scriptजटाशंकर धाम: बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ, आदिकाल से शिवलिंग की अनवरत जलाभिषेक कर रही प्रकृति | lord shiva temple | Patrika News
कोरीया

जटाशंकर धाम: बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ, आदिकाल से शिवलिंग की अनवरत जलाभिषेक कर रही प्रकृति

पहाड़ी गुफा के भीतर 52 हाथ घुटने व कोहनी के बल चलकर पहुंचने पर दर्शन देते हैं भोलेनाथ

कोरीयाAug 01, 2022 / 09:28 pm

Yogesh Chandra

,,

जटाशंकर धाम: बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ, आदिकाल से शिवलिंग की अनवरत जलाभिषेक कर रही प्रकृति,जटाशंकर धाम: बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ, आदिकाल से शिवलिंग की अनवरत जलाभिषेक कर रही प्रकृति,जटाशंकर धाम: बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ, आदिकाल से शिवलिंग की अनवरत जलाभिषेक कर रही प्रकृति

बैकुंठपुर। सावन महीने में भक्तगण बीहड़ जंगल के बीच जटाशंकर धाम में प्राकृतिक रूप से विराजित भगवान भोलेनाथ का दर्शन व आराधना करने पहुंच रहे हैं। जटाशंकर का सबसे खास बात यह है कि भोलेनाथ एक पहाड़ी गुफा में विराजमान हैं और ५२ हाथ अंदर घुटने व कोहने के बल पहुंचने पर भक्तों को दर्शन देते हैं। आदिकाल से गुफा के भीतर विराजित शिवलिंग की प्रकृति २४ घंटे अनवरत जलाभिषेक कर रही है। जटाशंकर धाम जिला मुख्यालय बैकुंठपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर मनेंद्रगढ़ ब्लॉक के ग्राम चपलीपानी बियावन जंगल में स्थित है। जहां दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं और सावन के महीने में हर सोमवार को मेला जैसा भक्तों की भीड़ उमड़ती है। घनघोर जंगल में पहाड़ी के नीचे स्थित प्राचीन शिवमंदिर जटाशंकर है। भोलेनाथ तक पहुंचने के लिए पहले ७३० सीढ़ी उतरनी पड़ती है। फिर दुर्गम वन, पगडंडी, पथरीली रास्ते को पार कर गुफा के पास पहुंचते हैं। गुफा के अंदर लगभग 52 हाथ अंदर घुटने और कोहनियों के बल पर चलकर भगवान भोलेनाथ का दर्शन होता है। प्राचीन शिव मंदिर तक पहुंचने के लिए सिर्फ पैदल जाने मार्ग ही है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर का नाम जटाशंकर पडऩे के पीछे शिव की प्राचीन शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति दिखाई पड़ती है। जटाशंकर धाम में महंत शिवप्रसाद दास मंदिर की देखरेख करते हैं।

ऐसी मान्यता: भगवान शिव भस्मासुर के डर से इसी पहाड़ी गुफा के भीतर छिप गए थे
ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव भस्मासुर के डर से इसी पहाड़ी गुफा के भीतर छिप गए थे। तब उनकी जटाओं के अवशेष पत्थरों में बन गए थे, जो आज भी जटाओं जैसे नजर आते हैं। वहीं मंदिर में प्रगट भगवान शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती रूप से जल की बूंदें अवनरत अपने आप गिरती है। श्रद्धालुओं के अनुसार जटाशंकर धाम में भगवान शिव का 24 घंटे प्राकृतिक रूप से अवनरत जलाभिषेक होते रहता है। श्रद्धालुओं को भी बारह महीने प्राकृतिक रूप से पहाड़ से रिसा हुआ जल पीने को मिलता है। यहां जल इतना ठंडा होता है कि इसमें नहाने से लोगों को कपकपी आ जाती है। श्रद्धालुगण इस जल का उपयोग पूजा-पाठ, अनुष्ठान सहित भोजन प्रसाद बनाने में उपयोग करते हैं।

भोलेनाथ के दरबार तक ऐसे पहुंचते हैं श्रद्धालुगण
भोलेनाथ के दरबार में पहुंचने के लिए सोनहरी मुख्य मार्ग से दस किलोमीटर भीतर घने जंगलों में कच्ची सड़क से होकर जाना होता है। चपलीपानी से होकर ७३० सीढिय़ों को उतरकर जटाशंकर धाम तक पहुंचते हैं। घने जंगल में सीढिय़ों का निर्माण करना आसान नहीं था, लेकिन वन विभाग द्वारा भक्तों की सुविधा के लिए सीढिय़ों का निर्माण कराया गया है। जटाशंकर धाम में युवा, पुरुष व महिलाएं सभी लोग भोलेनाथ को जल चढ़ाने पहुंचते है। इस धाम में एक कुंड बना है। जिसमें साल भर बराबर पानी भरा रहता है। उसी जल को लेकर भोलेनाथ को चढ़ाते हंै। भगवान भोलेनाथ के साथ हनुमान मंदिर भी है। करीब चालीस साल से लोग जटाशंकर धाम में पूजा-अर्चना करने आ रहे हैं। बताया जाता है कि पहले यहां ऋषि मुनि रहा करते थे। वर्तमान में महंत शिवदास भोलेनाथ की सेवा कर रहे है। पहाड़ी की गुफा ऐसी है कि कितनी भी बारिश हो, पानी गुफा के भीतर प्रवेश नहीं करता है।

Hindi News / Koria / जटाशंकर धाम: बीहड़ जंगल के बीच गुफा में भोलेनाथ, आदिकाल से शिवलिंग की अनवरत जलाभिषेक कर रही प्रकृति

ट्रेंडिंग वीडियो