स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहर को साफ सुथरा बनाने की बड़ी-बड़ी बातें हुई। केन्द्र सरकार ने सफाई के संसाधन खरीदने के लिए पर्याप्त बजट दिया, लेकिन इस बजट को अन्य मदों पर खर्च कर दिया। शहर आज भी गंदगी-कचरे की समस्या से जूझ रहा है।
आवारा मवेशियों की समस्या जानलेवा साबित हो रही है। पिछले छह माह में दस लोगों की अकाल मौत हो चुकी है। इस समस्या को कोई समाधान नहीं हुआ है, बल्कि यह विकराल रूप लेते जा रही है। निगम को भी कोई समाधान नजर नहीं आ रहा।
शहर को हरा-भरा बनाने के प्रयास किए, लेकिन देखभाल के अभाव में हरियाली विकसित नहीं हो सकी। निगम क्षेत्र के कई पार्क बदहाल हैं। अमृत योजना में ग्रीन स्पेस विकसित करने के लिए बजट भी आया, लेकिन उप महापौर के वार्ड के पार्क के अलावा काम शुरू नहीं हो पाया।
भाजपा बोर्ड पिछले तीन साल में नाली-पटान के विकास को लेकर ही उलझा रहा। विकास की बातें तो हुई, लेकिन जमीनी हकीकत से दूर रहा। विजन डॉक्यूमेंट तैयार करने की बात हवाई साबित हुई। इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किए।
आज निगम के पास दशहरा मैदान के विकास के अलावा गिनाने लायक एक भी बड़ी उपलब्धि नहीं है। इसके अलावा कोटा का चयन स्मार्ट सिटी में और नगरीय परिवहन सेवा शुरू करने को भी उपलब्धियों में गिना जा सकता है, लेकिन शहर की सफाई व्यवस्था में अब तक फिसड्डी है। गंदगी से फैला बीमारियों का प्रकोप जानलेवा साबित हुआ। कई हंसते-खेलते परिवारों की खुशियों को इन बीमारियों ने निगल लिया।
पार्षद विधानसभावार बंट गए। विकास की बात आती है तो खींचतान शुरू हो जाती है। पार्षद धड़े में बंटे हैं। निगम या शहर से संबंधित कोई मुद्दा आता है तो पार्षद अलग-अलग दिशा में भागते हैं। महपौर और पार्षदों के बीच तालमेल नहीं बैठ पाया है। कई बार सार्वजनिक विवाद की बातें सामने आई हैं।