हॉस्टल्स का स्वास्थ्य सुधारो
हॉस्टल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष गजेन्द्र सिंह ने बताया कि शहर में 1500 हॉस्टल व 15 हजार पीजी हॉस्टल संचालित हैं। बीमारियों की रोकथाम के लिए सभी हॉस्टल संचालकों को आगे आना होगा। पानी से भरे कूलर समय पर साफ कराएं। हॉस्टल संचालक और नगर-निगम अभियान चलाकर खाली भूखण्डों में जला तेल व लार्वा का छिड़काव करवाएं। हॉस्टल संचालक बच्चों को एेहतियातन बचाव के आयुर्वेदिक व अन्य रोग प्रतिरोधी नुस्खे भी चिकित्सकों की सलाह से दिला सकते हैं। नगर निगम कचरा पात्रों में भरी गंदगी को समय पर नियमित उठवाए।
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फॉगिंग का ब्रह्मास्त्र चलाए नगर निगम
फिजिशियन डॉ. मनोज सलूजा ने बताया कि डेंगू का मच्छर दिन में काटता है। इस कारण तीनों समय सुबह-दोपहर व शाम को फोगिंग होनी चाहिए। मशीनें नहीं हों, तो उसे बढ़ाया जाए। अस्पतालों में पेस्ट कंट्रोल ट्रीटमेंट होना चाहिए। इससे दीवारों पर स्प्रे का छह माह तक असर रहता है। दीवारों पर बैठते ही मच्छरों की मौत हो जाएगी। आमजन घरों में ज्यादा दिन पानी भरकर नहीं रखें। आस-पास साफ सफाई रखें। लेकिन नगर निगम के लिए फॉगिंग हमेशा से कमजोर कड़ी रही है। 64 लोगों की मौत के बाद भी नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग शहर में नियमित फॉगिंग नहीं करा सके हैं। जबकि निगम दावा करता है कि उसके बाद 2 बड़ी और 18 छोटी फोगिंग मशीनें हैं। जबकि चिकित्सा विभाग के पास 17 मशीनें हैं। शहर में कभी कभार सिर्फ 10 मशीनें ही दिखाई पड़ती है, जबकि 14 लापता हैं।
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मरीजों को मत समझो बेगाना, करो सही इलाज
समाजसेवी जीडी पटेल समेत अन्य जानकारों ने सुझाया कि प्रशासन और चिकित्सा विभाग अस्थाई अस्पताल बनाने के विकल्प को अपना सकते हैं। सामुदायिक भवनों, समाज भवनों का उपयोग इसमें किया जा सकता है। अन्य जिलों में जहां, हालात सामान्य हैं, चिकित्सा दलों को कोटा में नियुक्त कराएं। उपकरण भी मंगाएं। सामाजिक कार्यकर्ताओं की इनमें सेवाएं ली जा सकती हैं। कम गंभीर रोगियों को इनमें शिफ्ट किया जा सकता है। घर के मुकाबले यहां बेहतर मेडिकल केयर हो सकेगी। वहीं गंभीर लोगों को अस्पतालों में राहत मिलेगी। हालात विकट हैं, सोच सुदृढ़ करनी ही होगी।
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बदहवास चिकित्सा महकमा आयुष विंग को भी ले साथ
तलवंडी जिला आयुर्वेदिक अस्पताल के चिकित्साधिकारी डॉ. सुरेन्द्र भार्गव ने बताया कि शहर में फैल रही बीमारियों में एलोपैथिक उपचार में अफवाहों का बाजार गर्म है। मरीज को बेवजह पपीते के पत्ते, गोलियां व कीवी खाने, बकरी का दूध पीने और न जाने क्या क्या सलाह दी जा रही है। इससे कई मरीजों की तबीयत उल्टी बिगड़ रही है। एेसी अफवाहों से बचना चाहिए। आयुर्वेद में कई उपयोगी दवाइयां हैं, जो रोगी के लिए कारगर साबित हो रही हैं। हमने जीरो प्लेट्लेट्स व ब्लीडिंग वाले मरीजों को तक ठीक किया है। अफवाहों पर न जाएं, बदहवास न बनें। सटीक उपचार लें। अन्य पद्धातियों में भी उपचार हैं। प्रशासन को भी चाहिए कि संपूर्ण आयुष विंग का भी सहयोग ले, सभी मिलकर डेंगू स्वाइन फ्लू से भिड़ें।
