कोरबा

स्पेशल बच्चों को पढ़ाने- लिखाने.. दर-दर भटक रहे परिजन, निजी स्कूलों में नहीं हो रहा एडमिशन

Chhattisgarh Education : दिव्यांग बच्चों के लिए निजी स्कूलों को संख्या कम हो गई है।

कोरबाAug 31, 2023 / 02:25 pm

Kanakdurga jha

स्पेशल बच्चों को पढ़ाने- लिखाने.. दर-दर भटक रहे परिजन, निजी स्कूलों में नहीं हो रहा एडमिशन

कोरबा। Chhattisgarh Education : सामान्यत: निशक्तता एक ऐसी अवस्था है जिससे व्यक्ति शरीर के कुछ अंग न होने के कारण अथवा सभी अंगों के होते हुए भी उन अंगों का कार्य सही रूप से नहीं कर पाता – जैसे उँगलियाँ न होना, पोलियो से पैर ग्रस्त होना, आँख होते हुए भी अंधत्व के कारण दिखाई नहीं देना, कान में दोष होने के कारण सुनाई नहीं देना, बुद्धि कम होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाना अथवा बुद्धि होते हुए भी भावनाओं पर नियंत्रण न कर पाना आदि जैसे कई ऐसी समस्याओं से गुजर रहे बच्चों को प्राथमिक शिक्षा से जोडऩा आज परिजनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।
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कुछ शहरों में निजी स्पेशल स्कूल संचालित हैं,उनमें सीटें सीमित हैं। सरकारी स्कूलों में स्पेशल बच्चों को सामान्य शिक्षक ही पढ़ा रहे हैं, उन्हें न तो स्पेशल बच्चों को पढ़ाने सिखाने का तरीका पता है न ही उन्हें प्रशिक्षित किया गया है। डीएमएफ से बने एक भवन का उपयोग कई साल से नहीं हो पा रहा था। तब शिक्षा विभाग ने जिले में दिव्यांग स्कूल शुरु करने की योजना बनाई, लेकिन यह योजना अब तक परवान नहीं चढ़ सकी।
उम्र 7-8 की, कक्षा पहली में दाखिले के लिए तीन साल से थे परेशानस्पेशल बच्चों को प्राथमिकी शिक्षा में किस तरह की परेशानी आ रही है इसकी बानगी देखिए। कोरबा के बरपाली में रहने वाले अभय राठिया उम्र साढ़े सात साल की है। जन्म से अभय बोलने और सुनने में असमर्थ है। परिजनों ने सरकारी स्कूल में दाखिला करवाया, लेकिन वहां के शिक्षक पढ़ाने और सिखाने में असमर्थ रहे। शिक्षकों ने ही परिजनों को सलाह दी कि निजी स्पेशल स्कूल में दाखिला करवा दें। जब निजी स्पेशल स्कूल पहुंचे तो वहां सीटें फुल थी। करीब तीन साल से परिजन शिक्षा विभाग, प्रशासन के चक्कर लगा रहे थे। कुछ दिन पहले वह कलेक्टर से जनदर्शन में अपनी समस्या सामने रखी तब जाकर उसे एडमिशन मिला।
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सीडब्ल्यूएसएन (चिल्ड्रेन विथ स्पेशल नीड्स) बच्चों के लिए प्रदेश में स्पेशल स्कूल नहीं है, सामान्य स्कूलों में बगैर स्पेशल सुविधाओं के इन बच्चों के दाखिले लिए जा रहे हैं और उन बच्चों को शिक्षा देने का दावा किया जा रहा है, लेकिन सीडब्ल्यूएसएन की गाइडलाइन के पालन के नाम पर स्कूलों में सिर्फ रैंप ही बनाए गए हैं। शरीर के दूसरे अंगों के काम नहीं करने और मानसिक रूप से बीमार बच्चों के लिए इन स्कूलों में किसी तरह की सुविधा नहीं है।
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इस तरह की सुविधा स्कूलों में नहीं

स्पेशल बच्चों के लिए स्कूलों में ब्रेल किताबें, ब्रेल किट, लो विजन किट, हियरिंग एड ब्रेसेस, कैलिपर्स जैसे सामग्री उपलब्ध कराना जरुरी है, जिससे उन बच्चों को पढऩे और सीखने में मदद मिलती है, लेकिन स्पेशल बच्चों की स्पेशल सुविधा के नाम पर सिर्फ रैंप का ही निर्माण कराया गया है। जिन स्कूलों में द्विव्यांग बच्चे भी नहीं है वहां भी रैंप बना दिए गए हैं।
1096 बच्चे तो स्कूल तक नहीं जा पा रहे

चिल्ड्रेन विथ स्पेशल नीड्स श्रेणी के 1096 बच्चे ऐसे हैं जो नियमित तौर पर स्कूल तक नहीं जा पा रहे हैं। दरअसल आने-जाने के साथ उनको स्कूल में वो सुविधाएं नहीं मिल रही थी। बच्चों की परेशानी को देखते हुए अब विभाग ने गृह आधारित शिक्षा शुरु की है।
मार्मिक पहलू देखिए…स्पेशल बच्चों को कोई लेना नहीं चाह रहा

समग्र शिक्षा के तहत सामान्य बच्चों के साथ ही स्पेशल बच्चों को शिक्षित करना है, लेकिन निजी स्कूल अकसर पल्ला झाड़ लेते हैं। सरकारी स्कूल तो दाखिला दें भी देंगे। बच्चों की स्थिति देखते ही कई स्कूलों के ना भरे जवाब से उन परिजनों के आंखू में आंसू भर जाते हैं। बहुत सारे स्पेशल बच्चों में खुबियां भीं होती हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है।
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जिन शिक्षकों को ट्रेनिंग मिली, उनका हो गया तबादला

विभाग का तर्क है की सरकारी स्कूलों के स्पेशल बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षको को ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन बहुत सारे स्कूलों के ऐसे शिक्षको का बार बार तबादला हो जाता है, इस वजह से भी पढ़ाई बाधित हो रही है। इसके अलावा अभी 224 स्पेशल एजुकेटर हैं जिनके द्वारा पढ़ाई कराई जाती है। जो कि प्रदेश में बच्चों की संख्या के हिसाब से बेहद कम है।
स्पेशल बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जा रही है, बच्चो को उनकी जरुरत के हिसाब से सामग्री भी उपलब्ध कराई जा रही है।
– इफ्फत आरा, संचालक, समग्र शिक्षा छत्तीसगढ़

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