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दो भाइयों की दूरियां मिटाती है वंशावली विधा मुख्य अतिथि रहे संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वंशावली अकादमी के अध्यक्ष महेंद्र सिंह बोराज ने कहा कि वंशावली समाज का महत्व जितना द्वापर, त्रेता युग में था, उतना ही आज भी है। भागवत कथा को धरती पर लाने वाले नेमीशरण वंशावली समाज के पूर्वज थे। वंशावली लेखन वह चाबी है जिससे दो दिलों का द्वार खुलता है। दो भाइयों की दूरियां मिटती हैं। यह विधा समाज को जोड़ती है। दो रिश्तेदारों में मिलाप बढ़ाने में वंशावली लेखन का महत्वपूर्ण योगदान है। अभी वंशावली लेखन पर मिडिल क्लास में एक अध्याय शुरू किया है। जल्द ही सेकंडरी, हायर सेंकडरी, कॉलेज शिक्षा में भी इसके पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे। वहीं इस विधा को जिंदा रखने के लिए सरकार की ओर से भी पूरा प्रयास किया जाएगा।
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समाज समझने लगा है महत्वमुख्य वक्ता संस्था के संरक्षक रामप्रसाद ने कहा कि वंशावली लेखन की कला सिर्फ इस समाज के पास ही है। उनके वंश लेखन की विधा, लिपि को आज भी कोई भी सामान्य व्यक्ति पढ़ नहीं सकता। वंशावली लेखन परम्परा को जीवित रखने के लिए विभिन्न वर्गों में बंटे समाज के लोगों को एक मंच पर लाना जरूरी था। समाज को संगठित करते वक्त विरोध भी हुआ। अब समाज उनकी परम्परागत कला को समझने लगा है। उन्होंने आह्वान किया कि समाजों के इतिहास का जिंदा रखना है तो उन्हें वंशावली लेखन परम्परा जिंदा रखनी होगी। अध्यक्षता कर रहे कोटा विवि के कुलपति पीके दशोरा, विशिष्ट अतिथि संस्थान के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. बाबूलाल भाट, कोटा विवि के स्कूल ऑफ हेरीटेज, ट्यूरिज्म के समन्वयक मोहनलाल साहू रहे।