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9 गोलियां लगीं, फिर भी आतंकी को उतारा मौत के घाट, जानिए कौन हैं CRPF कमांडेंट चेतन चीता

देश के लिए कई गोलियां खाने के बावजूद एक आतंकी को मार गिराने और एक महीने से ज्यादा समय तक कोमा में रहने के बाद घर लौटे कोटा निवासी CRPF कमांडेंट चेतन चीता को राष्ट्रपति भवन में कीर्ति चक्र दिया गया। चेतन चीता के शरीर में 14 फरवरी 2017 को आतंकियों से लड़ते वक्त 9 गोलियां लगी थीं।

कोटाJan 14, 2024 / 12:47 pm

Rakesh Mishra

देश के लिए कई गोलियां खाने के बावजूद एक आतंकी को मार गिराने और एक महीने से ज्यादा समय तक कोमा में रहने के बाद घर लौटे कोटा निवासी CRPF कमांडेंट चेतन चीता को राष्ट्रपति भवन में कीर्ति चक्र दिया गया। चेतन चीता के शरीर में 14 फरवरी 2017 को आतंकियों से लड़ते वक्त 9 गोलियां लगी थीं। उसके बाद भी वे उनसे लड़ते रहे थे और मैदान नहीं छोड़ा था। ऐसे बहादुर नौजवान की कहानी आपको देशभक्ति से लबरेज कर देगी। ऐसी ही प्रेरणादायक कहानी है चेतन चीता की जो हमें देश के लिए मर मिटने के लिए प्रेरित करती है। चेतन चीता भारतीय सेना का देशभक्त वीर जवान है, जिसने निडर होकर सीमा पर दुश्मन से मुकाबला किया। चेतन चीता ने अपनी जान की परवाह किए बिना जाबांज नौजवान की तरह दुश्मनों से लोहा लेकर उनको धूल चटाई।

9 गोली लगी चीता को फिर भी डटे रहे
एक गोली दाईं आंख में लगी। यह उनके पैलेट (जबड़े के ऊपरी हिस्से) पर लगी। ये निकाली जा चुकी है। एक आंख जा चुकी है और दूसरी भी खतरे से बाहर नहीं है। दाएं दिमाग के अगले हिस्से में हैमरेज था, जिसका सफल ऑपरेशन हो चुका है। दो गोलियां दोनों हाथ में लगी थी, जिससे गंभीर घाव हो गए थे और हडि्डयों में भी फ्रैक्चर हो गया था।
बोले – पुकार रहा है मेरा कर्म
कोटा एयरपोर्ट पर पहुंचते ही सीआरपीएएफ कमांडेंट चेतन चीता ने फिर से बॉर्डर पर जाने की ख्वाहिश जताई। जब उनसे पूछा गया कि वह फिर से लड़ना चाहते हैं तो जोरदार ठहाका लगाते हुए बोले- ‘ये तो मेरा कर्म है और मैं अपने कर्म से तब तक पीछे नहीं हट सकता, जब तक मेरे शरीर में खून का एक भी कतरा बाकी है। चीता ने कहा कि वह जल्द से जल्द स्वस्थ होकर अपनी बटालियन को ज्वाइन करेंगे और कश्मीर जाकर एक बार फिर दुश्मनों के हौसले पस्त करेंगे।

शुक्रिया कोटा आपकी दुआओं से ही जिंदा हूं
कोटा पहुंच कर सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन कुमार चीता ने उनकी जिंदगी की दुआएं करने वाले कोटा ही नहीं पूरी देश के लोगों का आभार जताया। चीता ने कहा कि दुआओं का ही असर है जो 40 दिन कोमा में रहने के बाद मेरी जान बच गई। उन्होंने कहा कि कोटा हमेशा ही मेरे दिल में बसता है। यहीं खेला, पढ़ा और जवान हुआ हूं। इसलिए इस शहर से मेरा लगाव कभी खत्म नहीं हो सकता। यह लगाव उस वक्त और बढ़ गया जब पता चला कि मैं जब तक हॉस्पिटल में रहा यहां के लोग मेरे जीने की दुआ करते रहे। इस कर्ज को में कभी उतार नहीं सकूंगा।
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बताया चीता सरनेम के बारे में
जब उनसे पूछा गया कि चीता सरनेम कहां से आया? तो बोले- यह हमारा गोत्र है। मेरे पिता का नाम रामगोपाल चीता है। हमारी मीणा कम्युनिटी में रामगंजमंडी – मोड़क आदि जगहों पर चीता सरनेम होता है। हमारा गांव मोड़क है, जो कोटा से कुछ दूर है। पत्नी उमा के बारे में कहा कि उमा और हम दोनों करीब 28 साल से जुड़े हुए हैं। हम 10वीं क्लास में पढ़ते थे, तब से जानते हैं। उन्होंने बताया कि हम दोनों के बीच पहले फ्रेंडशिप थी, जो बाद में रिलेशनशिप में बदल गई। उमा के पिता भी आर्मी से रिटायर ले. कर्नल हैं। उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि मुझे जिंदगी में क्या चाहिए ? मैंने ज्यादा कुछ नहीं किया, सिर्फ इतना किया कि मेरी ड्यूटी को बेहतर ढंग से निभाया।
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