कोटा

Big Issue : दशकों पहले घोंट दिया नदी-नालों व तालाबों का गला, अब गले तक आ रही बाढ़

जरा सी बारिश…ज्यादा सी लगे…
-बाढ़ का कारण अतिवृष्टि नहीं बल्कि अतिक्रमण, जिन्हें हटाने का सरकारों ने नहीं दिखाया साहस
-पुराने रास्ते बदलकर आबादीमें घुस रहा बरसाती पानी-कई शहरों में जरा सी बारिश में ही जलमग्न हो जाती हैं कॉलोनियां

कोटाAug 10, 2021 / 11:16 pm

Kanaram Mundiyar

दशकों पहले घोंट दिया नदी-नालों व तालाबों का गला, अब गले तक आ रही बाढ़

के. आर. मुण्डियार
-जलभराव व बहाव रास्तों पर बसा दी कॉलोनियां, अब पुराने रास्ते तलाश आबादी में घुस रहीं नदियां
-प्रदेश के कई शहरों में बरसात के दौरान जलमग्न हो रही कॉलोनियां

-बड़ा सवाल : आखिर डूब क्षेत्र, नदी के तटों व तालाबों में क्यों बसा दी बस्तियां, कौन है जिम्मेदार

जयपुर . कोटा .

जरा सी बारिश हो तो हालात बिगड़ जाएं। बारिश जरा ज्यादा हो तो बाढ़ आ जाए। राजस्थान के लोग पिछले कुछ दशक से इसी विडम्बना से जूझ रहे हैं। कारण एक ही है, नदियों-नालों और तालाबों पर अतिक्रमण। जलस्रोतों पर अतिक्रमण लगातार बढ़ते रहे लेकिन सरकारें उन्हें हटाने के बजाय बचाती रहीं। ऐसे में स्थिति यह हो गई है कि मानसून के दौरान जरा सी बारिश भी लोगों को ज्यादा लगने लगती है।
राजस्थान पत्रिका ने राज्यभर में जलस्रोतों के सन्दर्भ में पड़ताल की तो कदम-कदम पर हालात चिन्ताजनक नजर आए।
शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण ज्यादातर जगह नदियों व बरसाती नालों को रास्ता बदल लेना पड़ा है। नदियां कृत्रिम तटों को तोड़कर पुराने वास्तविक रास्तों से आबादी क्षेत्रों में पहुंचकर बाढ़ में बदल रही हैं। औसत बरसात में ही कई क्षेत्रों में हालात खराब हो रहे हैं। राज्य के कई शहरों व गांवों में बाढ़ का मुख्य कारण पानी की आवक व निकासी मार्ग बाधित हो जाना एवं तालाब-नदी व नालों की जमीन पर बस्तियां खड़ी हो जाना है।

इस साल फिर बिगड़े हालात, क्या सबक लेंगे जिम्मेदार?
इस मानसून में भी राज्य के कोटा, बारां व झालावाड़ में बाढ़ के हालात बन रहे हैं। चम्बल नदी कोटा से लेकर धौलपुर तक हालात बिगाड़ रही है। झालावाड़ की रूपली नदी ने खानपुर में प्रचंडता दिखाई। पार्वती नदी ने कोटा इटावा-सुल्तानपुर क्षेत्र में तबाही मचा दी। हजारों कच्चे व पक्के मकान ढह जाने से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। वर्ष 2019 में चम्बल में आई बाढ़ ने कोटा की कई कॉलोनियों में भारी तबाही मचाई थी। ऐसे में सवाल फिर ज्वलन्त हो रहा है कि क्या इस बार जिम्मेदार सबक लेंगे?

