scriptDIWALI: राजस्थान के राजाओं को बड़ी बेसब्री से रहता था शाम के 6 बजने का इंतजार | Royal Celebration of Diwali in kota | Patrika News
कोटा

DIWALI: राजस्थान के राजाओं को बड़ी बेसब्री से रहता था शाम के 6 बजने का इंतजार

रियासतकालीन राजस्थान के राजाओं को दिवाली के दिन शाम 6 बजने का इंतजार रहता था। जैसे ही 6 बजते थे कोटा के राजा उन्हें उपहारों से लाद देते थे।

कोटाOct 19, 2017 / 05:56 pm

​Vineet singh

Royal Celebration of Diwali in kota, Imperial diwali in kota, royal diwali Celebration in kota,  Diwali Celebration In Kota, diwali 2017, Shopping on Diwali Festival, Deepavali Puja, Deepavali in India, Lakshmi Puja, Diwali Laxmi Puja 2017, Laxmi Puja 2017, Rajasthan Patrika, Kota patrika, Patrika News, Kota News, Business News kotaRoyal Celebration of Diwali in kota, Imperial diwali in kota, royal diwali Celebration in kota,  Diwali Celebration In Kota, diwali 2017, Shopping on Diwali Festival, Deepavali Puja, Deepavali in India, Lakshmi Puja, Diwali Laxmi Puja 2017, Laxmi Puja 2017, Rajasthan Patrika, Kota patrika, Patrika News, Kota News

Royal Celebration of Diwali in kota

दिवाली का त्यौहार रियासतों और परंपराओं की जिक्र के बिना अधूरा है। रियासतकाल में कोटा की दिवाली की रौनक का यह आलम था कि पूरे राजस्थान के राजाओं, मनसबदारों और ठिकानेदारों को बड़ी बेसब्री से इसका इंतजार रहता था। खास तौर पर शाम छह बजने का। 6 बजते ही कोटा के महाराव दरीखाना सजाते और इस मौके पर आए सभी मेहमानों को तोहफों से लाद देते थे। दिवाली के इस जश्न की शुरुआत तोपों की सलामी से होती और पूरा कोटा गढ़ दीपकों से सजा दिया जाता था। देर रात तक होने वाली आतिशबाजी की तो राजस्थान की सभी रियासतें कायल थीं।
इतिहासकार प्रो. जगत नारायण बताते हैं कि मिती कार्तिक सुदी चौदस को कोटा में दिवाली का उत्सव बड़े ही शानो-शौकत के साथ मनाया जाता था। दिवाली के दिन सवेरे गोंदगरी व बाढ़ के साढ़े बख्शी खाना के मार्पत राज्य के अधिकारियों में वितरित कराए जाते थे और इसके बाद शुरू होता था शाम 6 बजने का इंतजार। जैसे ही घड़ी में घड़ी में 6 बजते हर कोई गढ़ में सजने वाले दरीखाने की शान का हिस्सा बनने चल पड़ता। 6:30 बजे महाराव दरीखाने पर पधारते और दीपोत्सव की रौनक शुरू होती।
यह भी पढ़ें

लन्दन से कम नहीं है कोटा, देखिए दिवाली से सजे शहर की खूबसूरत तस्वीरें


बृजनाथ जी की लाल छतरी का दरीखाना

प्रो. जगत नारायण बताते हैं कि कोटा दरबार में सजने वाले इस दरीखाने को बृजनाथ जी की लाल छतरी का दरीखाना कहा जाता था। कोटा के महाराव दिवाली के दिन की शुरुआत बृजनाथ जी के मंदिर में दीयों का पूजन और दीपदान करके करते थे। इसके बाद लक्ष्मी पूजन होता था। फिर भगवान बृजनाथ जी लाल छत्री के रूप में कोटा दरबार में पधाकर सिंहासन पर विराजते थे और कोटा के महाराव हथियां पोल की बिछायत पर बाहर जाकर दर्शन करते थे। दर्शन के बाद महाराव सरदारों को चौबदारों की छड़ियां देते थे। दर्शन खुलने के बाद ठाकुर जी को सलामी दी जाती थी।
यह भी पढ़ें

दिवाली की रात बचें इन टोने-टोटके से, नहीं तो जिंदगी हो जाएगी तबा


शाम छह बजे शुरू होता दिवाली का जश्न

कोटा रियासत में होने वाले दिवाली के जश्न की राजस्थान की बाकी रियासतें ही नहीं पूरी दुनिया कायल थी। बृजनाथ जी के दर्शन और सलामी के बाद इस जश्न की शुरुआत होती। अखाड़े में जेठी कुश्ती लड़ते। नक्कार खाना और शाही बैंड़ जश्न की धुनें बजाता रहता। दरबार के रास्ते में सरदार मुरतबी निशाल लिए खड़े रहते। भगतणियां बधाइयां गातीं। चौक में घोड़े और हाथी हाजिर हो जाते। इसके बाद मीठे तेल और घी के दीपक चौक और छतरी पर जगह-जगह सजाई जाती।
यह भी पढ़ें

राजस्थान चुनाव में दो सीटें जीत, भाजपा की मनी दिवाली


दो तोप करती थीं 3-3 फायर

इसके बाद आतिशाबाजी चलाई जाती। जिससे पूरे कोटा का आसमान नहा उठता। इसके बाद ठाकुर जी की आरती होती और फिर उन्हें दो तोपों से 3-3 फायर करके सलामी दी जाती। इसके बाद महाराज कुमार की हीड़ें निकलती थीं। मंदिर की ड्योढ़ी के बाहर आते ही सभी को हीड़ें बख्शी जातीं। ठाकुर जी के दर्शन का कार्यक्रम खत्म होने के बाद महाराज कुमार हीड़ें लेकर महारानी के यहां पधारते। फिर यादघर जाते।

Hindi News / Kota / DIWALI: राजस्थान के राजाओं को बड़ी बेसब्री से रहता था शाम के 6 बजने का इंतजार

ट्रेंडिंग वीडियो