चन्द्रघटा निवासी एडवोकेट नाजिमुद्दीन सिद्धिकी ने बताया कि बेटी मरियम नाज सिद्धिकी (23) ने अंग्रेजी साहित्य में बीए किया और अभी एलएलबी द्वितीय वर्ष में है। परिवार में बेटी के रिश्ते की बात चली तो विज्ञान नगर में जिशान अली (24) से रिश्ता तय हुआ। सोमवार को दोनों का निकाह हो गया। दोनों परिवारों में शादी से पहले ही तय हो गया था कि बिल्कुल फिजूलखर्ची नहीं करेंगे।
न कार्ड, न फोटोग्राफी
सिद्धिकी ने बताया कि शादी में एक भी पैसा फिजूलखर्च नहीं किया। शादी के कार्ड भी नहीं छपवाए। सभी रिश्तेदारों को फोन पर सूचना दी। संगीत, बैंडबाजा, घोड़ी, आतिशबाजी, नाच-गाना नहीं हुआ। इतना ही नहीं दोनों ही परिवारों की तरफ से फोटोग्राफर भी नहीं किए। मोबाइल से ही फोटो लिए।
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न उपहार-दहेज ना ही कोई सजावट
उन्होंने बताया कि बाराती व मेहमानों को खास दावत भी नहीं दी। इस बारे में उन्हें पहले ही बता दिया था। सभी रिश्तेदारों व मेहमानों ने इसे सहर्ष स्वीकार किया। सभी अपने-अपने घर से ही खाना खाकर आए। गर्मी के कारण शरबत पिलाया गया। साथ ही, उपहार व दहेज भी नहीं दिया। निकाह के लिए मैरिज गार्डन के बजाय मदरसा अंजुमन इस्लामिया स्कूल में 3500 की रसीद कटवाई, ताकि यह राशि वहां के बच्चों की शिक्षा पर काम आएं। निकाह स्थल की सजावट भी नहीं की गई। इसके अलावा 11500 रुपए और खर्च हुए।
दिखावे से बचें, सादगी से निकाह कर समाज के लिए मिसाल बनें
शादी-विवाह, रस्मों-रिवाज सभी जीवन में जरूरी है। इन्हें जिम्मेदारी पूर्वक निभाना भी चाहिए, लेकिन ये आयोजन सादगीपूर्ण तरीके से किए जाएं। इससे मन को सुकून मिलता है। देश, राज्य व समाज की तरक्की के लिए फिजूलखर्ची को रोकना जरूरी है। कोटा में सोमवार व मंगलवार को सादगीपूर्ण तरीके से दो निकाह हुए। ये दोनों ही निकाह समाज के लिए मिसाल बने। समाज में कई तरह के लोग होते हैं। कोई आर्थिक रूप से समृद्ध तो कोई कमजोर। जो समृद्ध होते हैं, वे तो ज्यादा खर्च करके भी आसानी से शादियां कर देते हैं, लेकिन जो आर्थिक रूप से कमजोर तबका है, उसके लिए बच्चों की शादियां, निकाह चुनौती बन जाता है। कई बेटियों की तो शादियों में इसी कारण देरी होती है।
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बैंड, बाजा व बारातियों पर खर्च वह सहन नहीं कर पाता। दहेज भी एक बड़ी समस्या है। कई घर दहेज के कारण टूट जाते हैं। इसलिए दहेज जैसी प्रथाओं पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है। इज्तेमाई निकाह जैसे आयोजनों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। शादियों में जो अनावश्यक खर्च करते हैं, बेहतर है कि उसे हम बच्चों की शिक्षा, रोजगार व अन्य आवश्यक कार्य के लिए खर्च करें। देखा जाए तो निकाह एक तरह से दो परिवारों को जोड़ने का माध्यम है। इसमें दिखावे की कोई जगह नहीं होनी चाहिए।