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कोलंबो तक पहुंची कोटा के हेरिटेज की धमक, अब शहनाई जोड़ेगी नया रिश्ता

कोटा और कोलंबो के बीच अब ‘शहनाई’ का रिश्ता जुड़ेगा। इंटरनेशनल टूरिज्म रिसर्च सिम्पोजियम में राजस्थान के वेडिंग टूरिज्म को खासा पसंद किया गया।

कोटाOct 13, 2017 / 11:05 am

​Vineet singh

Promotion of Kota Tourism in ITRS 2017 at Colombo

 
कोटा की ऐतिहासिक विरासत की धमक कोलंबो तक सुनाई पड़ने लगी है। इंटरनेशनल टूरिज्म रिसर्च सिम्पोजियम में राजस्थानी धरोहरों ने रोजगार के नए अवसर खोजे और परदेशियों को सिर्फ घूमने के लिए ही नहीं शादी का यादगार समारोह आयोजित करने के लिए भी म्हारे देश पधारने का न्यौता दिया।
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कोलंबो आईटीआरएस में छाया कोटा

कोटा विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनुकृति शर्मा पिछले दिनों जब श्रीलंका में राजस्थान की विरासत और अनूठी परम्पराओं की जीवंत झांकी प्रस्तुत कर रही थी, तो मानो श्रोताओं के दिलों पर हमारी संस्कृति की छाप लगती जा रही थी। मौका था यूनिवर्सिटी ऑफ कोलम्बो की ओर से टूरिज्म स्टडी प्रोग्राम के तहत 3 से 4 अक्टूबर तक आयोजित ‘इंटरनेशनल टूरिज्म रिसर्च सिम्पोजियम (आईटीआरएस-2017)’ का। उन्होंने ‘हेरिटेज एंड वेडिंग टूरिज्म’ पर व्याख्यान दिया। बताया कि किस तरह राजस्थान की विरासत में वेडिंग सेलिब्रेशन भव्य और यादगार हो सकता है। बकौल अनुकृति, श्रीलंका में प्री-वेडिंग कल्चर नहीं है, ट्रेडिशनलिज्म भी नहीं है। लेकिन बेहतर सेलिब्रेशन सभी का स्वभाव। एेसे में हमारी विरासत उन्हें बखूबी आकर्षित कर सकती है।
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शहनाई जोड़ेगी नया रिश्ता

व्याख्यान से लौटने के बाद डॉ. शर्मा ने ‘पत्रिका’ को बताया कि श्रीलंका का कल्चर थोड़ा भिन्न है, वहां प्राकृतिक सौन्दर्य तो है, लेकिन साथ में आधुनिक विकास है। हमारे यहां पूर्वजों की धरोहर है। हवेलियां, महल और समृद्ध कल्चर है। एेसे में इन्हें परदेसी शादियों के आयोजनों से जोड़ा जाए तो पर्यटन को और बढ़ावा मिल सकता है। विरासत संजोए महलों व बड़े गार्डन्स में गूंजती शहनाई, लोकगीतों से रोजगार के बेहतरीन अवसर बढ़ेंगे। उन्होंने बताया कि राजस्थान में प्री-वेडिंग शूट में भी रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। वेडिंग टूरिज्म दुनियाभर में बढ़ रहा है। हमें पुरानी चीजों को संभालना होगा।
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सहेजनी होगी विरासत

राजस्थान व श्रीलंका टूूरिज्म में कई भिन्नताएं हैं। राजस्थान में पुराने महल, हवेली ही टूरिज्म की श्रेणी में नहीं, बल्कि हमारी परम्पराएं, लोक गीत, लोकनृत्य, ट्रेडिशनल फूड भी दुनियाभर में अनूठी पहचान रखते हैं। इन सबको संरक्षित करना होगा। परिपक्व पॉलिसी बनाई जानी चाहिए। स्वयंसेवी संगठनों को भी को साथ लिया जा सकता है।

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