कोटा

कोटा में अनूठी थी वो आजादी की पहली सुबह

आज 15 अगस्त है। वह अमर तारीख जिसने हमें स्वतंत्र सांसें दी। सात दशक पहले। सत्तर साल का हो गया हमारा लोकतंत्र।

कोटाAug 15, 2017 / 11:17 am

Deepak Sharma

आज 15 अगस्त है। वह अमर तारीख जिसने हमें स्वतंत्र सांसें दी। सात दशक पहले। सत्तर साल का हो गया हमारा लोकतंत्र।

आज 15 अगस्त है। वह अमर तारीख जिसने हमें स्वतंत्र सांसें दी। सात दशक पहले। सत्तर साल का हो गया हमारा लोकतंत्र। पर ये ऐसे ही नहीं मिला जनाब। कोटिश: शहादत हैं इसकी नींव में। कोटा भी पीछे नहीं था क्रांति यज्ञ में आहुतियां देने में। आजादी के परवानों के संघर्ष और गाथाओं के कई चश्मदीद अब भी शहर में हैं। ये वे लोग हैं जो उस वक्त बालक थे या किशोर, कुछ युवा भी। कैसा रहा जश्न कोटा में 15 अगस्त 1947 को, इनकी स्मृतियों से आपके लिए साभार सहेजा है ‘राजस्थान पत्रिका.कॉम’ ने।
 

 

हर कोई डूबा था जश्न में
आनंद लक्ष्मण खांडेकर, वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी
भारत माता के जयकारे, तब भी लगते थे, अब भी लगते हैं। हमारे यहां देशभक्ति के मंच पर कोई भी जुदा नहीं है। हर दिल में देशभक्ति का जज्बा है, इस हौसले, इस उत्साह को कोई छीन नहीं सकता। आजादी के पहले हर दिल में यही आग थी कि अब देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना है।
आजादी मिली तो खुशी का ठिकाना न रहा। 15 अगस्त 1947 को हर तरफ, हर कोई आजादी के जश्न में डूबा था। विभिन्न बैठकों व स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का साक्षी बने रामपुरा में तो जैसे उत्सव का माहौल था। उस समय स्वतंत्रता दिवस पर इस तरह के समारोह नहीं होते थे, लेकिन दिलों की धड़कन और चेहरों की रौनक खुद-ब-खुद देशभक्ति को बयां कर रही थी। चारों ओर बस भारत माता की जयकार थी।
 

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लगा फिजां ही बदल गई
हनुमान प्रसाद शर्मा, रिटायर्ड एएओ
आजादी से पहले बूंदी के अस्थोली गांव में रहते थे। पिताजी के देहांत के बाद 1941 में नानाजी के पास कोटा आ गए। यूं तो कोटा की आबोहवा शांत थी, लेकिन आजादी के आंदोलन में कोटा के युवाओं का खून उबला और अगस्त 1942 में गुलाबचंद शर्मा और साथियों ने कोतवाली पर कब्जा पर तिरंगा फहरा दिया।
उन दिनों अखबार और रेडियो पर क्रांति और आजादी की ओर बढ़ते भारत की ही खबरें हुआ करती थीं। 14 अगस्त की रात को ही देश को आजादी मिलने की खबर मिल चुकी थी। रात भर शहर में जश्न का माहौल रहा। सुबह रेडियो पर प्रधानमंत्री नेहरूजी का भाषण सुना। फिर घर से निकलकर चौक में पहुंचे, जहां तिरंगा झंडा फहराया गया। सभी ने एक-दूसरे को बधाई दी। मुंह मीठा कराया। लोगों के चेहरों पर आजादी की खुशी देखते ही बनते थी।
 

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कोतवाली पर तिरंगा फहराया
भैरूलाल शर्मा, रिटायर्ड जिला शिक्षा अधिकारी
तब मैं करीब 20 साल का था। वर्षों की गुलामी से देश आजाद होने जा रहा था। अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें जगह छोड़ रही थीं। देश की कमान अपने हाथों में आने को थी, इसलिए रोज देश की आजादी की खबर सुनने और पढऩे का इंतजार रहता।
15 अगस्त को पूरे रामपुरा में त्योहार सा माहौल था। पांच-छह सौ लोग घरों से निकल कोतवाली के बाहर आ जमे। सामने कर्जन वाइली मेमोरियल हॉल (अब महात्मा गांधी स्कूल) में एक मीटिंग हुई। हमारे साथ गुलाबचंद शर्मा, चैनसुख लाल मित्तल, गोपाल लाल कोटिया व बाबूलाल भी थे। बैठक में भारत माता की जय का उद्घोष हो रहा था। बैठक के बाद सब बाहर आए और रामपुरा कोतवाली पर तिरंगा फहरा दिया। सभी प्रसन्न थे। एेसा लग रहा था कि त्योहार हो। कुछ लोग गुलाब भी उड़ा रहे थे और खुशी में लड्डू बांटे।
 

