कोटा

राजस्थानी साहित्यकारों ने शब्दों की माला से किया सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता का अभिनंदन

कोटा आए सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता के सम्मान और अभिनंदन का सिलसिला लगातार जारी है। राजस्थानी साहित्यकारों ने भी उनका स्वागत किया।

कोटाDec 04, 2017 / 03:31 pm

​Vineet singh

Rajasthani writers greetings CRPF commandant Chetan Cheeta

जांबाज चीता के सम्मान में राजस्थानी कलम भी खूब बोली। राजस्थान पत्रिका के Guest Writer और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार कनक एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार ओम नागर ने अपने अपने अंदाज में सीआरपीएफ कमांडेंट और कोटा के जांबाज बेटे चेतन चीता का अभिनंदन किया। प्रस्तुत है अतुल कनक का लिखा ओजस्वी लेख…. सलाम शेरदिल चीता! साथ में सुनिए ओम नागर की कविता लौट आए तुम…
 

नाम भले ही चीता हो लेकिन अपनी चेतना से दुश्मन के नापाक इरादों को धता देने वाले कोटा के चेतन ने बता दिया कि वो असली शेर है। शेर के शिकार पर अब तो पाबंदी है लेकिन पहले भी जो लोग शेर का शिकार करने जाते थे वो शेर को फँसाने के लिये किसी बकरी या पाड़े को बाँधकर छुपकर शेर पर निशाना लगाते थे। शेरों का शिकार हमेशा घात लगाकर ही किया जाता है। समझ में नहीं आता कि बुजदिलों की तरह घात लगाकर किसी का शिकार कर लेने में क्या बहादुरी है? चेतन का सामना भी घात लगाकर बैठे आतंकवादियों से ही हुआ था।
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सारी दुनिया में निर्दोषों की जान लेकर अपनी पीठ थपथपा रहे आतंकवादियों भूल जाते हैं कि पाप का प्रदूषण जब लगातार दमघोंटू होने लगता है तो फिर हनुमन को सबक सिखाने के मकसद से उनकी पूँछ में लगाई गई आग ही देवताओं तक को युद्ध में पराजित कर देने वाले रावण की राजधानी को स्वाहा कर देती है।
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चेतन चीता ने आतंकवादियों से संघर्ष करने में ही नहीं बुरी तरह से घायल होने के बाद मौत के मंसूबों को पछाड़ने में भी अपनी ताकत दिखाई। ऐसा दिलेर बेटा जब घर लौट कर आता है तो उसके स्वागत का अवसर स्वयं में एक बड़ा उत्सव बन जाता है। बूँदी के राजकवि सूर्यमल्ल मिश्रण के ग्रंथ वीर सतसई की नायिका एक दोहे में अपनी सखि से कहती है कि -पति युद्ध में वीरों के छक्के छुड़ाने के बाद बुरी तरह घायल होकर घर लौटा है। अब उसके बचने की संभावनाऐं नहीं हैं। इसलिये मंगजगीत गा क्योंकि लगता है कि उसके साथ मेरे भी स्वर्गारोहण हेतु कूच करने का समय आ गया है। यह वह दौर था जब वीरांगनाऐं अपनी पतियों की चिता पर प्राणोत्सर्ग कर दिया करती थी। लेकिन प्रेम में प्राणों का बलिदान तभी महत्वपूर्ण होता है जब वह देश या समाज के हित के संकल्पों को साधे।
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हाड़ी रानी ने यही तो किया था। हाड़ौती की बेटी थी हाड़ी रानी। अपने पति को उसके प्रेम के कारण युद्ध में जाने से हिचकिचाते हुए देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा। फिर पति ने जब युद्ध में जाने से पहले अपने साथ रखने के लिये कोई निशानी माँगी तो यह सोचकर अपना ही सिर काट कर निशानी के तौर पर दे दिया कि जब यह रूप ही नहीं रहेगा तो राव जी को किसका मोह दुश्मनों का सामना करने से रोकेगा। बूँदी के हाड़ा कुंभा ने जब चित्तौड़ की सेना में रहते हुए यह देखा कि राणा जी उसकी जन्मभूमि के किले की नकल बनाकर उसपर आक्रमण कर रहे हैं और उस नकली किले को जीत कर बूँदी जीत लेने का अपना प्रण पूरा करना चाहते हैं तो वीर कुंभा अपनी जन्मभूमि के नकली दुर्ग पर भी मर मिटा। वीरता किसी प्रशस्ति या किसी उपलब्धि की बाट थोड़े ही जोहती है।
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पन्नाधाय ने जब अपने बेटे चंदन को हत्यारे बनवीर की पापी मंसूबों के हवाले करके मेवाड़ के राजकुमार की जान बचाई थी तो यह नहीं सोचा था कि इतिहास में उसका बलिदान सोने के अक्षरों से लिखा जाएगा। यह वो धरती है जिसके वीरों ने 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों के हौंसले पस्त कर दिये थे और भारत छोड़ो आंदोलन के समय निहत्थे स्वतंत्रता सैनानियों ने अंग्रेजों की पिट्ठू पुलिस की लाठियों को धता बताते हुए कोतवाली पर कब्जा कर लिया था। निर्भयसिंह, सुभाषशर्मा जैसे जांबांज वतन की आन पर मर कर सबको जीने का पाठ पढ़ा गये हैं। उस धरती के बेटे ने दुश्मन के सामने डट कर ही नहीं, मौत के इरादों को भी चुनौति देकर शौर्य का नया अध्याय लिखा है। सलाम शेरदिल चीता!

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