एक बार चीरा लगाने का काम शुरू हो जाने के बाद किसान का पूरा परिवार इस काम में लग जाता है। प्रतिदिन दिन में अफीम डोडो को चीरा लगाया जाता है और दूसरे दिन अल सुबह अफीम लुआई का काम किया जाता है। ये काम तब तक चलता रहता है जब तक एक अफीम डोडे से तरल पदार्थ निकलता रहता है, या फिर 5 से 7 बार चीरा लगाकर अफीम लुआई नहीं हो जाती है।
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चेचट. दो दिन से मौसम परिवर्तन से चली तेज हवाओं से अफीम काश्तकारों के अरमानों पर पानी फिरता नजर आ रहा है। तेज हवाओं से अफीम की फसल आड़ी पड़ गई। जिससे किसानों को अफीम के डोडो में चीर लगाने व अफीम लोहने में परेशानी हो रही है। बड़ोदिया कलां व भोलू का गांव के अफीम किसान मनोज लोधा, रामदयाल लोधा, रामनिवास किराड़, राजू किराड़, नरेश किराड़, भैरूलाल किराड़ ने बताया कि मौसम परिवर्तन के बाद तेज हवाओं से अफीम की फसल आड़ी पड़ गई। जिससे अफीम के डोडो में चीर लगाने व अफीम लोहने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों ने बताया कि अभी फसल में कुछ पौधों में डोडे बने है। जिन पर चीर लगाने का कार्य किया जा रहा है। हवा के कारण सारे पौधे आड़े पड़कर टूट रहे है। ऐसे में पौधों में डोडे नहीं बन पायेंगे। और डोडे बन भी जाएंगे तो उनमें से अफीम नही निकलेगी। ऐसे में रकबा पूरा नही होने से किसान चिन्तित है।
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अफीम लुआई के दौरान पूरा परिवार खेत में ही अस्थाई घर बनाकर रात रात भर पौधो की रक्षा करता है, क्यों कि क्षेत्र में अफीम फसल चोरी की बहुत ज्यादा संभावना होती है। अफीम लुआई के बाद जब डोडे सूख जाते है तो डोडो से पोस्तादाना निकाला जाता है। अफीम की काश्तकारी करना सहज काम नहीं है, अफीम बुआई से लेकर बाजार में आने तक हर काम मेहनत और जोखिम भरा होता है। .