जिस बेटे नरेन्द्र ने 70 वर्षीय पाना बाई को मलमूत्र के बीच कनवास में काल कोठरी में सडऩे-मरने को छोड़ दिया उसके जन्म पर उसने खूब तुलसी पूजन किया था। खुद पाना बाई ने शुक्रवार को आश्रम में मिलने आए नरेन्द्र को एक पंक्ति में यह बताकर तड़पती आत्मा का दर्द उंड़ेला और मुंह फेर लिया। पांच मिनट बेटा पड़ोसी के साथ वहां बैठा रहा लेकिन एक हजार दिनों की तड़प से छलनी मां के आंचल पर ये लम्हे मरहम नहीं लगा सके।
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पानाबाई के दर्द को ‘राजस्थान पत्रिका’ ने प्रमुखता से उजागर किया तो झालावाड़ में शिक्षिका पत्नी के साथ रह रहा बेटा नरेंद्र, कनवास के पड़ोसी गुलाब शंकर के साथ शुक्रवार को अपना घर आश्रम पहुंचा। बेटा व पड़ोसी आश्रम में पहुंचे तो वृद्धा ने उन्हें देखकर मुंह फेर लिया। आश्रम के सदस्यों ने जब बेटे नरेंद्र को पहचानने के लिए वृद्धा से कहा तो महिला कुछ देर तो उसे एकटक निहारती रही। बाद में शॉल से मुंह ढंककर घुमा लिया। आश्रम की महिलाकर्मियों ने जब उसेे बताया कि नरेंद्र लेने आया है तो उसने इनकार कर दिया। पांच मिनट बेटा पड़ोसी के साथ बैठे रहने के दौरान माहौल में शांति पसरी रही। फिर एकाएक रुंधे गले से एक पंक्ति में अंतरात्मा का दर्द छलका। वो बोली, ‘घणी तुलसां पूजी छी, जद थारो जनम होयो… असी करगो या तो कदी सोची भी न छी।’
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संवारा, मेडिकल चेकअप कराया
इधर, अपना घर आश्रम के सलाहकार मनोज जैन आदिनाथ ने बताया कि आश्रम में पंजीयन के बाद वृद्धा पानाबाई के केश संवारे गए, कटिंग की गई। स्नान कराकर आश्रम की ड्रेस पहनाई गई। मेडिकल चेकअप कराया, चिकित्सकों ने दवाइयां लिखी। शनिवार को सीटी स्कैन होनी है। आश्रम की दो महिला कर्मचारी पानाबाई की सेवा में लगाई हैं। उन्होंने बताया कि बेटा नरेंद्र मां से मिलने आया था। उसे मिलवा तो दिया, लेकिन जिला कलक्टर की स्वीकृति मिलने के बाद वृद्धा को बेटे के साथ भेजने पर विचार किया जाएगा। Read More: Human Angle Story: मां की आंखों से कोई देखेगा खूबसूरत दुनिया