यह है स्थिति: पानी की राह में बसा दी बस्तियां
700 से अधिक कॉलोनियां जयपुर में बसी हैं बहाव क्षेत्र या तलाई की जमीन पर
300 से अधिक कॉलोनियां जयपुर के पृथ्वीराज नगर क्षेत्र में बसी हैं पानी के बहाव क्षेत्र में
25 से अधिक कॉलोनियां द्रव्यवती नदी और करतारपुरा नाले के किनारे
30 से अधिक बस्तियां जोधपुर में तालाबों के रास्तों पर बस गई
13 कॉलोनियां व बस्तियां जलमग्न हो जाती हैं अजमेर में बरसाती पानी के मार्ग में अतिक्रमण के कारण
12 बस्तियां जलमग्न हो जाती हैं कोटा में हर साल
इसलिए नदियां उफनी, बरसात बनी बाढ़

-नदियों के तटों पर अवैध बस्तियां बस गई, पानी का फैलाव सिकुड़ गया।
-तालाबों-नालों की जमीन पर मकान खड़े हो गए, पानी निकासी के रास्ते रोक दिए। इसलिए जलभराव व निकासी की जगह ही नहीं बची।
-कॉलोनियों व मुख्य मार्गों की सड़कें सीमेंट-कंक्रीट की बन रही हैं। साइड में मिट्टी की खाली जगह ही नहीं बच रही। इसलिए बरसाती पानी का जमीन में पुनर्भरण नहीं हो रहा।
-हर साल ड्रेनेज व नालों की सफाई प्रभावी तरीके से नहीं हो रही। निकासी के मार्ग बाधित है।
प्रदेश में नदी-नाले व तालाबों का ऐसे घोंटा गला-
जयपुर :

-बांध व तालाबों के रास्तों पर भूमाफियाओं ने बसा दी अनगिनत कॉलोनियां, जिम्मेदारों ने रोका तक नहीं।
-रामगढ़ बांध के बहाव क्षेत्र में कब्जे होने के बाद ही पानी आना बंद हुआ। यहां बहाव क्षेत्र के रुख को ही मोड़ दिया। कभी रोड़ा नदी का पानी बांध में आता था।
-कुम्हारों की नदी में नाहरगढ़ की पहाड़ी से पानी आता था, लेकिन कब्जे हो गए। बहाव क्षेत्र का रुख बदल दिया। घाटगेट स्थित खानिया के बांध पर भी कॉलोनी कट गई।
-हरमाड़ा नहर का अस्तित्व ही खत्म हो गया। रास्ते में कई कॉलोनियां बस गई।
-आकेड़ा बांध पर भी कब्जे कर लिए गए। अतिक्रमियों ने कचराल नदी का अस्तित्व ही खत्म कर दिया।
-खो नागोरियान तालाब व कालवाड़ रोड कालक डैम के बहाव क्षेत्र से भराव क्षेत्र में कब्जे हो गए। भावगढ़ बंध्या लूडियावास में तो कॉलोनी ही काट दी।
-सबसे ज्यादा तलाई पृथ्वीराज नगर में थीं। दो दशक में अधिकतर तलाई खत्म हो गईं। यहां बहाव क्षेत्र में 300 से अधिक कॉलोनियां बस गई। अजमेर रोड सेज में भी विकास के नाम पर तलाई पर कब्जे कर लिए।
कोटा:
अनंतपुरा तालाब एवं पानी के बहाव क्षेत्र प्रेमनगर इत्यादि क्षेत्रों में बस्तियां बसी हैं। अब बरसाती पानी को जगह नहीं मिल पा रही।

चम्बल किनारे पर खंड गांवड़ी के बड़े भू-भाग पर आबादी बसी हुई हैं। चम्बल नदी का प्रवाह बढऩे पर यह बस्ती जलमग्न हो जाती है।
प्रेमनगर, गोविन्द नगर, काशीधाम, कौटिल्य नगर, गणेश विहार, बालाजी नगर आदि क्षेत्र नालों के पानी की आवक से प्रभावित है।
बूंदी :
-तालाब गांव के तालाब व फूलसागर तालाब में आबादी दिनों-दिन बढ़ रही है।

-जैतसागर झील से निकल रहे नाले पर पक्के निर्माण कर लिए। रेकॉर्ड में 72 फीट नाला अब नाली बनकर रह गया। बरसात में बहादुर सिंह सर्किल से पुलिस लाइन रोड-देवपुरा तक जाने वाली सड़क नदी बन जाती है।

