कोटा

लकड़ी खरीदने के लिए भी नहीं थे पैसे तो ऐसे जलाया पत्नी का शव, प्रेम विवाह की मिली इतनी बड़ी सजा

कोटा। पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए निशक्तजन के पास लकड़ी खरीदने के लिए भी पैसे नहीं थे। उसने ऐसे किया अंतिम संस्कार।

कोटाNov 07, 2017 / 08:08 am

​Vineet singh

disabled did not have money for Funeral of wife

विकलांग होने के बावजूद पंचर की दुकान से परिवार पाल रहा था, लेकिन बीमार पत्नी को इलाज के लिए 3 महीने तक अस्पताल में भर्ती क्या करवाया… दुकान भी बंद हो गई। तंगहाली के बावजूद पत्नी को बचाने की कोशिशें किसी काम नहीं आईँ और आखिर में उसने भी दम तोड़ दिया। पत्नी की मौत के बाद वो शव लेकर शमशान पहुंचा तो वहां भी बदकिस्मती ने पीछा नहीं छोड़ा। पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए लकड़ी खरीदने लायक पैसे भी नहीं थे उसके पास। विद्युत शवदाह गृह में मुफ्त में अंतिम संस्कार हो सकता था, लेकिन ऐन मौके पर वह भी दगा दे गई। दो घंटे तक शमशान में सिर्फ वो विकलांग बैठा था या फिर सामने पड़ी उसकी पत्नी की लाश। राह गुजरते लोगों ने जब ये दिल दहला देने वाला मंजर देखा तो आंखें भर आईं। आनन-फानन में लोगों की मदद मांगी और लकड़ी से लेकर अंतिम संस्कार की बाकी चीजें जुटा, शव को मुखाग्नि दिलाई।
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पत्नी का शव लेकर बैठा था शमशान में

कोटा के किशोरपुरा मुक्तिधाम का विद्युत शवदाह गृह खराब होने से मजबूर और असहाय लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कोटा में यही शवदाह गृह है जहां निःशुल्क शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। सोमवार को जब एक नि:शक्त अपनी पत्नी का शव लेकर यहां पहुंचा तो उसे पता चला कि विद्युत शव दाहगृह खराब पड़ा है। ऐसे में उसे शमशान से लकड़ी खरीदकर ही पत्नी का अंतिम संस्कार करना होगा, लेकिन उस वयक्ति के पास लकड़ी खरीदने तक के पैसे नहीं थे। वह दो घंटे मुक्तिधाम के आगे अपनी पत्नी के पास बेबस बैठ किस्मत पर रोता रहा।
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कर्मयोगियों ने कराया अंतिम संस्कार

राहगीरों ने निशक्तजन की बेबसी भरे हालात की जानकारी कर्मयोगी संस्थान के कार्यकताओं को दी तो उन्होंने आकर अंतिम संस्कार कराया। गौरतलब है कि विद्युत शवदाह गृह 18 अक्टूबर से खराब होने के कारण बंद पड़ा है। संस्थान के संस्थापक राजाराम जैन कर्मयोगी ने बताया कि नि:शक्त मनोज कोली ने रविवार को पत्नी कालीबाई को नए असपताल में भर्ती कराया था। उसकी इलाज के दौरान हृदय गति रुक जाने से सोमवार को मौत हो गई। शव लेकर वह किशोरपुरा मुक्तिधाम पहुंचा। लेकिन, विद्युत शवदाह गृह बंद मिलने और जेब में लकड़ी के पैसे नहीं होने के कारण से बेबस होकर दो घण्टे तक शव के साथ बैठा रहा।
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शव बना मुक्ति का जरिया

मनोज अपनी पत्नी के शव के साथ शमशान में बैठा अपनी बेबसी पर रो रहा था। इसी दौरान कुन्हाड़ी थाना क्षेत्र में हुई लावारिस की मौत के बाद कर्मयोगी कार्यकर्ता उसका अंतिम संस्कार करने मुक्तिधाम पहुंचे। कुछ लोगों की नजर जब उस पर पड़ी तो शव को लेकर ऐसे बैठे रहने की वजह जाननी चाही, तब जाकर पता चला कि उसके पास लकड़ी खरीदने तक के पैसे नहीं है। इसके बाद राजाराम कर्मयोगी ने मुक्तिधाम पहुंचकर अंतिम संस्कार के लिए सामग्री और लकड़ी की व्यवस्था की, अंतिम संस्कार कराया।
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पंक्चर की दुकान, वो भी तीन माह से बंद

मनोज कोली विज्ञान नगर में साइकिल पंचर ठीक करता है। लेकिन पत्नी की बीमारी के चलते वह करीब 3 माह से काम नहीं कर पा रहा था। इस कारण से आर्थिक रूप से काफी कमजोर हो गया था। प्रेम विवाह करने के कारण से परिजन भी इनका सहयोग करने के लिए आगे नहीं आए। उन्होंने बताया कि वह अभी बल्लभबाड़ी कच्ची बस्ती में किराए से रहता है।

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