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उत्सव की तरह था वो दिन
रामेश्वर प्रसाद शर्मा, रिटायर्ड विकास अधिकारी
मैं 8वीं में था। हम दोस्तों की टोली मंडोला गांव से बारां पढऩे आती थी। करीब सप्ताहभर पहले ही स्कूल में गुरुजी ने हमें बताया था कि 15 अगस्त को देश आजाद हो जाएगा। सभी विद्यार्थियों को सुबह स्कूल आना है। 15 अगस्त की सुबह गांव से जल्दी निकले और बारां पहुंचे। स्कूल पहुंचे तो प्रभात फेरी निकालने की तैयारी चल रही थी। लाउडस्पीकर पर देशभक्तितराने गूंज रहे थे। वकील राम नारायण, सेठ मोतीलाल व उनकी टीम बारां में आन्दोलन की अगुवाई करती थी। उस समय देशभक्त लोगों का एक संगठन था ‘महावीर दलÓ। यह दल शरणार्थियों की मदद को तत्पर रहता था। उस समय आए शरणार्थियों की दल के सदस्यों ने रहने-ठहरने व खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की थी। कुछ तनाव भी था। बारां के कुछ मुस्लिम परिवारों ने पलायन कर लिया था।
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
रामनिवास शर्मा, सेवानिवृत्त अध्यापक
आजादी के दिन मैं कोई 10 बरस का था। केशवरापाटन में स्कूल में था। अचानक देखा कि कुछ लोग वंदे मातरम् के नारे लगाते हुए जा रहे थे। साथ वे सभी एक गाना गा रहे थे, ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई…।Ó फिर वंदे मातरम् के नारे लगाते। जुलूस में लोगों के हाथों में तिरंगा और महात्मा गांधी का फोटो था। वे गांव के लोगों को भी तिरंगा और महात्मा गांधी का फोटो बांटते चल रहे थे। मेरा भी मन किया और मैं भी कक्षा से भागकर उस जुलूस के साथ हो गया। आगे जाकर जुलूस सभा में बदल गया। लोगों को यह बताया गया कि आज से हम और हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया है। अब हम खुली हवा में अपनी मर्जी से सांस ले सकेंगे। उस दिन पूरे गांव का माहौल खुशनुमा था। लोगों के चेहरों पर एक अलग सी मुस्कान थी।
गुरुजी ने बताया-आजाद हुए
टीकमसिंह चौहान, सेवानिवृत्त रेलकर्मी, कोटा जंक्शन
जब देश आजाद हुआ मैं खेड़ली महादीत स्कूल में कक्षा ६ का विद्यार्थी था। गुरुजी बजरंगलालजी देश में अंग्रेजों के जुल्मों की दास्तां अक्सर सुनाया करते थे, लेकिन, उस दिन सुबह करीब साढ़े ग्यारह बजे अध्यापक ने कहा कि ‘आज से हम सभी आजाद हैं। हमारा देश अब अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हो गया है।Ó उन्होंने स्कूल पर तिरंगा फहराया दिया और मिठाई बांटी। सभी वंदे मातरम् के नारे लगा रहे थे। बाद में अध्यापकजी ने स्कूल की छुट्टी कर दी। बच्चों में उत्साह का माहौल था। कक्षा में कुल १३ विद्यार्थी ही थे। सभी एक-दूसरे से गले मिले और खुशी से झूमते हुए अपने घरों की ओर चल दिए। उस दिन पूरे गांव में कुछ अलग ही माहौल था। सभी जश्न मना रहे थे। अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति का जश्न।
हल्ला मचाते हुए घर गए
दयानंद निराला, सेवानिवृत्त अध्यापक
उस दिन को आज भी याद कर रोमांचित हो उठता हूं। 20 बरस का नौजवान था। पाटनपोल स्कूल में सुबह का समय था। कक्षा में पढ़ाई चल रही थी, तभी किसी ने आकर कहा कि हम आजाद हो गए हैं। ये सुनकर सभी स्तब्ध रह गए और एक-दूसरे को ताकने लगे। एक बारगी कक्षा में सन्नाटा छा गया। उसके बाद सभी ने एक-दूसरे को गले लगाया और हो-हल्ला मचाते हुए कक्षा से बाहर निकल आए। शिक्षक हो या विद्यार्थी सभी के चेहरों पर मुस्कान थी और आंखें खुशी से भर आई थी। पूरे देश में खुशी का माहौल था। हम भी इस जश्न को अपने दोस्तों व परिचितों के साथ मना रहे थे। आजाद होने की खुशी बांट रहे थे। स्कूल से छुट्टी मिल गई थी और झूमते-गाते दोस्तों के संग अपने घर को चल दिए। घर पर भी सूचना पहुंच गई। सभी जश्ने आजादी मना रहे थे।
नहीं देखा ऐसा जश्न
राजमल टाटीवाला, खाई रोड नयापुरा 