जोधपुर:

-प्राचीन बाइजी का तालाब में मलबा डाला जा रहा है। तालाब की नहरें तबाह कर दी गई। अब पानी सड़कों पर बहकर कहर बरपाता है।
-कुछ साल पहले महामंदिर क्षेत्र में मानसागर तालाब की जमीन को मलबे से पाटकर गार्डन बना दिया गया।
-नागौरी गेट शिप हाउस के पास नया तालाब को मलबे से पाटा जा रहा है।
-गुरों का तालाब अतिक्रमण की चपेट में हैं। पानी के रास्तों पर मकान बन गए। प्राचीन गंगलाव तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में मलबा लगातार बढ़ रहा है।
-उम्मेदसागर तालाब के रास्ते में बस्तियां बस गई। नहरों को अतिक्रमण खा गया। बरसात का पानी चौपासनी हाउसिंग बोर्ड में परेशानी बढ़ाता है।

अजमेर:
-ऐतिहासिक आनासागर झील के किनारे की जमीन पर सागर विहार, गुलमोहर कॉलोनी, करणी नगर सहित कॉलोनियां बसा दी गई। पिछले कुछ दशक में झील लगातार सिकुड़ती चली गई। झील के कैचमेंट एरिया में आवासीय कॉलोनियां बसा दी गई।
-प्राचीन पाल बिछला तालाब में बस्तियां खड़ी हो गई। अब तालाब केवल नाम का ही रह गया।
-फॉयसागर व आनासागर को जोडऩे वाली बांडी नदी तो नाला ही बनकर रह गई। अतिक्रमणों से सिकुड़ी नदी का पानी राम नगर व ज्ञान विहार आदि बस्तियों में घुस जाता है।
-धोलाभाटा, गुर्जर धरती, जादूगर बस्ती, नगरा आदि कॉलोनियां बहाव क्षेत्र में होने से हर साल जलमग्न हो जाती है।
-ब्यावर के ऐतिहासिक बिचड़ली तालाब को मलबा डालकर पाटा जा रहा है।

उदयपुर :
-रूपसागर तालाब के किनारे कॉलोनियां बसी हुई है। जहां पर तालाब में पानी आते ही पानी भर जाता है।
-गोवर्धन सागर तालाब से थोड़े दूर बसी कॉलोनियां में भी पानी भरता है।
-आयड़ नदी के किनारे आलू फैक्टी व करजाली हाउस में भी पानी भर जाता है

-रूपसागर, फूटा तालाब आदि क्षेत्र के पेटे व सीमा में कई अवैध निर्माण हो गए हैं।
बीकानेर :

-गिन्नाणी क्षेत्र में सबसे ज्यादा जलभराव होता है। सूरसागर तालाब की पाल ऊंची कर देने से हालात बिगड़ रहे हैं। कई बार तालाब व जूनागढ़ किले के बाहर बनी खाई की दीवार तोड़कर पानी की निकासी करनी पड़ती है।
दशकों पहले घोंट दिया नदी-नालों व तालाबों का गला, अब गले तक आ रही बाढ़
नेताओं ने लुटवा दिया तालाब-

राजनैतिक दबाव व विरोध के कारण अफसर तालाब-नालों पर बसी अवैध बस्तियों को हटाने की कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाते। कुछ साल पहले कोटा में अनन्तपुरा तालाब पर बसी बस्ती को हटाने की कार्रवाई का सख्त कदम उठाने वाले नगर निगम के तत्कालीन आयुक्त एवं आईएएस डॉ. समित शर्मा को नेताओं का भारी विरोध झेलना पड़ा था। तब शर्मा को मौके पर ही एपीओ कर दिया गया। इसी तरह कुछ साल पहले कोटा में चम्बल किनारे खंड गांवड़ी बस्ती में कार्रवाई करने गए यूआईटी के दस्ते पर पथराव से हमला कर दिया गया था। अफसरों व कर्मचारियों को भागकर जान बचानी पड़ी।

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