अभी यह व्यवस्था
अभी कुसमुंडा में ब्लास्टिंग करके कोयले को तोड़ा जाता है। जेसीबी से ट्रक, हाइवा या अन्य मालवाहक गाडिय़ों से कोयला स्टॉक पहुंचाया जाता है। यहां से कन्वेयर बेल्ट पर कोयला कोल हैंडलिंग प्लांट तक पहुंचता है। रेल की वैगन में लोड होकर गंतव्य स्थल तक जाता है। खदान के स्टॉक से कोयला रोड सेल की गाडिय़ों को दिया जाता है। इस व्यवस्था में कोयले का कई बार जेसीबी मशीन से उठा होता है। इससे काफी अधिक वायु प्रदूषण होता है और समय भी अधिक लगता है।
कोलवाशरी का निर्माण
कोल मंत्रालय ने कुसमुंडा में एक कोलवाशरी लगाने की भी मंजूरी दी है। इस पर कार्य चल रहा है। वाशरी निर्माण के बाद कोयला खरीदने वाली कंपनी को पानी से धुलाई किया हुआ साफ कोयला मिल सकेगा। कुसमुंडा, गेवरा या दीपका में एसईसीएल की एक भी कोलवाशरी नहीं है। क्षेत्र में निजी कंपनियों ने जरूर कोलवाशरी लगाई है।
यह होगा लाभ
कंपनी की योजना खदान में कोयले की फेस को काट कर सीधा माल उठाने की है। फेस से कन्वेयर बेल्ट पर उठाकर कोयला साइलो तक आएगा। यहां से सीधे रेल के वैगन या रोड सेल को लोड दिया जाएगा। रेल की बोगी या माल वाहक गाडिय़ों में ओवर लोड भी नहीं होगा। इसमें ट्रक, हाइवा या जेसीबी मशीन की मदद नहीं ली जाएगी। डस्ट कम उड़ेगा। उत्पादन क्षमता बढऩे के साथ कोल डस्ट पर भी प्रभावी नियंत्रण होगा। इसी मकसद से साइलो निर्माण पर जोर दिया जा रहा है।
इन चार साइलो से जुड़े खास तथ्य
-लगात लगभग 253 करोड़
-चार साल में बन कर होंगे तैयार
-साइलो की क्षमता चार हजार टन होगी
-रेल की वैगन या रोड सेल को साइलो से मिलेगा कोयला
-प्रदूषण पर प्रभारी नियंत्रण की कोशिश
-समय की होगी बचत