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वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय (वीएमओयू) के स्कूल ऑफ एज्युकेशन के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पातांजलि मिश्रा और शोध छात्र भूपेंद्र सिंह ने कोचिंग छात्रों की संतुष्टि का स्तर जानने के साथ ही शिक्षकों की पढ़ाई का तरीका, हॉस्टल में मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं की समीक्षा कर सुसाइड के लिए जिम्मेदार डार्क जोन की तलाश की। इसके आधार पर बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए कोचिंग का स्ट्रेस कम करने और हॉस्टल की समस्याओं को खत्म करने के सुझाव भी दिए गए। ईएआर ने इस शोध को ‘क्लेश ऑफ कॉम्पटीशन ए स्टडी ऑन कोचिंग क्लासेज ऑफ कोटा टाइटल से सितंबर 2017 के अंक में प्रकाशित किया।
वर्धमान महावीर खुला विश्वविद्यालय (वीएमओयू) के स्कूल ऑफ एज्युकेशन के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पातांजलि मिश्रा और शोध छात्र भूपेंद्र सिंह ने कोचिंग छात्रों की संतुष्टि का स्तर जानने के साथ ही शिक्षकों की पढ़ाई का तरीका, हॉस्टल में मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं की समीक्षा कर सुसाइड के लिए जिम्मेदार डार्क जोन की तलाश की। इसके आधार पर बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए कोचिंग का स्ट्रेस कम करने और हॉस्टल की समस्याओं को खत्म करने के सुझाव भी दिए गए। ईएआर ने इस शोध को ‘क्लेश ऑफ कॉम्पटीशन ए स्टडी ऑन कोचिंग क्लासेज ऑफ कोटा टाइटल से सितंबर 2017 के अंक में प्रकाशित किया।
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बच्चों से नहीं कोई वास्ता
हॉस्टल के हालात जानने के लिए शोध के दौरान सेविन डाइमेंशन हॉस्टल ऑनर सेटिस्स्फेक्शन सर्वे किया गया। इसमें 55 फीसदी हॉस्टल मालिकों और संचालकों ने साफ-साफ कह दिया कि वह बच्चों की जिंदगी में कोई दखल नहीं देते। सिर्फ 45 फीसदी ने माना कि वे अभिभावक की तरह बच्चों की हर गतिविधि पर ध्यान देते हैं। 75 फीसदी ने यह भी माना कि बच्चे परीक्षा और त्यौहार नजदीक आते ही अकेलापन महसूस कर अवसाद में घिर जाते हैं जबकि 25 फीसदी ने कभी इस ओर गौर ही नहीं किया।
बच्चों से नहीं कोई वास्ता
हॉस्टल के हालात जानने के लिए शोध के दौरान सेविन डाइमेंशन हॉस्टल ऑनर सेटिस्स्फेक्शन सर्वे किया गया। इसमें 55 फीसदी हॉस्टल मालिकों और संचालकों ने साफ-साफ कह दिया कि वह बच्चों की जिंदगी में कोई दखल नहीं देते। सिर्फ 45 फीसदी ने माना कि वे अभिभावक की तरह बच्चों की हर गतिविधि पर ध्यान देते हैं। 75 फीसदी ने यह भी माना कि बच्चे परीक्षा और त्यौहार नजदीक आते ही अकेलापन महसूस कर अवसाद में घिर जाते हैं जबकि 25 फीसदी ने कभी इस ओर गौर ही नहीं किया।
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सुरक्षा इंतजाम के लिए खड़े किए हाथ
शोध में सामने आया कि 78 फीसदी हॉस्टल संचालक छात्रों की सुरक्षा के लिए बिल्कुल भी गंभीर नहीं थे। सिर्फ 10 फीसदी संचालकों ने ही बताया कि उन्होंने सुरक्षा के लिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस, सिक्योरिटी गार्ड, सीसीटीवी कैमरे और लेट नाइट चेकिंग जैसे इंतजाम किए हैं। वहीं 12 फीसदी ने इसका जवाब ही नहीं दिया। किसी भी हॉस्टल मालिक ने खेल सुविधा का इंतजाम होने से इनकार कर दिया। वहीं 35 फीसदी हॉस्टल में तो टीवी तक नहीं था।
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