पाकिस्तान की डेढ़ दर्जन जेलों में अवैध तरीके से सीमा लांघने समेत कई आरोपों में 58 भारतीय आम नागरिक कैद हैं। जिनमें सेंट्रल जेल मीरपुर में कैद मोहम्मद साबिर को पाकिस्तानी कोर्ट फांसी की सजा सुना चुका है। जबकि सेंट्रल जेल लाहौर में कैद शंभू नाथ उर्फ राजू और धरम सिंह को वर्ष 2020, कुलदीप कुमार और कुलदीप सिंह को वर्ष 2021 एवं महेंद्र सिंह को 2022 तक की सजा सुनाई गई है। वहीं पेशावर सेंट्रल जेल में कैद निहाल अंसारी के खिलाफ अभी मुक मुकदमा अभी अंडर ट्रायल चल रहा है।
नहीं मिला ठिकाना
पाकिस्तानी जेलों में बंद 5 भारतीयों की सजा अभी पूरी होना बाकी है। जबकि एक को फांसी का दंड दिया गया है और एक का मुकदमा अभी कोर्ट में लंबित है। बाकी बचे 51 भारतीय कैदियों की सजा तो सालों पहले पूरी हो चुकी है, लेकिन इनमें से 45 लोगों की राष्ट्रीयता के सबूत न होने के कारण नारकीय जीवन जीने को मजबूर होना पड़ रहा है।
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परेशानी की बात यह है कि जिन भारतीय कैदियों की पहचान के सबूत नहीं मिल सके हैं उनमें से 5 महिलाएं और 2 पुरुष पूरी तरह से मूक और बधिर हैं। जब तक लोगों की राष्ट्रीयता साबित नहीं हो जाती तब तक न तो भारत रिहाई का मांग कर सकता है और ना ही पाकिस्तान जेल से छोड़ सकता है। पहचान के भंवरजाल में फंसे 10 भारतीयों को तो करीब एक दशक से अपनी रिहाई का इंतजार है।
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पुलिस सीरियस नहीं
पाक ने गत जनवरी में पाकिस्तानी जेलों में कैद भारतीयों की जो सूची सौंपी थी, उसमें तीन राजस्थानियों के नाम भी शामिल थे। विदेश मंत्रालय से 5 महीने बाद यह फाइल संबंधित थानों तक पहुचंी। भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए सालों से संघर्ष कर रहे जागर संस्था के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार बताते हैं कि कई बार शिनाख्त के लिए आए दस्तावेजों में नाम और पते की छोटी-मोटी गलतियां होती हैं। BIG NEWS: राजफेड ने हाड़ौती के किसानों के साथ किया धोखा, बांसवाड़ा के आदिवासियों के खातों में डाल दिए 25 लाख
बूंदी निवासी जुगराज के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। उसके गांव का नाम रामपुर दर्ज था, लेकिन थाना तालेड़ा के एसएचओ बुद्धिप्रकाश नामा ने मिलते जुलते सभी गांवों से लापता हुए युवकों की तलाश कराई। आखिरकार जुगराज के पिता भैरूलाल भील को ढूंढ़ निकाला। जयपुर पुलिस ने गजानंद के परिजनों को ढ़ूंढ़ निकाला, लेकिन अजमेर पुलिस ने जय सिंह की फाइल वापस लौटा दी।
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साल में दो बार सौंपी जाती है सूची
21 मई 2008 को हुए काउंसलर एक्सेस समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान अपने-अपने यहां हिरासत में रखे गए कैदियों की सूची साल में दो बार (जनवरी और जुलाई में) एक-दूसरे को सौंपते हैं।