(गेस्ट राइटर)
अभी देश में सबसे बड़ा संकट यह है कि लोग घरों में नहीं रुक रहे हैं। कफ्र्यू के हालात बन चुके हैं, फिर भी सबको कहीं न कहीं जाना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही कई मुख्यमंत्री भी अपील कर चुके हैं कि स्टे एट होम। इसके बाद भी लोग घरों से बाहर आ रहे हैं। लॉकडाउन करने में इटली ने देरी की। नतीजा यह निकला कि चाइना से ज्यादा मौतें इटली में हुई। लोगों को जागरूक करने व घरों में रहने के लिए यूएनडब्ल्यूटीओ ने स्लोगन दिया है, ट्रेवल टूमोरो। इसका मतलब है कि आज घरों में रहोगे तो कल घूम पाओगे। बहुत लोग इस समय लॉकडाउन की गंभीरता को नहीं समझ रहे हंै। स्थितियां और भी बिगड़ सकती हैं। यहां यूएनडब्ल्यूटीओ के बारे में इसीलिए बात की जा रही है क्योंकि इसमें उन देशों के प्रतिनिधि हैं जो कि कोरोना की माहमारी झेल चुके हैं। इस माहमारी से आने वाले दिनों में हर क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। इतिहास से सीखना चाहिए। हिरोशिमा नागासाकी से लेकर श्रीलंका को ही देख लीजिए। श्रीलंका में बड़े बम धमाके हुए। तब लगा कि वह देश ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने संयम रखा। यह बात किसी देश, किसी राज्य व किसी शहर की नहीं है, बल्कि पूरी मानव सभ्यता की है। कोरोना एक वायरस है। जो दिखता नहीं है। आज भी कई ऐसे लोग हैं कि जो यह लड़ाई लड़ रहे हैं। किसी के परिजन घर नहीं आ पा रहे तो कोई परिजनों के पास नहीं जा पा रहा। उनको पीड़ा इस बात की है कि हमारी वजह से यह संक्रमण नहीं फैल जाए। हमको सिर्फ घरों में रुकना है। हम राजस्थान के हैं। पन्नाधाय का बलिदान सबको याद ही होगा। आज पूरे देश को बचाना है। राजस्थान हाई रिस्क पर है। अब जो पूर्वज हमको देकर गए हैं, उनकी ही परंपराओं को निभाने व कर्ज उतारने का समय है। यूएनडब्ल्यूटीओ से लेकर पीएम और सीएम तक एक ही अपील कर रहे हैं कि स्टे एट होम। ट्रेवल टूमोरो। महामारी के कारण कई सवाल भी खड़े हुए हैं। सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि कोरोना को कैसे रोका जाए? सरकार, वैज्ञानिक, डॉक्टर्स, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी अपना-अपना काम कर रहे हैं। हमें अपना काम करना है। वह है हमारी संस्कृति से जुड़े रहने का। जिस संस्कृति को हमारे देश के साथ-साथ सभी देशों ने मान लिया है। हमें भी वही संस्कृति इस भयावह स्थिति से निकाल सकती है। हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है स्वच्छता, शांति और संयम। जिसको हमें फिर से अपनाने की जरूरत है। ये वायरस भारत में तभी बढ़ सकता है, जब हम अनुशासनहीन हो जाएं। एक गंभीर समस्या यह आ रही है कि हम ठोकर खाकर ही कुछ सीखना चाहते हैं, जबकि इटली और स्पेन के उदाहरण सामने हैं। समय लगेगा पर हम आज नहीं तो कल इस वायरस पर जीत हासिल कर ही लेंगे।
अभी देश में सबसे बड़ा संकट यह है कि लोग घरों में नहीं रुक रहे हैं। कफ्र्यू के हालात बन चुके हैं, फिर भी सबको कहीं न कहीं जाना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ ही कई मुख्यमंत्री भी अपील कर चुके हैं कि स्टे एट होम। इसके बाद भी लोग घरों से बाहर आ रहे हैं। लॉकडाउन करने में इटली ने देरी की। नतीजा यह निकला कि चाइना से ज्यादा मौतें इटली में हुई। लोगों को जागरूक करने व घरों में रहने के लिए यूएनडब्ल्यूटीओ ने स्लोगन दिया है, ट्रेवल टूमोरो। इसका मतलब है कि आज घरों में रहोगे तो कल घूम पाओगे। बहुत लोग इस समय लॉकडाउन की गंभीरता को नहीं समझ रहे हंै। स्थितियां और भी बिगड़ सकती हैं। यहां यूएनडब्ल्यूटीओ के बारे में इसीलिए बात की जा रही है क्योंकि इसमें उन देशों के प्रतिनिधि हैं जो कि कोरोना की माहमारी झेल चुके हैं। इस माहमारी से आने वाले दिनों में हर क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे। इतिहास से सीखना चाहिए। हिरोशिमा नागासाकी से लेकर श्रीलंका को ही देख लीजिए। श्रीलंका में बड़े बम धमाके हुए। तब लगा कि वह देश ही खत्म हो जाएगा। उन्होंने संयम रखा। यह बात किसी देश, किसी राज्य व किसी शहर की नहीं है, बल्कि पूरी मानव सभ्यता की है। कोरोना एक वायरस है। जो दिखता नहीं है। आज भी कई ऐसे लोग हैं कि जो यह लड़ाई लड़ रहे हैं। किसी के परिजन घर नहीं आ पा रहे तो कोई परिजनों के पास नहीं जा पा रहा। उनको पीड़ा इस बात की है कि हमारी वजह से यह संक्रमण नहीं फैल जाए। हमको सिर्फ घरों में रुकना है। हम राजस्थान के हैं। पन्नाधाय का बलिदान सबको याद ही होगा। आज पूरे देश को बचाना है। राजस्थान हाई रिस्क पर है। अब जो पूर्वज हमको देकर गए हैं, उनकी ही परंपराओं को निभाने व कर्ज उतारने का समय है। यूएनडब्ल्यूटीओ से लेकर पीएम और सीएम तक एक ही अपील कर रहे हैं कि स्टे एट होम। ट्रेवल टूमोरो। महामारी के कारण कई सवाल भी खड़े हुए हैं। सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि कोरोना को कैसे रोका जाए? सरकार, वैज्ञानिक, डॉक्टर्स, प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी अपना-अपना काम कर रहे हैं। हमें अपना काम करना है। वह है हमारी संस्कृति से जुड़े रहने का। जिस संस्कृति को हमारे देश के साथ-साथ सभी देशों ने मान लिया है। हमें भी वही संस्कृति इस भयावह स्थिति से निकाल सकती है। हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है स्वच्छता, शांति और संयम। जिसको हमें फिर से अपनाने की जरूरत है। ये वायरस भारत में तभी बढ़ सकता है, जब हम अनुशासनहीन हो जाएं। एक गंभीर समस्या यह आ रही है कि हम ठोकर खाकर ही कुछ सीखना चाहते हैं, जबकि इटली और स्पेन के उदाहरण सामने हैं। समय लगेगा पर हम आज नहीं तो कल इस वायरस पर जीत हासिल कर ही लेंगे।
(गेस्ट राइटर कोटा विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)