उन्होंने 1971 में बीटेक करने के बाद कोटा की जेके सिंथेटिक्स फैक्ट्री में मैकेनिकल इंजीनियर की नौकरी की। तीन वर्ष बाद ही उन्हें मस्कुलर डिस्ट्रोफी जैसी असाध्य बीमारी ने घेर लिया। गंभीर बीमारी होने से उन्होंने जॉब छोड़ा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
अंधेरे में प्रकाश की किरण उस समय इलाज कर रहे डॉक्टर्स ने कहा था कि इस रोग में 15-20 वर्ष का जीवन ही शेष है। इसलिए एजुकेशन एट होम से बच्चों को पढ़ा सकते हो। घर पर डायनिंग टेबल पर कुछ बच्चों को नि:शुल्क पढ़ाने लगे। 11वीं व 12वीं के बच्चों को मैथ्स पढ़ाने से 1-2 वर्ष बाद 70 में से 50 बच्चे आईआईटी में चयनित होने लगे। इससे अंधेरे में प्रकाश की किरण मिल गई। उन्होंने विज्ञान नगर में बंसल क्लासेस कोचिंग की नींव रखी, फि र कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। करीब 35 वर्षो में 25 हजार से अधिक विद्यार्थियों को आईआईटी में पहुंचाकर कोटा कोचिंग का नाम दुनियाभर में रोशन कर दिया। यूएसए की वॉल स्ट्रीट जर्नल मैग्जीन ने उन्हें कोटा कोचिंग का पायोनियर बताया था। इकलौता ऐसा कोच, जिसने हजारों विद्यार्थियों के साथ कोचिंग शिक्षक भी तैयार कर कोटा कोचिंग को नेशनल ब्रांड के रूप में स्थापित कर दिया। शहर के सभी कोचिंग संस्थानों के निदेशकों व वरिष्ठ फैकल्टी सदस्यों ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है।
जीवन एक प्रश्नपत्र की तरह… हमेशा एक विजेता की तरह सोचें दिवंगत वीके बंसल बच्चों से कहते थे, जीवन एक प्रश्नपत्र की तरह है, जिसे हल करने के लिए किसी कॉम्प्रिहेंशन की जरूरत नहीं है। अच्छे कार्यों से पास होना मायने रखता है। नदी के प्रवाह की तरह प्रतिस्पर्धा में बहना ही होगा। जिंदगी में सबको पग-पग पर विजयी होने के लिए कड़ी परीक्षाओं से गुजरना होता है। जीवन की पूरी समीकरण को हल करना ही असली जीत है, इसलिए हमेशा एक विजेता की तरह सोचें।