कोटा

दीपावली की खुशियां बदली गम में, एक मां ने अपना बेटा, पत्नी ने पति, दो मासूम बेटियों ने पिता व बहन ने भाई खोया

कोटा. दीपावली की सुबह ललिता का इकलौता कुल दीपक देवेन्द्र (38) बुझ गया। घर में मां, पत्नी, दो बेटियां व एक बहन थी जिसकी नवंबर में शादी होने वाली थी।

कोटाOct 22, 2017 / 06:40 pm

abhishek jain

इस बार घर में चमक नहीं आ रही है, ऐसा करता हूं, एक बार और पुताई कर देता हूं मां। मां फिर चमक नहीं आई …यह कहकर जितेश उर्फ देवेन्द्र (38) ने तीन बार पुताई कर घर को चमकाने की कोशिश की। धनतेरस पर भी अपनी पत्नी के लिए वह कुछ खरीद कर लाया। रूप चौदस को दीपावली की सारी तैयारियां कर देर रात सोया। जल्दी सुबह उठ फिर तैयारी करने लगा। बेटियां मिश्री (3) और सौम्या (7) तो जैसे दीपावली का ही इंतजार कर रही थी। लेकिन शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। पलक झपकते ही दीपावली की सुबह ललिता का इकलौता कुल दीपक बुझ गया।
 

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सुबह तक सब ठीक था
टीचर्स कॉलोनी चौथ माता मंदिर के पास रहने वाला देवेन्द्र दुकान से लौटा, खाना खाया और सो गया। सुबह जल्दी उठ घर की साफ सफाई की, पड़ोस में दीपावली की राम-राम की। फिर अचानक जी घबराया, उल्टी हुई और अचेत हो गया। मां और पत्नी घबरा गई। पड़ोसी अस्पताल ले गए, लेकिन डॉक्टरों ने साइलेंट अटैक बताते हुए मृत घोषित कर दिया। घर लाए तो पूरा मोहल्ला सन्न रह गया मोहल्ला सन्न रह गया। दीपोत्सव की खशियां गम में बदल गई। न किसी ने मिठाइयां बांटी, न आतिशबाजी हुई।
 

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कैसे चलेगा परिवार

देवेन्द्र (35) के कंधे पर ही पूरे परिवार की उम्मीदें जिंदा थी। जेके बंद होने पर पिता हजारी लाल शर्मा की नौकरी छूटी, जैसे तैसे गुजर बसर हुई। देवेन्द्र और भाई बहिनों की पढ़ाई छूट गई। होश संभालने से पहले वह परिवार का सहारा बन गया। पिता चौकीदारी करते। पिछले साल बीमारी के चलते पिता का साया भी उठ गया। तब से वही एकमात्र परिवार की गाड़ी खींचने वाला था। परिवार में अब कोई कमाने वाला नहीं है।
 

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बूढ़ी मां, पत्नी और दो मासूम
परिवार में बूढ़ी मां ललिता और पत्नी कुसुम, दो बेटियां और बहन दीपा है। पांचों का रो रो कर बुरा हाल है। बहन दीपा ने तीन दिन से खाना नहीं खाया, वह कह रही है ‘म्हांरो भैयो ही रोटी की न खा र्यो म्हूं कश्यां खा लूंं।Ó मां के आंसू नहीं थम रहे। पत्नी की आंखें पथरा गई।
 

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दीपा के हाथों रचने वाली थी मेहंदी
एक बहन मनीषा के हाथ पीले हो चुके हैं, दीपा की माह नवंबर में शादी होने वाली थी। इसी की तैयारियों में वह लगा हुआ था कि परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
 

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मासूम बेटी ने दी मुखाग्नि
पिता की अर्थी और चारों ओर विलाप देख बेटी सौम्या शायद समझ गई कि शाम को रोज बिस्कुट लाना न भूलने वाले पापा हमेशा के लिए जा रहे। परिवार में कोई पुरुष या बेटा न होने के चलते बेटी सौम्या ने मुखाग्नि दी तो मौजूद लोगोंं की आंखों से आंसू बह निकले। उधर, मां ललिता अपने कलेजे के टुकड़े की अस्थियां विसर्जन के लिए फफकती हुई हरिद्वार गई।

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