इन कलाकारों की कलाकृतियां न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद की जा रही है। बावजूद इसके स्थानीय स्तर पर कलाकारों की स्थिति ठीक नहीं है, आर्थिक स्थिति कमजोर होने के चलते वे अपने इस शिल्पकारी से तौबा करते जा रहे हैं। वही युवा वर्ग अब अपनी इस परंपरागत चली आ रही शिल्पकारी को धीरे-धीरेकर भूलकर घर-परिवार चलाने रोजी-रोटी के लिए नए तौर-तरीकों को अपनने मजबूर हो रहा है।
शासन के द्वारा शिल्प ग्रामोद्योग के माध्यम से शिल्पकारों के द्वारा बनाई गई कलाकृतियों को 850 रुपए पर किलो के हिसाब से खरीदी कर रहा है। जिससे कलाकार अपनी मेहताना भी नहीं निकलने की बात वे कह रहे हैं। नेशनल अवार्डी रामचन्द्र पोयाम कहते हैं कि, शासन- प्रशासन के द्वारा वजन के भाव से कलाकृतियों को खरीदने के चलते हम कलाकारों का मेहताना भी नहीं निकल पाता,जिसकी वजह से हमारे युवा पीढ़ी इस कलाकृति से दूर होती जा रही है।
मीना ठाकुर रहती है कि, कलाकृतियों को तो सम्मान मिल रहा है पर कलाकारों की स्थिति वैसी ही है सरकारी तौर पर होने वाली खरीदी वजन के भाव में यदि इसी तरह खरीदी जाती रही, तो इसे बनाने वाले शिल्पकार काम होते रहेंगे। उन्होंने कहा कि, हालांकि कई ऐसे कलाकार हैं जो शासन- प्रशासन को न देकर स्वयं से पूंजी लगाकर आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन छोटे स्तर के कलाकार अपनी कलाकारी का हुनर अब आने वाले समय में नहीं दिखा पाएंगे।
शासन के नियम अनुसार बेल मेटल के कलाकृतियों को शिल्पकारों से वजन के हिसाब से खरीदी जाती है। अनिरुद्ध कोचे, मैनेजर हस्तशिल्प वि बोर्ड क