आजादी की मशाल कोटा में अपने यौवन पर थी। मुझे ध्यान है, मैं तो तब किशोर वय था करीब 17 साल का। मुझे अच्छी तरह याद है, 14 अगस्त 1947 की रात आजादी की खबर आग की तरह फैली। कैसे बयां करूं उस माहौल को। कई लोग सोये तक नहीं। खूब तैयारियां हुई। 15 अगस्त को दिल्ली में झंडा फहरने के बाद, थोड़ा दिन चढ़ गया था, क्रंातिकारी और आमजन रामपुरा में पीपल के पेड़ के नीचे एकत्र हुए। उस पीपल को विजयी पेड़ माना जाता था तब। खाई रोड, लाडपुरा और आसपास से कई लोग गए। हम बच्चे भी गए, गीत गुनगुनाते-नारे लगाते, नाचते-गाते। खूब तगड़ा जश्न मना, पूरा रामपुरा खचाखच भर गया। लोग ढोल नगाडे़ पर नाचते रहे। मैंने अपने जीवन में उससे बड़ा जश्न-खुशी का माहौल नहीं देखा। अद्भुत अविस्मरणीय…।
आजादी के नारे याद हैं…
रामस्वरूप जैन, विज्ञान नगर
आजादी के दिन मैं बहुत ही छोटा था, मगर मुझे आजादी मिलने के दिन की याद है। घरों में बड़े लोग खुशियां मना रहे थे। अभी तो मैं विज्ञान नगर में रहता हूं, लेकिन तब हमारा परिवार खुर्दियों की जाग के पास रहता था। यह स्थान धारीवालजी के मकान के सामने है। मुझे याद आता है कि उस दिन बच्चे गलियों में दौडऩे लगे थे और आजादी जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। तब हमने महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम सुन रखे थे। जैसे-जैसे बड़े हुए, उन सभी के बारे में जानने लगे। वास्तव में हमें उन दिनों को पल-पल याद करते रहना चाहिए, ताकि हम आजादी के संघर्ष के हिसाब से देश निर्माण में योगदान दे सकें। मुझे याद है, उस समय आए शरणार्थियों की भी शहरवासियों ने पूरी मदद की थी। उनके रहने-ठहरने, खाने-पीने की व्यवस्था की थी।
हर तरफ हाथों में था तिरंगा
सत्यप्रकाश शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता
1942 में महात्मा गांधी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था, उस समय मैं भी कई साथियों के साथ हाथों में तिरंगा लेकर आंदोलन में शामिल हुआ था। 1944 में नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जब नारा दिया, तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा… उस समय भी हमने अपने अंगूठे पर कट का निशान लगाकर खून निकाला और उससे पत्र लिखे थे। इतना सब कुछ होने के बाद 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो मन में इस बात की बेहद खुशी थी कि जिस लड़ाई को इतने लम्बे समय तक लड़ा, आज उसका फल मिल गया। लालकिले पर तिरंगा फहरा तो हम भी हाथों में तिरंगा लेकर पूरे मोहल्ले में घूमे। नेहरूजी का भाषण सभी ने रेडियो पर सुना था। बरसों की गुलामी के बाद मिली आजादी का जश्न भी पूरे शहर में नजर आ रहा था।
बांटा था गुड़-धाणी का प्रसाद
परमानंद महावर
जिस वक्त देश आजाद हुआ, मेरी उम्र मुश्किल से 5-6 साल रही होगी। बारां में प्यारेरामजी के मंदिर के पास झौंपडि़यों में परिवार रहता था। वहीं मंदिर की तिबारी में स्कूल चलता था। गुरुजी धोती-कुर्ता, टोपी, हाथ में छड़ी लिए पढ़ाने आते थे। एक दिन गुरुजी आए और मोहल्ले के बच्चों से कहा था कि सुबह मोहल्ले के सब बच्चों, महिलाओं, पुरुषों को लेकर आना। अपना देश आजाद हो गया है, जश्न मनाएंगे। मोहल्ले के बच्चों के साथ मैं भी मंदिर के प्रांगण में पहुंच गया। वहां पर गुरुजी ने बांस पर तिरंगा फहराया। मोहल्ले में ही एक सेठजी दुकान से गुड़ ले आए। बाद में एक दुकान से भूंगड़ा-धाणी भी आ गई। मंदिर के पुजारी जी ने पहले बच्चों को गुड़-धाणी का प्रसाद बांटा था। बच्चों ने भी खूब नारे लगाए। हर तरफ उल्लास छाया हुआ था।
होली दिवाली सब आ गई…
प्रभुदास रंगवानी, सेवानिवृत्त अध्यापक
15 अगस्त 1947 को वर्षों की गुलामी के बाद लोगों ने आजादी की सांस ली । उस समय मेरी उम्र करीब 15 वर्ष की थी । हर ओर खुशी का माहौल था। कई लोग झुण्ड के रूप में हाथों में तिरंगा लेकर घूम रहे थे, तो कोई गुलाल उड़ाते हुए नजर आ रहे थे। एक टोली के साथ मैं भी सम्मिलित हो गया और हाथ में तिरंगा लेकर भारत माता की जय के नारे लगाने लगा। कई लोग एक-दूसरे के गले मिलकर आजादी की बधाई दे रहे थे। शाम को कई लोगों ने घरों व मंदिरों पर दीप भी जलाए। उस दिन होली व दिवाली का मिला-जुला माहौल नजर आ रहा था।

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