जिला कलक्टर न्यायालय ने इन्द्रप्रस्थ औद्योगिक क्षेत्र समेत कोटा के कई इलाकों में समुचित सुविधाओं के बिना चल रहे हॉस्टलों की नकेल कसना शुरू कर दिया है। कलक्टर कोर्ट ने हॉस्टल एसोसिएशन को सीआरपीसी की धारा 133 के तहत नोटिस जारी किए। पीठासीन अधिकारी रोहित गुप्ता ने 27 अगस्त को प्रसारित की गई पत्रिका डॉट कॉम की खबर का संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई की है। जिसमें पत्रिका ने औद्योगिक क्षेत्रों में अवैध रूप से संचालित हो रहे हॉस्टल्स और अव्यवस्थाओं के चलते उनमें रहने वाले हजारों विद्यार्थियों का जीवन संकट में होने की खबर प्रकाशित की थी।
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कबाड़ फैक्ट्री में चल रहे हॉस्टल 26 अगस्त को इन्द्रप्रस्थ औद्योगिक क्षेत्र के स्वास्तिक हॉस्टल में अमोनिया गैस का रिसाव होने से 15 छात्रों समेत 20 जनों की तबीयत खराब हो गई थी। वहीं 24 मई को भी केशवपुरा क्षेत्र में बने हॉस्टल कीमैस में आग लगने से 30 विद्यार्थियों की जान सांसत में आ गई थी। पत्रिका डॉट कॉम पर खबर प्रसारित होने के बाद जिला कलक्टर ने इन हॉस्टल्स की वास्तविक स्थिति की जांच करने के लिए एक कमेटी गठित की थी। जिसने औचक निरीक्षण कर तमाम खामियां पकड़ी थी। जांच के दौरान कई हॉस्टल ऐसे मिले जिनमें अग्निमशन-आपातकालीन निकास और प्रॉपर वेंटिलेशन तक नहीं था। इसके साथ ही हॉस्टल परिसर में गंदगी, गंदे स्थान पर राशन, घटिया भोजन जैसी गंभीर खामियां भी सामने आईं थी। यह भी पढ़ें
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जांच रिपोर्ट के बाद की कार्रवाई जांच के बाद इस टीम ने जिला कलक्टर रोहित गुप्ता को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। जिसके जिसके बाद न्यायालय ने हॉस्टल संस्थानों के व्यवसाय को नियमानुसार संचालित नहीं किए जाने का दोषी माना है। जिला कलक्टर न्यायालय ने विद्यार्थियों के साथ-साथ स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने वाला कार्य मानते हुए ‘न्यूसेंस’ की श्रेणी में डालते हुए हॉस्टल संस्थान के अध्यक्ष नवीन मित्तल, चम्बल हॉस्टल एसोसिएशन के शुभम् अग्रवाल, इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पलेक्स सोसायटी के कमलदीप सिंह को उत्तरदायी माना। साथ ही पुलिस अधीक्षक कोटा शहर, सचिव नगर विकास न्यास, आयुक्त नगर निगम, सीएमएचओ और जिला रसद अधिकारी को भी पर्यवेक्षण कर ‘न्यूसेंस’ रोकने के लिए धारा 133 के तहत नोटिस जारी किए हैं। Read More: कृषि वैज्ञानिकों ने किया कमाल, अब रसोई में गलेगी कोटा की दाल
करनी होगी गाइडलाइन की पालना जिला कलक्टर कार्यालय से 25 मई को जारी निर्देशों का हवाला भी नोटिस में दिया गया है। छात्रावासों में अग्निशमन उपकरण, स्वच्छ भोजन, सुरक्षाकर्मियों की तैनाती, विद्यार्थियों की जानकारी संबंधित थाने में देने, सूचना पट्ट पर पुलिस थाने, मेडिकल आदि के हेल्पलाइन नम्बर लिखने के निर्देश दिए हैं। जिला कलक्टर न्यायालय की ओर से जारी कंडीशलन निर्देशों की पालना निश्चित अवधि में सुनिश्चित कर जवाबदेह ठहराए गए लोगों, पदाधिकारियों और अधिकारियों को रिपोर्ट पेश करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
करनी होगी गाइडलाइन की पालना जिला कलक्टर कार्यालय से 25 मई को जारी निर्देशों का हवाला भी नोटिस में दिया गया है। छात्रावासों में अग्निशमन उपकरण, स्वच्छ भोजन, सुरक्षाकर्मियों की तैनाती, विद्यार्थियों की जानकारी संबंधित थाने में देने, सूचना पट्ट पर पुलिस थाने, मेडिकल आदि के हेल्पलाइन नम्बर लिखने के निर्देश दिए हैं। जिला कलक्टर न्यायालय की ओर से जारी कंडीशलन निर्देशों की पालना निश्चित अवधि में सुनिश्चित कर जवाबदेह ठहराए गए लोगों, पदाधिकारियों और अधिकारियों को रिपोर्ट पेश करनी होगी। ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
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क्या है धारा 133 जब कभी जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या अन्य भारसाधक मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट या अन्य सूचना स्रोत से भरोसा हो जाए कि किसी व्यापार-व्यवसाय या अन्य क्रियाकलाप से पब्लिक प्लेस पर आम आदमी, वर्ग या समुदाय आदि पर स्वास्थ्य या अन्य लिहाज से विपरीत प्रभाव पड़ रहा है तो इसे ‘पब्लिक प्लेस पर न्यूसेंस’ मानते हुए वह क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 133 के तहत नोटिस जारी कर इस पर जबादेही तय कर सकता है। जिम्मेदारों को इस ‘न्यूसेंस के रिमूवल’ के लिए निर्देशत कर सकता है। खास बात यह कि इस धारा के तहत जारी आदेश पर किसी सिविल कोर्ट में सवाल नहीं उठाया जा सकता।
क्या है धारा 133 जब कभी जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या अन्य भारसाधक मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट या अन्य सूचना स्रोत से भरोसा हो जाए कि किसी व्यापार-व्यवसाय या अन्य क्रियाकलाप से पब्लिक प्लेस पर आम आदमी, वर्ग या समुदाय आदि पर स्वास्थ्य या अन्य लिहाज से विपरीत प्रभाव पड़ रहा है तो इसे ‘पब्लिक प्लेस पर न्यूसेंस’ मानते हुए वह क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की धारा 133 के तहत नोटिस जारी कर इस पर जबादेही तय कर सकता है। जिम्मेदारों को इस ‘न्यूसेंस के रिमूवल’ के लिए निर्देशत कर सकता है। खास बात यह कि इस धारा के तहत जारी आदेश पर किसी सिविल कोर्ट में सवाल नहीं उठाया जा सकता।