गर्मी व मानसून में फैलता साम्राज्य जानकारों के मुताबिक गर्मियों के दिनों में अंकुरित होने वाली गाजर घास मानसून के समय सर्वाधिक फैलती है। अंकुरित होने के कुछ दिनों बाद ही घास में सफेद फूल आने लगते हैं। परिपक्वता के साथ ही इसकी जड़ें जमीन में इतनी गहराई में चली जाती हैं कि एक बार पनपने के बाद सालों तक बनी रहती है। हवा में तैरते इसके परागकण एक से दूसरे स्थान पर पहुंचते हैं। ऐसे में इन दिनों यहां कोई इलाका ऐसा नहीं जो गाजर घास की गिरफ्त में नहीं हो।
गंभीर रोगों का बड़ा कारण जानकारों के मुातबिक इसे छूने या इसके लगातार सम्पर्क में रहने से चर्म रोग ग्रस्त हो सकते हैं। शुरूआत में त्वचा पर खुजली व जलन होती है। बाद में त्वचा मोटी व काली हो जाती है। इसे कांटेक्ट डर्मेटाईटिस भी कहते है। इसमें बाद में फोड़े बनकर मवाद बनती है। लगातार संपर्क से व्यक्ति में अस्थमा एवं श्वांस रोग बढऩे का खतरा रहता है।
कांटेक्ट डर्मेटाइटिस बीमारी का खतरा चर्मरोग विशेषज्ञ डॉ. एलसी गुप्ता बताते हैं कि गाजर घास के लगातार सम्पर्क में रहने से एयरबोन एलर्जी कांटेक्ट डर्मेटाइटिस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। आमतौर पर इसमें दाद और खुजली होती है। बीते तीन सालों में चर्मरोग के मरीजों में काफी इजाफा हुआ है। इसका एक बड़ा कारण गाजर घास भी है। इसका ज्यादा प्रभाव शरीर के उन हिस्से में होता है जहां त्वचा पर पसीना ज्यादा आता है या नमी बनी रहती है।