शहर के बीचों-बीच होकर गुजर रही दोनों नहरों में पिछले छह साल में 325 माेते यानि हर सप्ताह एक मौत… बावजूद इसके जब भी कोई हादसा होता है तो अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधि तक दिलासे देते नजर आते हैं, लेकिन पिछले छह सालों में कभी किसी ने सुरक्षा के इंतजाम पुख्ता करने की कोशिश नहीं की। हालात यह है कि अगर कोई एक बार गलती से भी नहर में गिर गया तो फिर बचाव का कोई इंतजाम नहीं है। किनारे पर पैर फिसलने की स्थिति में भी बचाव का कोई जरिया नहीं है।
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अंचल के खेतों को सींचने के लिए बायीं मुख्य नहर 2.59 किमी तक और दायीं मुख्य नहर करीब 10 किमी तक शहर की घनी आबादी वाले इलाकों के बीच से होकर गुजरती है। कई जगह नहर सड़क के बराबर बह रही है, जहां अक्सर लोग नहाते हैं। किशोर सागर तालाब की पाल पर भी कई जगह सुरक्षा दीवार और रैलिंग टूटी होने के कारण एक्सीडेंटल पॉइंट बन चुके हैं।
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बचाई जा सकती हैं जिंदगियां
सिंचाई विभाग के पूर्व अधिकारी ज्ञानचंद जैन कहते हैं कि शहरी सीमा से गुजर रही नहरों पर महज लोहे का जाल बिछाकर लोगों को डूबने से बचाया जा सकता है। जाल लगा होने से लोग नहर में उतर ही नहीं पाएंगे।
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ऐसा करने से लोगों की जान तो बचाई ही जा सकेगी, वहीं नहरों को कूड़े से भी मुक्ति मिल जाएगी। जाल बिछाने का काम नहरों की सफाई पर हर साल होने वाले खर्च से खासा सस्ता भी पड़ेगा। वहीं तालाबों की दीवारों को ऊंचा कराने के बाद उस पर कंटीली बाढ़ लगाई जाए। यह काम तालाब के सालाना ठेके से होने वाली कमाई के आधे खर्च पर आसानी से किया जा सकता है।