बारह मास बहने वाली चम्बल नदी राजस्थान व मध्यप्रदेश में सभ्यता व संस्कृति तथा खुशहाली का वरदान है। दोनों राज्यों में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से चम्बल हम सभी का भरण-पोषण कर रही है। लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते मां चम्बल खुद ही संकट से जूझ रही है। कोटा से लेकर धौलपुर तक चम्बल में प्रदूषित पानी प्रवेश करने से न केवल पूरी जैव विविधता पर खतरा मंडरा रहा है, वहीं अवैध खनन से वन्य जीवों व घडिय़ालों के जीवन पर भी संकट आ रहा है। चम्बल के किनारों को जगह-जगह नुकसान पहुंचाया जा रहा है। तटों पर मिट्टी के कटाव की वजह से बरसात के समय चम्बल का पानी आबादी क्षेत्र में बाढ़ बन कहर बरपाता है।
चार-पांच दशक पहले तक चम्बल नदी कोटा शहर के पास भी खुलकर व फैलाव के साथ बहती थी। लेकिन कुछ सालों में पनपी अवैध बस्तियों की बाढ़ ने चम्बल को ही सिकुडऩे व आपदा बरपाने के लिए मजबूर कर दिया। साल 2019 में भारी बरसात के दौरान चम्बल तो अपने दायरे में ही बह रही थी, लेकिन जिन्होंने चम्बल की सीमा तोड़ी थी, चम्बल ने बाढ़ के रूप में उन सभी को चपेट में ले लिया।
बीते साल 2020 में भी चम्बल पूरे परवान पर रही। कोटा से लेकर धौलपुर तक बाढ़ के हालात रहे। इस साल (2021) मध्यप्रदेश व हाड़ौती में भारी बरसात के बाद चम्बल की सहायक नदियां उफान पर आ गई। इन नदियों ने झालावाड़, कोटा व बारां में बाढ़ से तबाही मचा दी। सहायक नदियों से पानी की भारी आवक एवं कोटा बैराज के गेट खोलने के बाद चम्बल ने धौलपुर तक अपना रौद्र रूप दिखा दिया।
बड़ा सवाल यह है कि आखिर चम्बल का गला कौन घोंट रहा है? सीधा सा जवाब है कि सरकार व सिस्टम की अनदेखी के साथ सबसे पहले हम ही जिम्मेदार है। जिस चम्बल से हमारा भरण-पोषण हो रहा है, हम उसी मां रूपी चम्बल में प्रदूषित पानी का जहर घोल रहे हैं। रूपए कमाने के लालच में खनन माफिया मां के आंचल से बजरी का अवैध खनन कर घडिय़ालों की वंशवृद्धि पर ही कहर ढा रहे हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण चम्बल पर दिनों-दिन दखल बढऩे से वन्यजीव भी अपना स्थान बदल रहे हैं।
दोनों राज्यों में जहां से भी चंबल गुजरती है, वहां के हालात भविष्य में बड़ी विपदा को बुलाने जैसे हैं। यदि अभी नहीं चेते तो चंबल के कारण जो सपन्नता राजस्थान और मध्यप्रदेश में दिख रही है, वह समाप्त हो जाएगी। बजरी की लूट से चंबल का हुलिया बिगाडऩे वालों को राजनीतिक संरक्षण है, यह भी किसी से छिपा नहीं है। आखिर जिम्मेदार इस अनर्थ को रोकने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे।
नेताओं व अफसरों को अब बिना वक्त गंवाएं चंबल को सम्बल देने के लिए आगे आना चाहिए। नेता और अफसर दोनों आगे नहीं आते तो जनता को जाग जाना चाहिए। अवैध खनन रोकने के लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए। जब कभी अवैध खनन का मुद्दा उठता है तो खानापूर्ति के लिए कार्रवाई होती और फिर कुछ दिनों बाद माफिया अपना खेल शुरू कर देता है। मिलीभगत से चल रहे इस खेल के बारे में पुलिस, प्रशासन और जनप्रतिनिधि सब जानते हैं। इसके बाद भी इसे रोकने के लिए जिस तरह की प्रभावी कार्रवाई होनी चाहिए, वैसी अभी तक नहीं हो पाई। चम्बल को बचाने के लिए कई बार अभियान शुरू हुए, लेकिन उनका असर जिम्मेदारों पर नहीं पड़ा। अब तो जनता को ही कुछ करना होगा। चम्बल को बचाने (save chambal ) के लिए सभी को सामूहिक प्रयास करने होंगे तभी आने वाली पीढ़ी के लिए इसे बचा जाएंगे।