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ये गुरुजी न होते तो नाले की बदबू में ही सडते रहते बच्चे

कोटा. आज शिक्षक दिवस है। आज कोई भी जो कुछ है, वह गुरू की बदौलत ही है। गुरुजनों की भी अपनी तपस्या, साधना है। आइये आज हम मिलाते हैं ऐसे गुरुजनो से जिन्ह

कोटाSep 05, 2017 / 02:45 pm

Deepak Sharma

manoj bhardwaj & ashok gupta

कोटा. आज शिक्षक दिवस है। आज कोई भी जो कुछ है, वह गुरू की बदौलत ही है। गुरुजनों की भी अपनी तपस्या, साधना है। आइये आज हम मिलाते हैं ऐसे गुरुजनो से जिन्होंने खुद संघर्ष में बचपन काटा और देश का भविष्य गढऩे में समर्पित हो गए। ऐसे गुरुओं से भी, जो जुटे हुए हैं स्कूली शिक्षा की नींव में। बच्चों को पढ़ाने के साथ ही ये स्कूलों और सरकारी शिक्षा जगत की तस्वीर बदलने में जुटे हैं।
नाले के स्कूल को बना दिया बेस्ट
इनसे मिलिए। ये हैं वरिष्ठ अध्यापक मनोज भारद्वाज। भारद्वाज प्रेमनगर स्थित स्कूल में नियुक्त हैं, ये स्कूल नाले के ऊपर बना हुआ है। शुरुआत में तो यहां पढाना तो दूर खडे रहना भी मुश्किल था। बच्चे नाले के गंदे पानी और कचरे के कारण ही स्कूल नहीं आना चाहते थे। नाले में बने स्कूल तक आने का रास्ता भी कच्चा था। कच्ची बस्ती के अंदर नाले के ऊपर बने स्कूल गेट व चारदीवारी तक नहीं थी। बरसात में स्कूल में जा नहीं सकते थे। नाले में उफान पर स्कूल पानी से चारों ओर घिर जाता। यह पीड़ा उन्हें कचोटती थी। आखिर, जनसहयोग से रास्ते पर पट्टियां डलवाई। स्कूल आने जाने की राह खुली। बच्चों के लिए काफी अभावों में काम किया। और, इन्हीं सब सह शैक्षणिक कार्यों के वास्ते सरकार ने वरिष्ठ अध्यापक मनोज भारद्वाज को 2013 में राज्य स्तरीय शिक्षक पुरस्कार से नवाजा। भारद्वाज बताते हैं कि प्रेमनगर राउप्रावि में वे 2002 से 2013 तक रहे। उत्कृष्ट परिणाम रहा। नामांकन बढ़ाने में विशेष भूमिका निभाई। भामाशाहों से विद्यालय को आर्थिक सहयोग कराया। रक्तदान व चिकित्सा शिविर लगाए। वे कहते हैं कि शिक्षा के साथ ही बच्चों का सर्वांगीण उत्थान हो, वे जीवन का कौशल सीख सकें यही मंशा रही, सभी को इस दिशा में कार्य करना ही चाहिए।
 


भामाशाहों से मिलकर बदल दी स्कूलों की सूरत
एक शिक्षिका ने कठिन मेहतन व लगन के बल पर भामाशाहों के सहयोग से सरकारी स्कूलों की सूरत बदल दी। दलदल व बंजर भूमि पर सघन पेड़ लगाए, बच्चों को शत-प्रतिशत परिणाम दिया। ये हैं राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत शिक्षिका निर्मला आर्य का। आर्य महावीर नगर तृतीय में 2004 से 2009 तक कार्यरत रहीं। उन्होंने न केवल लगातार बोर्ड परिणाम शत-प्रतिशत दिए बल्कि भामाशाहों से13 लाख का सहयोग करवाया। इस सहयोग से होम साइंस लैब बनवाई, बच्चों को आर्थिक सहयोग दिलाया। स्कूल की बंजर व दलदल भूमि पर जनसहयोग से मिट्टी डलवाकर हरित वाटिका बनवा दी। अनूठे प्रयोग पर ईको क्लब ने राज्यस्तर पर स्कूल को पुरस्कृत किया। स्कूल जिला व मंडल स्तर लगातार दो साल तक बेस्ट चयनित हुआ। इसके बाद वे राबाउमावि तलवंडी में 2010 से 2014 तक रही। वहां भी बोर्ड के शत-प्रतिशत परिणाम रहे। यह स्कूल भी स्कूल जिला व मंडल स्तर लगातार दो साल तक बेस्ट चयनित हुआ। यहां उन्होंने सामाजिक सरोकार भी निभाए। नेत्र चिकित्सा शिविर लगाकर बच्चों को चश्मे वितरित करवाए। भामाशाह से सरस्वती मंदिर निर्माण करवाया। आर्य ने बताती हैं कि मन में एक ही बात है कि आर्थिक कारणों से किसी छात्र की पढ़ाई नहीं छूटे। स्कूलों में बेहतर कार्य पर उन्हें 2010 में राज्य स्तर व 2011 में राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 

पर्यावरण को समर्पित गुरुजी
और अब मिलाते हैं आपको एक ऐसे गुरुजी से जो पर्यावरण को समर्पित हैं। न केवल स्कूलों में, बल्कि सार्वजनिक और सामुदायिक रूप से भी वे पर्यावरण चेतना में जुटे हैं। इसकी बदौलत उन्हें राज्य स्तर पर पुरस्कृत भी किया गया। ये हैं राउमावि कुन्दनपुरा के प्रिंसिपल अशोक गुप्ता। गुप्ता को स्कूलों में कॅरियर गाइडेंस के लिए भी अलग पहचान मिली है। एसआईईआरटी उदयपुर ने बेस्ट कॅरियर टीचर के रूप में 1994 में उन्हें सम्मानित किया। वे बताते हैं कि आकाशवाणी कोटा में उनकी अब तक पर्यावरण चेतनार्थ 83 वार्ताएं प्रसारित हुई। उल्लेखनीय बहुंमुखी कार्य प्रदर्शन के लिए उन्हें 2008 में राज्यपाल ने पुरस्कृत किया।

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