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कोयला उद्योग में ठेका मजदूरों की स्थिति को लेकर हाल में ही एक रिपोर्ट आई है। इसमें बताया है कि अलग- अलग कोयला खदानों में काम करने वाले लगभग 65 फीसदी संविदा मजदूरों को कोल इंडिया की सामाजिक सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। जबकि सहयोगी कंपनियों में संविदा मजदूरों की संख्या 19 से 97 फीसदी के बीच है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ भी नहीं मिल रहा है।
इसका बड़ा कारण कोयला खान भविष्य निधि संगठन के पास खान निरीक्षकों की कमी है। इस कारण कोयला खदानों में पहुंचकर निरीक्षक यह पड़ताल नहीं करता है कि आउटसोर्सिंग की कंपनियों में संविदा मजदूरों की संख्या कितनी है? इन मजदूरों को रोजाना कितना रुपए मजदूरी मिल रहा है? इन्हें भविष्य निधि संगठन का सदस्य बनाया गया है या नहीं? अगर हां तो उनका पीएफ नंबर कितना है? और उनके भविष्य निधि में खाते में राशि जमा हो रही है या नहीं।
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देशभर में 901 कोयला खदानें, 10 साल में 71 बार निरीक्षण संविदा मजदूरों के हितों की अनदेखी कोयला खदानों में कैसे हो रही है? इसका खुलासा रिपोर्ट में हुआ है। बताया गया कि देशभर में कोल इंडिया की सहयोगी कपंनियों के 901 कोयला खदानें हैं। वर्ष 2010- 11 से 2021- 22 तक 71 खदानों का निरीक्षण भविष्य निधि के निरीक्षक किया है। सालाना 10 खदानों का निरीक्षण भी नहीं हुआ है। गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में आए दिन आंदोलन कोयला खदान में श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ रही हैं। एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट गेवरा, दीपका और कुसमुंडा में कोल इंडिया की हाई पॉवर कमेटी द्वारा निर्धारित वेतन, वेतन पर्ची, पीएफ नंबर और आठ घंटे ड्यूटी की मांग को लेकर समय- समय पर आंदोलन चल रहा है। मगर संविदा मजदूरों की स्थिति में बदलाव नहीं आ रहा है। छोटी- छोटी ठेका कंपनियां आज भी 200 से 400 रुपए रोजाना देकर मजदूरी करा रही हैं। उन्हें अपना मजदूर भी नहीं मान रही हैं। जबकि बड़ी आउटसोर्सिंग कंपनियों की स्थिति थोड़ी अलग है। इसमें कार्यरत मजदूरों को हाईपॉवर कमेटी का वेतनमान मिल रहा है। लेकिन छोटे ठेकेदारों के अंदर में काम करने वाले मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं मिल रहा है।
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