कोटा

मिट्टी गड्ढों में, पॉलीथिन वहीं पटक दी, अब ठेकेदार ने मांगे 12 लाख

पचपहाड़ में कचरा डंपिग यार्ड का मामला : ठेका फर्म ने बिल भेजा

कोटाJul 06, 2021 / 09:25 pm

Ranjeet singh solanki

मिट्टी गड्ढों में, पॉलीथिन वहीं पटक दी, अब ठेकेदार ने मांगे 12 लाख

Jhalawar.भवानीमंडी. नगर पालिका ने करीब एक माह पहले जिसे बहुत बड़ी उपलब्धि बताते हुए और बहुत जोर-शोर के साथ कचरा छनाई संयंत्र लगवाया था, उसे सोमवार को काम पूरा जाने पर ठेकेदार खोल ले गया। मशीन तो चली गई, लेकिन कंपनी ने कचरा छनाई के लिए जो 12.75 लाख रुपए का बिल पेश किया है, उससे यह पूरा कचरा छनाई कार्य चर्चा में आ गया है। कचरा डंपिंग के लिए पचपहाड़ में एक यार्ड बनाया गया था। उसमें ही शहर भर का कचरा ले जाकर डाला जा रहा है। जिसकी छनाई के लिए करीब एक माह पहले इंदौर की एक्सपर्ट डस्ट इंडस्ट्रीज को ठेका दिया था। उसके कर्मचारियों ने वहां पर छनाई के लिए एक गोलाकार संयंत्र लगाकर कचरे की छंनाई-सफाई की थी। इस दौरान कचरे में से मिट्टी और पॉलीथिन को अलग किया। मिट्टी को वहीं गड्ढों में डाल दिया और वेस्ट पॉलीथिन को पास में ही पटक दिया। वहां मौजूद ठेकेदार के कर्मचारियों का कहना था कि इस संयंत्र को लगाए रखने के लिए रोज का करीब तीन सौ टन कचरा चाहिए, जबकि भवानीमंडी में करीब तीन-चार टन कचरा ही रोज निकल पा रहा है। यहां पर इतना ही काम था, जो आज पूरा हो जाने पर संयंत्र खोलकर ले जा रहे हैं। संयंत्र से निकली मिट्टी कंकड़ को डंपिग यार्ड के आस-पास ही डाल दिया गया। वेस्ट पॉलीथिन मौके पर ही पड़ी थी। इस पर सवाल किया तो कार्यकर्ता बोले इसे तो नगर पालिका को किसी बायलर वाले को बेचना था, उसने नहीं बेचा। इससे पूर्व शहर के कचरे को मुक्तिधाम मार्ग आदि जगह डाला जाता रहा है, जो बिना किसी खर्च के समय के साथ ही खुद ही दबता चला गया। इंदौर की छनाई ठेका कंपनी को बुलाकार उससे भी यही काम 12.75 लाख रुपए में करवाया जाना सबकी चर्चा में आ गया है कि आखिर यह खर्च क्यों किया गया डंपिंग यार्ड के गड्ढे ही भरे जाने थे तो वे तो वहां पर रोलर चलाकर भी भरे जा सकते थे। इस पर संयंत्र के कर्मचारियों का कहना था कि कचरे में से पॉलीथिन अलग कर देने से वहां जमीन में दबकर भुगर्भीय संरचना नहीं बिगाड़ पाती है, इससे ही कचरे में से पॉलीथिन अलग की जाती है। उधर, छनाई नहीं करके कचरे को यूं ही दबा दिया जाता तो भी वह छोटे गड्ढे वाले भाग में ही तो रहती जिससे सब दूर की भूगर्भीय संरचना थोड़ी बेकार होती।

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