दो लोगों की मौत के बाद कोटा में स्क्रब टायफस की भयावहता की पोल खुली है। स्वास्थ्य विभाग इस जानलेवा बीमारी के आंकड़े न केवल छिपा रहा है, बल्कि उन्हें दबाने की कोशिश में भी जुटा है। आंकड़ों की सरकारी बेईमानी का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्क्रब टायफस के मरीजों की सही गिनती तक नहीं बताई जा रही है। सिर्फ तीन निजी अस्पतालों में अब तक 100 से ज्यादा मरीज आ चुके हैं, लेकिन महकमे के आंकड़े 25 पर ही अटके हुए हैं। जबकि शहर में 25 से ज्यादा अस्पताल हैं। उनकी गिनती तो विभाग के पास मौजूद ही नहीं है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अभी तक डेंगू के सिर्फ 537 केस ही आए हैं। जबकि असल में यह आंकड़ा 600 को भी पार कर चुका है।
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ऐसे छिपाए जा रहे हैं आंकड़े बिगड़ते हालात के बीच चिकित्सा विभाग ने आंखें मूंदने के साथ ही अपने कुतर्क भी गढ़ लिए। सरकारी अस्पतालों के बिगड़े हालात के मद्देनजर भी रोगी निजी अस्पतालों की ओर रुख कर रहे। लेकिन, यहां कार्ड टेस्ट में स्क्रब टायफस या डेंगू मरीज सामने आने के बाद चिकित्सा विभाग उनका एलाइजा कन्फर्म नहीं करा रहा। विभाग के अफसरों का कहना है कि इन दिनों ‘वर्क लोर्ड’ ज्यादा होने कन्फर्म कराने में दिक्कत है। एेसे में निजी अस्पतालों के मरीज एलाइजा टेस्ट के कन्फर्म नहीं आ रहे हैं। ऊपर से महकमा बिना एलाइजा कन्फर्म किए रोगियों को अपने आंकड़ों में शामिल ही नहीं करता।
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निजी अस्पताल भी नहीं दे रहे सूचना शहर में करीब 25 बड़े निजी अस्पताल हैं। स्क्रब टायफस के लगातार मामले सामने आने के बावजूद इनमें से ज्यादातर चिकित्सा विभाग को सूचना नहीं दे रहे हैं। जबकि मौसमी बीमारियों का प्रकोप शुरू होने के साथ ही चिकित्सा विभाग ने निजी अस्पताल संचालकों की बैठक लेकर उन्हें मौसमी बीमारियों के मरीजों व मौतों के आंकड़े जारी करने के सख्त निर्देश दिए थे।
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बयानों में विरोधाभास वरिष्ठ फिजिशियन केके पारीक कहते हैं कि चिकित्सा विभाग को हम लगातार हर बीमारी के मरीजों की सूचना दे रहे हैं। अस्पताल में स्क्रब टायफस के मरीज आने पर सूचना दी गई थी। इसके काफी मरीज आ चुके, लेकिन विभाग कार्ड टेस्ट को मान्य नहीं मान रहा। वहीं सीएमएचओ डॉ. अनिल कौशिक कहते हैं कि निजी अस्पतालों में कार्ड टेस्ट से पॉजीटिव मरीज आ रहे हैं, लेकिन जब तक सरकारी लैब में कन्फर्म नहीं हो, इन आंकड़ों में शामिल नहीं कर रहे हैं। सरकार भी एेसे आरडीटी को मान्य नहीं मानती है। हमारी लैबों में पहले से ही वर्क लोड ज्यादा है। एेसे में हम कन्फर्म भी नहीं करा पा रहे हैं।