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कोटा

दुर्लभ बीमारी जीबी सिंड्रोम ने राजस्थान के इन शहरों में पसारे पैर, जिंदा नहीं बचते एक चौथाई लोग

स्वाइन फ्लू, स्क्रब टायफस और डेंगू के बाद अब राजस्थान के कोटा में जीबी सिंड्रोंम भी पैर पसारने लगा है।

कोटाOct 10, 2017 / 10:25 am

​Vineet singh

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People of Kota facing gulian berry syndrome

डेंगू और स्वाइन फ्लू का कहर झेल रहे कोटा के लिए एक और चिंताजनक खबर है। खतरनाक और दुर्लभ गुलियन बेरी सिंड्रोम (जीबीएस) ने भी दस्तक दे दी है। जेकेलोन अस्पताल में इससे ग्रस्त बच्चा भर्ती हुआ है। लाख में एक जने को हाने वाली इस बीमारी के पिछले दो साल में अकेले जेकेलोन अस्पताल में 35 केस सामने आए जिनमें से 25 को बचाया जा सका। खास बात यह कि इस बीमारी के मूल में मौसमी बीमारियों के इंफेक्शन ही कारण हैं।
जेके लोन अस्पताल अधीक्षक डॉ. आरके गुलाटी ने बताया कि जुल्मी निवासी ६ साल के विकास पुत्र दयाराम के हाथ-पैरों ने पिछले माह अचानक काम करना बंद
कर दिया। परिजनों ने झालावाड़ व कोटा के निजी अस्पताल में उपचार कराया लेकिन फायदा नहीं हुआ। तब वे उसे कोटा जेके लोन अस्पताल लाए। यहां पता चला कि बच्चा दुर्लभ जीबी सिण्ड्रोम से ग्रस्त है। इसके खतनाक वायरस ने शरीर की नसों को निष्क्रिय कर उसे लकवाग्रस्त कर दिया।
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लग चुके हैं एक लाख रुपए के इंजेक्शन

जेके लोन के अधीक्षक डॉ. आरके गुलाटी ने बताया कि बच्चे का श्वसन तंत्र भी लकवाग्रस्त हो गई थी। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। एेसे में बच्चे को इम्यूनोग्लोबिन के महंगे इंजेक्शन लगाए। बच्चे के एक लाख रुपए कीमत के छह-सात इंजेक्शन लगे। डॉ. गुलाटी के साथ ही डॉ. गोपीकिशन शर्मा ने बच्चे का उपचार किया।
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दो साल में आए 35 केस

चिंता की बात यह कि इस गंभीर बीमारी के पिछले दो साल में अकेले जेकेलोन अस्पताल में 35 केस सामने आए हैं। इनमें से सिर्फ 25 लोगों को ही बचाया जा सका। सूत्रों ने बताया पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश में भी इसके रोगी सामने आ रहे हैं। विकास के मामा मदन ने बताया कि 29 सितंबर को जेके लोन लेकर आए थे। हालत देखकर उन्होंने विकास के ठीक होने की उम्मीद ही छोड़ दी थी।
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क्या है जीबी सिंड्रॉम

डॉ. गुलाटी ने बताया कि यह दुर्लभ बीमारी जीबीएस ज्यादातर मौसम परिवर्तन के दौरान बुखार, उल्टी-दस्त या वायरल इंफेक्शन होने और वायरस शरीर में रह जाने से होती है। यह वायरस शरीर के टिश्यू के दुश्मन बन जाते हैं। रोगी रोग-प्रतिरोधक क्षमता खत्म हो जाती है। धीरे-धीरे सभी नसें कमजोर होकर लकवाग्रस्त हो जाती हैं। समय से पूरा इलाज होने पर मरीज ठीक हो जाता है। डॉ. गुलाटी ने बताया कि यह बीमारी लाख में से एक व्यक्ति को होती है। इसमें भी पुरुष-महिला का अनुपात भी 1ः4 रहता है। इसमें 22 प्रतिशत रोगी लकवाग्रस्त हो जाते हैं।

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