जंगल की सुरक्षा के लिए तैनात वनकर्मी ही असुरक्षित हैं। घने जंगलों के बीच उन्हें निहत्थे ही सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। इसे देखते हुए अविभाजित मध्यप्रदेश शासनकाल में वन विभाग ने एक अहम निर्णय लेते हुए वनकर्मियों को सुरक्षा के लिए बंदूक थमाने की घोषणा की थी।
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इसी कड़ी में कोरबा वनमंडल को भी 5 बंदूक व 25 कारतूस दिए गए पर कभी इन्हें चलाने की अनुमति नहीं मिली। इसको लेकर वनकर्मी संघ ने भी सरकार को कोई बार पत्र लिखा कि कर्मियों को प्रशिक्षण के बाद बंदूक चलाने की अनुमति दी जाए लेकिन इसको लेकर सरकार ने कभी गंभीरता नहीं दिखाई।]
साल में एक बार सफाई के लिए बाहर आती हैं बंदूक
सुरक्षा के लिहाज से मिला यह बंदूक अब वन परिक्षेत्र कार्यालय में रखे एक संदूक में बंद है और कभी इस्तेमाल नहीं हुई। यह बंदूक उसी समय संदूक से बाहर आती है, जब सफाई की आवश्यकता महसूस की जाती है। कर्मचारी 5 बंदूक व 25 कारतूस की सफाई की सफाई के बाद उसे फिर रख देते हैं। इधर जंगल हिंसक प्राणियों व तस्करों में बढ़ोतरी हो रही है। ऐसे में निहत्थे वनकर्मियों से जंगल असुरक्षित है।
जंगल के बीच नेटवर्क नहीं, असहाय महसूस करते हैं कर्मी
जंगल के बीच नेटवर्क नहीं होता है। बीच में शुरू किया गया वायरलेस सिस्टम भी काम नहीं कर रहा है। जंगल में काम करने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की सूचना देने के लिए बाहर आना पड़ता है। इस बीच अगर लकड़ी या फिर वन्य प्राणी तस्करों से सामना हो जाए तो वनकर्मी असहाय महसूस करते हैं।
मुख्यालय से मिले बंदूक व कारतूस सुरक्षित रखे गए हैं। समय-समय पर इसकी सफाई की जाती है। कर्मचारियों को इन्हें देने के सम्बंध में कोई निर्देश नहीं हैं।
-बी. तिवारी, डिप्टी रेंजर, कोरबा वनपरिक्षेत्र