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गंदगी-कचरे से अटा पड़ा है शहर, कराओ साफ
पूर्व महापौर सुमन शृंगी ने बताया कि शहर की चौपट सफाई-व्यवस्था बखूबी दुरुस्त की जा सकती है। इसके लिए अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की मॉनिटरिंग होनी चाहिए। अधिकारी, कर्मचारी व जनप्रतिनिधि सब साथ मिलकर वार्डों में घूमें। इससे अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को सच का पता चल जाएगा। अधिकारियों को क्षेत्रों की जिम्मेदारी भी दें। जहां ढिलाई मिले, सख्ती से कार्रवाई हो। फिर किसी भी स्तर पर जाना पड़े। यह लोगों की जिन्दगी का सवाल है। लापरवाही बर्दाश्त न हो।
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मत खेलो जिम्मेदारी की फुटबाल
जनता की अदालत ने जनप्रतिनिधियों और जिम्मेदार अधिकारियों से शहर को बीमारी मुक्त बनाने के लिए गंभीर होने की सलाह दी। साथ ही सुझाव भी दिया कि जिससे जो बन पड़े करे, लेकिन जिम्मेदारी की फुटबाल ना खेले। बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों ने यही किया। विधायक चंद्रकांता ने जनता की अदालत को जवाब दिया कि शासन सचिव को डेपुटेशन पर अन्यत्र लगे चिकित्सकों मूल स्थान पर भिजवाने के लिए लिखा है। वहीं कोटा दक्षिण विधायक संदीप शर्मा बोले कि बीमारियां फैलने के लिए सरकारी सिस्टम जिम्मेदार है। वहीं जिला कलक्टर रोहित गुप्ता ने कहा कि हाईरिस्क एरिया में चिकित्सा विभाग को सक्रिय होने के निर्देश दिए हैं। सर्वे कर विभाग को फोगिंग करने, सभी अस्पतालों में पेस्ट कंट्रोल ट्रीटमेंट करवाने के निर्देश दिए। जबकि सीएमएचओ दावा करते रहे कि पूरा फोकस बीमारियों से निपटने पर है। जबकि हालात ये हैं कि हॉस्पिटल में एलाइजा किट तक खत्म हो चुकी है।
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64 लोगों की मौत के बाद इन्हें याद आया फोकस
कोटा की शहर सरकार 64 लोगों की मौत के बाद हालात से निपटने के लिए अब फोकस शुरू करने का दावा कर रही है। शहर में सफाई और फॉगिंग आदि के लिए नगर निगम जिम्मेदार होता है, लेकिन शहर सरकार को अब तक इस जिम्मेदारी की सुध ही नहीं आई। यदि मच्छर पनपने के साथ ही फोकस हो गया होता तो डेंगू, स्वाइन फ्लू और स्क्रब टायफस बेकाबू नहीं होता। महापौर महेश विजय से जब इस लापरवाही के बारे में बात की गई तो बोले दशहरे मेले की आवंटन प्रक्रिया निपट गई है। अब सफाई व्यवस्था पर पूरा फोकस रहेगा। शहर में सफाई व्यवस्था को लेकर जिला कलक्टर के साथ बैठक हो चुकी है। तीन माह में डोर-टू-डोर कचरा संग्रहण की व्यवस्था लागू हो जाएगी। संसाधन भी खरीदे जाएंगे।