मेवाड़ सेना में शामिल पति की मौत होने के बाद भी पन्नाधाय ने उदय सिंह को बचाया। बनवीर के डर से पति का दो साल तक गंजोज नहीं किया। उदय सिंह को लेकर कुंभलगढ़ के जंगलों में भटकती रही।
मुख्य वक्ता रहे महर्षि दयानंद विवि अजमेर के उपरजिस्ट्रार डॉ. सूरजमल राव ने एेतिहासिक कालक्रम में गुर्जर जाति के पौराणिक संदर्भ पर शोधपत्र पढ़ते हुए कहा कि प्राचीनकाल में भारतीय व पाश्चात्य विद्वानों गुर्जर समाज को विदेशी माना है, जो न्याय संगत नहीं है। गुर्जर आर्यावृत्त में रहने वाली जाति थी, जो चंद्रवंशी माने गए।
भविष्य पुराण, हरिवेश पुराण, वायु पुराण के साथ शतपथ ब्राह्मण में मध्य एशिया की इस जाति का वर्णन मिलता है। जिसका अभिलेखीय प्रमाण भी उपलब्ध है। यहीं से इस जाति का विस्तार यूरोप, अरब व गंगा घाटी तक हुआ। बीकानेर के साहित्यकार देवकिशन राजपुरोहित ने कहा कि रियासतकाल में राजकुमारों को दूध पिलाने के लिए धाय मां रखते थे, जो गुर्जर जाति की ही होती थी। उस समय परम्परा थी कि धाय मां को गाय का दूध ही पीना पड़ता था।
समापन समारोह में मुख्य अतिथि रहे कोटा विवि के कुलपति पीके दशोरा ने गुर्जर जाति के इतिहास पर प्रकाश डाला। अध्यक्षता पूर्वमंत्री रामकिशन वर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि राजस्थान गुर्जर महासभा के प्रदेशमंत्री मोहनलाल वर्मा, प्रदेश संगठन मंत्री शंभूसिंह तंवर रहे।