बाल विवाह के खिलाफ जब भी बहस छिड़ती है तो सारा सार सामाजिक जागरूकता पर ही आकर टिक जाता है। कुछ इसी तरह, सुल्तानपुर क्षेत्र में बाल विवाह का दंश झेल चुके एक गुर्जर परिवार ने प्रायश्चित करते हुए 18 वर्ष बाद अपनी बिटिया का पुनर्विवाह कर नई मिसाल पेश की है। मामला दीगोद ग्राम पंचायत के देवपुरा गांव का है।
गौणा करने के लिए दबाव बनाया करीब अठारह वर्ष पूर्व किसान मोडूलाल गुर्जर ने डेढ वर्षीय बालिका चेतना का विवाह छप्पनपुरा गांव के बंटी पुत्र रतनलाल के साथ करा दिया था। विवाह के कुछ समय बाद चेतना के ससुराल वालों ने गौणा करने के लिए दबाव बनाया। लेकिन परिजन कम उम्र में बेटी को ससुराल नहीं भेजना चाहते थे। इसी को लेकर सम्बंध बिगड़ गया।
कभी बाल विवाह नहीं करने की शपथ ली घटना से सबक लेकर परिवार ने कभी बाल विवाह नहीं करने की शपथ ली। अब जब चेतना की विवाह योग्य आयु हुई तो पिता ने कुरीति को दरकिनार कर उसका विवाह करना तय किया। नरेंद्र गुर्जर पुत्र प्रहलाद गुर्जर निवासी कलमंडी से रिश्ता तय कर दूधयाखेड़ी गांव में 17 मई को समाज के सामूहिक विवाह सम्मेलन में बेटी को विदा किया। यहां भी पिता ने सभी रिश्तेदारों को बाल विवाह नहीं करने का संकल्प दिलवाया।
समाज को संतुष्ट किया दुल्हन चेतना का भाई त्रिलोक गुर्जर का कहना है कि समाज में पुनर्विवाह को मान्यता मिलना जटिल था। फिर भी समाज को संतुष्ट कर बेटी का जीवन बचाने को हमने पहल की। उम्मीद है इससे समाज को नई दिशा मिलेगी। नाता जैसी गैर कानूनी परिपाटी पर अंकुश लगाने की पहल करने का प्रयास किया है।
समाज का नई दिशा मिलेगी
समाज का नई दिशा मिलेगी
समाज पदाधिकारी इन्द्रराज गोचर खुद मामनते हैं कि बाल विवाह को दरकिनार कर मोडुलाल ने बेटी का पुनर्विवाह करवाया है वह सराहनीय है। समाज को नई दिशा मिलेगी। कुरीतियों का विरोध करना ही चाहिए।