मलबे के पहाड़ में दबी लाशे 24 दिसम्बर 09 को शाम करीब साढे़ पांच बजे मैं घर से वल्लभनगर की ओर जा रहा था। इसी बीच एक फोन आया कि हैंगिंग ब्रिज गिर गया। बहुत लोग दब गए हैं। यह सुनकर मैं कुछ ही देर में मौके पर पहुंचा तो देखा एक भाग चम्बल नदी में गिरा था। किनारे पर मलबे का पहाड़ सा बन गया। उस पहाड़ में कुछ श्रमिक और पर्यवेक्षक दब गए। करीब तीन घंटे बाद राहत कार्य शुरू हुआ, लेकिन उनमें से किसी को नहीं बचाया जा सका। मलबे के पहाड़ में दबी लाशों को तलाश करना भी चुनौतीपूर्ण था। करीब एक माह तक लाशें निकालने का सिलसिला चलता रहा। कई मजदूरों के परिजन लाशों के इंतजार में वहां कई-कई दिन इंतजार करते रहे, उनकी आंखों के आंसू तक सूख गए। राहत कार्य के समय मलबे में कई जगह मोबाइल की घंटियां सुनाई दे रही थी, उससे पता चल रहा था कि कहां लाश दबी है, लेकिन लाश निकालने के लिए मशीनों से कंक्रीट-सीमेंट को हटाने में कड़ी मशक्कत हुई। जब कई दिन हो गए तो दुर्गंध से ही पता चल सका था। एक-एक कर 48 लाशें निकाली गई।
निर्माणकार्य दोबारा शुरू होने की उम्मीद नहीं थी हादसे के बाद कई सालों के लिए निर्माण कार्य ऐसे ठहर गया कि दोबारा शुरू होने की कोई उम्मीद ही नजर नहीं आ रही थी। जांच कमेटियां पुल गिरने के कारणों और जिम्मेदारों को खोजने में लगी थी। इसके बाद भी न तो कोई ठोस कारण सामने आया, न ही किसी की जिम्मेदारी तय हो पाई। एक्सपर्ट कमेटी ने जांच में पाया था कि पुल ढहने के कई कारण हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक पुल का जो हिस्सा टूटा और जिसकी वजह से पुल ढहा, वह अस्थिर और कमजोर था। डिजाइन में खामियां और निर्माण की गुणवत्ता में कमी थी। यह सवाल भी उठा कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में दो कंपनियों को जिम्मेदार माना था। हादसे की मूल जिम्मेदारी गैमन इंडिया और हुंडई इंजीनियरिंग की रही। पुल निर्माण में दोनों कंपनियों की मुख्य भूमिका थी।
48 आहुतियां बेकार नहीं गई, हैंगिंग ब्रिज हमारे सामने है रिपोर्ट में कहा था कि दोनों कंपनियों की लापरवाही से पुल का निर्माण ऐसे अति संवेदनशील और असुरक्षित चरण में जा पहुंचा, जहां दुर्घटना होना संभावित था। दोनों कंपनियों ने नियमों की अवहेलना की और दुर्घटना की रोकथाम के लिए कोई कदम नहीं उठाए।मुश्किलों की फेहरिस्त इतनी लम्बी थी की ब्रिज का दोबारा निर्माण शुरू होने का रास्ता नहीं निकल पा रहा था। इसके बाद यह राजनीतिक मुद्दा बना और मीडिया में इसके बारे में लगातार खबरें आने लगी। फिर 2014 में निर्माण ने फिर से गति पकड़ी। बार-बार दिक्कतें आई, लेकिन 48 लोगों के प्राणों की आहुति बेकार नहीं गई और आज हैंगिंग ब्रिज हमारे सामने है।