अमरूद का नाम सुनते ही जेहन में थेगड़ा का नाम आता है। सड़क किनारे बेचने वाले थेगड़ा का नाम लेते हैं तो अमरूद कुछ ही देर में बिक जाते हैं। लेकिन जनाब, बरस बीत गए थेगड़ा में अमरूदों के बाग खत्म हुए। तालेड़ा, अल्फानगर, अरंडखेड़ा, ताथेड़, अर्जुनपुरा से आ रहे अमरूद आज भी ब्राण्ड थेगड़ा के नाम से ही बिकते हैं।
नहीं है अमरूद का एक भी पेड़़
थेगड़ा गांव के 70 वर्षीय माधोलाल सुमन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ललिता सुमन ने बताया कि वर्तमान में थेगड़ा गांव व आसपास अमरूदों का एक भी पेड़ नहीं। जो भी पेड़ बचे हैं वे आम के हैं। गांव के चारों और खेतों में कॉलोनियां कट गई। मकान खड़े हो गए। वे बताते हैं कि दो दशक पहले तक थेगड़ा में करीब 500 बीघा से अधिक रकबे में अमरूदों का बगीचा था। यहां की माटी उपजाऊ होने, दाईं मुख्य नहर के पानी की खेतों में नमी रहने के कारण बगीचों में उत्पादन भी भरपूर होता था। लेकिन, करीब 15 बरस पहले आई बाढ़ के बाद जमीन में लगे फंगस से बड़े हिस्से के सारे पौधे सूख गए। बाद में कॉलोनियां कटने के लोभ ने बचे-खुचों को उजाड़ दिया। वर्तमान में थेगड़ा गांव में अमरूदों का एक भी पेड़ नहीं है।
थेगड़ा गांव के 70 वर्षीय माधोलाल सुमन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ललिता सुमन ने बताया कि वर्तमान में थेगड़ा गांव व आसपास अमरूदों का एक भी पेड़ नहीं। जो भी पेड़ बचे हैं वे आम के हैं। गांव के चारों और खेतों में कॉलोनियां कट गई। मकान खड़े हो गए। वे बताते हैं कि दो दशक पहले तक थेगड़ा में करीब 500 बीघा से अधिक रकबे में अमरूदों का बगीचा था। यहां की माटी उपजाऊ होने, दाईं मुख्य नहर के पानी की खेतों में नमी रहने के कारण बगीचों में उत्पादन भी भरपूर होता था। लेकिन, करीब 15 बरस पहले आई बाढ़ के बाद जमीन में लगे फंगस से बड़े हिस्से के सारे पौधे सूख गए। बाद में कॉलोनियां कटने के लोभ ने बचे-खुचों को उजाड़ दिया। वर्तमान में थेगड़ा गांव में अमरूदों का एक भी पेड़ नहीं है।
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तासीर सामान्य, सेवन से गैस, अपच, कब्ज दूर।
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कोलेस्ट्रोल, मोटापा कम करता है।
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पत्तों का मार्केटिंग फंडा थेगड़ा के नाम के साथ ही सड़क किनारे, फुटपाथ पर अमरूद बेचने वाली ग्रामीण महिलाएं व अन्य विके्रता पत्तों का मार्केटिंग फंडा भी अपनाते नजर आते हैं। ये बागवान से पत्ते सहित अमरूद खरीदते हैं। फुटपाथ पर भी अमरूदों को पत्तों सहित इस प्रकार से जमाते हैं कि लोग स्थानीय बगीचे से तोड़े समझ लेते हैं। बिल्ट बीमारी से नष्ट हो गए बगीचे कोटा उद्यान विभाग राशिद खान उपनिदेशक का कहना है कि वर्ष 2003-2004 में आई बाढ़ के दौरान औद्योगिक क्षेत्र के नालों का बरसाती पानी थेगड़ा गांव के आसपास फैल गया था। ऐसे में क्षेत्र की जमीन में बिल्ट नामक फंगस आ गया था। एक दो साल में सारे पौधे सूख गए।
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