को जनरल कोच की गैलरी में ही बैठाना पड़ा। उन्होंने बताया कि उन्हें हर माह इलाज के लिए कोटा आना होता है, हर बार एेसे ही हालात होते हैं।
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कोटा से गुजरने वाली स्वर्ण मंदिर मेल, इंटरसिटी एक्सप्रेस, रणथम्भौर एक्सप्रेस, अवध एक्सप्रेस ट्रेन में जनरल कोच के हालात बुरे मिले। ये इतने खचाखच भरे थे कि घुसना मुश्किल।
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यात्रियों ने बताया कि ये तक पता नहीं होता कि जनरल कोच, महिला कोच व विकलांग कोच ट्रेन में आगे आएंगे या पीछे। यात्री आगे से पीछे भागते रहते हैं। इस भागादौड़ी में कई बार गिर कर घायल हो जाते हैं।