कोटा का शायद ही कोई मुहल्ला होगा, जहां आपको पिछले दस दिनों से गणेश प्रतिमा का पूजन होता ना दिख रहा हो। अब यह आयोजन इतना भव्य हो गया है कि देश के दूसरे हिस्सों से भी लोग इसे देखने और उल्लास के रंग में रंगने के लिए कोटा आते हैं, लेकिन इस स्वरूप को विराट बनने में 70 साल लग गए। राजस्थान पत्रिका ने खास आपके लिए जुटाई हैं 70 साल पहले शुरू हुई पहली गणेशोत्सव की तस्वीरें।
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कोटा में गणेशोत्सव के सार्वजनिक महोत्सव की नींव 1948 में पाटपनोल निवासी डा. रामकुमार ने रखी। वे फूल बिहारी जी मंदिर के सामने अपनी क्लीनिक पर ही गणपति स्थापना करते थे।
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यहां दस दिन तक भजन-कीर्तन व आरती आयोजन होते। करीब 3 फीट होती थी मिट्टी से बनी प्रतिमा। अनंत चतुर्दशी पर प्रतिमा को ठेले में रखकर रामपुरा स्थित छोटी समाध ले जाते। वह अपनी विंटेज कार में प्रतिमा को रखकर टिपटा सरस्वती विद्यापीठ के सामने लाते फिर यहां से शोभायात्रा शुरू होती।
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मुख्य प्रतिमा लेकर चल रही विंटेज कार के पीछे ठेले में गणपति की झांकी और आगे भाव-विभोर कीर्तन करते चलते लोग शोभ बढ़ाते। बेशक तब लोगों की संख्या भले ही हजारों में नहीं थी, पर अनंत चतुर्दशी के दिन लोग उन्हें देखने के लिए छतों पर इंतजार करते।
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कोटा को अनन्त उल्लास का तोहफा देने वाले डॉ. रामकुमार के बड़े बेटे डॉ शिवकुमार बताते हैं कि छावनी कोटड़ी क्षेत्र की कुछ झांकियां भी इसमें शुरू होती गई। धीरे-धीरे क्रम बढ़ता गया और अन्य प्रतिमाएं भी शामिल होती गईं।
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घंटाघर क्षेत्र के उस्ताद घांसी लाल के शागिर्द शोभायात्रा में अखाड़े को लेकर शामिल हो गए। ज्यों-ज्यों शोभायात्रा अपने मार्ग में बढ़ती जाती लोग इसमें जुड़ते जाते।
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शोभायात्रा रामपुरा स्थित छोटी समाध के घांट पर पहुंचती और यहां आरती के बाद प्रतिमा को विसर्जित कर देते। प्रसाद वितरित किया जाता। धीरे-धीरे शोभायात्रा वर्ष दर वर्ष विशाल रूप लेने लगी। बाद में डॉ रामकुमार सन्यासी हो गए और वृंदावन चले गए।
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वर्ष 1990 में बाबा गोपरनाथ भार्गव ने शोभायात्रा को भव्य बनाया। इसमें कोटा में अखाड़ों के जनक कहे जाने वाले उस्ताद चौथमल बरथूूनिया का भी उल्लेखनीय योगदान रहा। बरथूनियां को अखाड़ों के द्रोणाचार्य के नाम से भी जाना जाता है।
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फिर बदला गया मार्गः डॉ शिवकुमार बताते हैं कि करीब 27 साल पहले 14 सितम्बर 1989 को हुई अप्रिय घटना के बाद शोभायात्रा का मार्ग बदल गया। शोभायात्रा के लिए अनंत चतुर्दशी महोत्सव आयोजन समिति का गठन किया गया। इसमें गोदावरी धाम के बाबा गोपरनाथ भार्गव को अध्यक्ष बनाया गया। उनके सान्निध्य में यह शोभायात्रा भव्य होती चली गई।